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यह आजादी का अमृत वर्ष ,
काश: यूं अमृत बरसाए,
छट जाए बादल सब दुख के,
भारत फिर स्वर्णिम कहलाए।
     

न हो कोई भूखा-नग्गा, 
घर- घर में खुशियां भर जाए।
   न हो कही बेटी की हत्या,
न कोई बहू प्रताड़ित हो।
बस हो हर आंगन में खुशियां,

आजादी का अमृत वर्ष
 

बेटी हर घर में प्यारी हो।
  न हो कोरोना से हाहाकार,
न डेल्टा वायरस बच्चो पे हावी हो।
न आए कोई थर्ड वेव,

न बच्चो को कोई बीमारी हो।
   

न हो कोई आतंकी हमला,
न काश्मीर की मांग उठे,
बस हो सब में भाई -चारा,
    न भाई - भाई पे हावी हो।
  न हो मानवता शर्मसार,

 

न नारी की इज्जत तार - तार,
दानव का दंश भी थम जाए,
न अराजकता  कभी भी भारी हो।
   ये आजादी का अमृत वर्ष,
काश: यूं अमृत बरसाए,काश: यूं अमृत बरसाए,
ये आजादी का अमृत वर्ष।।
     

आजादी का अमृत वर्ष

रागिनी विवेक त्रिपाठी 

कवियत्री व (स.अ.) पूर्व मा वि गोहरामऊ,काकोरी