नई दिल्ली । तमाम अखबारों, टीवी और नुक्कड़ की बातचीत में अब लोकसभा चुनाव की आहट सुनाई देने लगी है। नेताओं की रैलियाँ बढ़ गई हैं और साथ ही आरोप-प्रत्यारोप भी। मगर ये चुनाव हैं कब? लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग अमूमन मार्च के पहले हफ्ते में करता है. तारीखों को लेकर जारी अटकलों के बीच समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक इस बार भी मार्च के पहले हफ्ते में चुनाव की तारीख का ऐलान हो सकता है।
कांग्रेस पहले ही देरी का आरोप लगाते हुए कह चुकी है कि चुनाव आयोग तारीखों के ऐलान से पहले PM मोदी के यात्रा कार्यक्रमों के पूरे होने का इंतजार कर रहा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, प्रधानमंत्री मोदी 8 मार्च को कई प्रॉजेक्ट्स का उद्घाटन करने वाले हैं। कांग्रेस नेता अहमद पटेल ने आरोप लगाया कि सरकार ने टीवी, रेडियो और प्रिंट मीडिया को राजनीतिक विज्ञापनों से पाट दिया है और ऐसा लगता है कि चुनाव आयोग सरकार को आखिरी वक्त तक सरकारी पैसों से चुनाव प्रचार करने देना चाहती है।

2014 के आम चुनाव की तारीखों का ऐलान 5 मार्च को किया गया था। मतदान 16 अप्रैल को शुरू होकर 5 चरणों में 13 मई को खत्म हुए थे. 16 मई को नतीजों में भारतीय जनता पार्टी को बहुमत हासिल हुआ था और दूसरे सहयोगी दलों के साथ एनडीए की सरकार बनी. भाजपा को इन चुनाव में 282 सीटें मिली थीं.। इसी तरह 2009 लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान उस साल 2 मार्च को किया गया था। वहीं, 2004 के आम चुनाव की तारीखों का ऐलान 29 फरवरी को हुआ था।
चुनाव की तारीखों का ऐलान का सही समय क्या है?
नियम कहते हैं कि चुनावों की आधिकारिक अधिसूचना (जो आम तौर पर चुनाव के ऐलान के 7 से 10 दिनों बाद जारी होती है) और पहले चरण के चुनाव के बीच में 3 हफ्तों से ज्यादा का गैप नहीं होना चाहिए। मौजूदा लोकसभा (16वीं) का कार्यकाल 3 जून को खत्म हो रहा है, यानी नई लोकसभा का गठन 4 जून तक हो जाना चाहिए। इसका मतलब है कि अगर चुनाव आयोग 8 मार्च को चुनाव की तारीखों का ऐलान करता है और 18 मार्च को अधिसूचना जारी करता है तो पहले चरण का चुनाव 10 अप्रैल को पड़ सकता है। पिछले साल 7 अप्रैल को पहले चरण के लिए वोटिंग थी।
टाइमिंग की राजनीति
जब चुनाव आयोग ने पिछले साल 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान में देरी की थी (दोपहर साढ़े 12 बजे के बजाय साढ़े 3 बजे) तो विपक्ष ने आरोप लगाया था कि यह पीएम की रैली (अजमेर, राजस्थान) को आचार संहिता लागू होने से पहले पूरी होने को सुनिश्चित करने के लिए किया गया। इससे पहले, (मई 2018 में) बीजेपी की आईटी सेल के चीफ ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव के कार्यक्रम को उसकी आधिकारिक घोषणा से कुछ मिनट पहले ही ट्वीट कर दिया था, जिसके बाद विपक्ष ने पोल शेड्यूल लीक होने का आरोप लगाया था। उससे भी पहले, 2017 में हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा चुनाव का एक साथ ऐलान नहीं करने (दो हफ्ते का गैप) को लेकर चुनाव आयोग पर बीजेपी को फायदा पहुंचाने के आरोप लगाए गए थे। आम तौर पर जिन विधानसभाओं के कार्यकाल कुछ महीनों के अंतराल पर खत्म होते हैं, उनके चुनावों का ऐलान एक साथ किया जाता है। गुजरात सरकार ने इन 2 अतिरिक्त हफ्तों का इस्तेमाल कुछ चुनावी वादों के लिए किया।
चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था
चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है जिसे संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत चुनावों को कराने के लिए तमाम शक्तियां मिली हुई हैं। उसे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव को सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी मिली हुई है। इसलिए जरूरी है कि यह किसी भी तरह के बाहरी दबाव से पूरी तरह मुक्त हो। ऐसे फैसले जिनसे पक्षपाती रवैये का संदेह पैदा हो, उसकी विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
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