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पंजाब में महिला मुख्यमंत्री की मांग: सियासी जाल या रणनीति?

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पंजाब में महिला मुख्यमंत्री की मांग: सियासी जाल या रणनीति?
पंजाब में महिला मुख्यमंत्री की मांग: सियासी जाल या रणनीति?

आम आदमी पार्टी की दिल्ली में महिला मुख्यमंत्री नियुक्त करने की घोषणा के बाद, पंजाब विधानसभा में विपक्षी नेता प्रताप सिंह बाजवा ने दिल्ली की ही तर्ज पर पंजाब में भी महिला मुख्यमंत्री बनाने की मांग की है. यह मांग कई कारणों से महत्वपूर्ण है और कई राजनीतिक मायने रखती है। आइए, बाजवा की इस डिमांड के पीछे की चार प्रमुख वजहों पर नज़र डालते हैं।

आम आदमी पार्टी के लिए सियासी जाल

बाजवा द्वारा उठाई गई मांग आम आदमी पार्टी (आप) के लिए एक सियासी जाल जैसी बन गई है। AAP की सिर्फ दो राज्यों में सरकार है, और दिल्ली में आतिशी को मुख्यमंत्री पद का प्रस्ताव देकर AAP ने महिला नेतृत्व के साथ आगे बढ़ने का संकेत दे दिया है। पंजाब में भी महिला सीएम का प्रस्ताव, पार्टी के लिए एक नया चुनौती खड़ी करता है। बाजवा की डिमांड पूरी करने पर क्रेडिट कांग्रेस को जाएगा, वहीं ना करने पर AAP महिला विरोधी होने का ठप्पा खा सकती है। इसके अलावा, अगर पंजाब में सीएम बदला गया, तो यह AAP के लिए अपने ही नेता, भगवंत मान, की विफलता स्वीकार करने जैसा होगा।

क्रेडिट कांग्रेस के पास जाएगा

अगर AAP बाजवा की मांग को मान लेती है और पंजाब में भी महिला मुख्यमंत्री बनाती है, तो क्रेडिट कांग्रेस को जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि बाजवा ने इस मुद्दे को सबसे पहले उठाया है और उन्हें इसके पास चलने का मौका मिलेगा। हालांकि, अगर AAP बाजवा की मांग को नज़रअंदाज़ करती है, तो कांग्रेस इस मुद्दे का पूरा फायदा उठाकर AAP को महिला विरोधी होने का ठप्पा लगाने की कोशिश करेगी।

मान की असफलता को स्वीकार करने जैसा

AAP के लिए पंजाब में सीएम बदलना अपनी असफलता को स्वीकार करने जैसा होगा। बाजवा की इस मांग का यह भी अर्थ होगा कि वह भगवंत मान की कार्यक्षमता पर सवाल उठा रहे हैं और मान की फील्ड में विफलता को स्वीकार कर रहे हैं।

महिला वोट पर नज़र

2022 के पंजाब चुनावों में AAP को बड़ी जीत मिली, जिसमें महिला मतदाताओं का बड़ा योगदान रहा। AAP ने अपने चुनावी वचनों में महिलाओं को हर महीने ₹1000 देने, वृद्धा पेंशन बढ़ाने और नशामुक्त पंजाब बनाने का वादा किया था। AAP का मानाना था कि यह उन वचनों ने महिलाओं को आकर्षित किया और उन्होंने AAP को वोट दिया।

महिलाओं के वोट पर कब्ज़ा

2022 में पंजाब चुनावों में लगभग 72% महिला मतदाताओं ने वोट दिया था, और AAP को उनका बड़ा समर्थन मिला था। कांग्रेस की ये डिमांड इस बात को समझाते है कि वे इस वोट बैंक पर अपना कब्ज़ा किया जाना चाहते हैं। बाजवा की ये मांग इस वोट बैंक पर दबाव बनाने का भी एक तरिका हो सकता है।

बीजेपी को रोकने की कवायद

लोकसभा चुनावों में AAP ने पंजाब में सिर्फ 3 सीटें जीतीं, जिसके पीछे महिला मतदाताओं की नाराजगी को माना जा रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर, बीजेपी को महिला मतदाताओं का साईलेंट वोट माना जाता है, और बीजेपी शिरोमणि अकाली दल से अपना गठबंधन टूटने के बाद पंजाब में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही है। रवनीत बिट्टू को मोदी मंत्रिमंडल में मंत्री बनाया जाना भी इस तरफ संकेत करता है कि बीजेपी की नज़र महिला मतदाताओं पर है, और बाजवा की मांग बीजेपी को इस वोट बैंक से दूर रखने का भी एक तरिका हो सकता है।

महिला वोट बैंक को काबू में रखना है

बीजेपी को पंजाब में मजबूत बेस बनाने से रोकने के लिए, कांग्रेस अपना प्रभाव महिला मतदाताओं पर बढ़ाना चाहती है। यही कारण है कि वे महिला सीएम बनाने की मांग कर रहे हैं। यह एक चरबी लेकिन बहुत जरूरी रणनीति हो सकती है।

चुनावी पिच सेट करने की रणनीति

हालिया लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने पंजाब में सबसे ज़्यादा सीटें जीती थी, और उनका लक्ष्य इसी मोमेंटम को आगामी विधानसभा चुनावों तक बनाए रखना है। अब से तीन साल में होने वाले पंजाब चुनावों के लिए, कांग्रेस की ये रणनीति चुनावी पिच सेट करने की है।

सीएम चेंज कार्ड के साथ दलित कार्ड

यह कोई रहस्य नहीं है कि कांग्रेस ने पंजाब में पिछले कुछ सालों में अपने मुख्य मंत्री को बदल दिया है। कांग्रेस अब दलित कार्ड के साथ अपनी चुनावी रणनीति में महिला सीएम बनाने का कार्ड भी खेलने की कोशिश कर रही है। 2022 में भी पंजाब में मुख्यमंत्री चुनावों से करीब छह महीने पहले ही सीएम बदल दिया गया था, और कांग्रेस अब इस बार अपना महिला चेहरा आगे करके देखना चाहती है।

टेक अवे पॉइंट्स

  • बाजवा की मांग से AAP के लिए राजनीतिक समस्या उभरी है, जिससे उनके लिए चुनाव जीतने के लिए यह मुद्दा अहम होगा।
  • कांग्रेस को महिला मतदाताओं का समर्थन हासिल करने के लिए इस मुद्दे को आगे बढ़ाना जरूरी है, इस बारे में आगे भी कुछ और रणनीतियाँ देखने को मिल सकती हैं।
  • पंजाब चुनावों के नजदीक आने पर, इस मुद्दे का महत्व और बढ़ जाएगा और इसके आसपास राजनीति और ज़्यादा तेज़ हो सकती है।
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