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हिंदुस्तान में संघर्ष करती हिंदी

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Hindi diwas:- भारत जो की हिंदी भाषी देश हैं यहां बड़ी तादाद में लोग आज भी हिंदी का उपयोग करते हैं और हिंदी बोलने व लिखने में निपुणता रखते है। कहते हैं हिंदी वह भाषा है जो लोगों को एक दूसरे से जोड़ती है और उनमें अपनत्व का भाव जगाती है। लेकिन आजादी के 75 वर्ष बाद भी हिंदी का ऐसा संघर्ष मन हो आहत कर देता है समझ नही आता अपनी भाषा से इतना बैर देश के लोगों की मजबूरी है या उनकी जरूरत।

क्योंकि हिंदी हमारे देश की भाषा है हमारी भाषा है लेकिन इस सबके बाबजूद भी यह अपने अस्तित्व को तलाश रही है और अंग्रेजी के सम्मुख होते अपने तिरस्कार को देखकर टूट जाती है की भारत जहां संस्कृत सभी भाषाओं की मां मानी जाती है और हिंदी सभी भाषाओं की बड़ी बहन वहां इसे इतना तिरस्कार क्यों सहना पड़ रहा है और आज तक भारत की कोई मातृ भाषा क्यों नहीं बनी। क्या इतना खोखला है भारत का अंदरूनी ढांचा जो अपने देश की एक भाषा को स्वतंत्र नहीं करवा पाया और अंग्रेजों के जाने के बाद अब भारत के सपूत ही अंग्रेजी में बड़बड़ाकर हिंदी को नीचा दिखा रहे हैं। 

लेकिन अगर गौर करें तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है की हम विकशील देश की श्रेणी में आने के बाद भी अपने देश की भाषा को सम्मान नहीं दे पा रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है बाहरी चमक ने हमारी आंखों पर पट्टी बांध दी है जो हमे हमारी सांस्कारिक भाषा से अलग कर रही है। लेकिन हिंदी पर अंग्रेजी का हावी होना आगामी समय मे हिंदी को लुप्त कर देगा क्योंकि अंग्रेजी के सामने आज के दौर में हिंदी का संघर्ष है ओर जो लोग इस संघर्ष से जूझ रहे हैं वह कभी अपनी आगामी पीढ़ी को हिंदी प्रेमी नहीं होने देंगे।
आज हिंदी के डगमगाते कदम और रोजगार के क्षेत्र में अंग्रेजी का अधिक महत्व बता रहा है की यदि जीविका के लिए कुछ हासिल करना है तो हिंदी नहीं अंग्रेजी प्रेमी बनिए। 
वहीं हिंदी के निरंतर लुप्त होते अस्तित्व के बाद महसूस हो रहा है की हिंदी मीडियम स्कूलों पर ताला लगा देना चाहिए या फिर उन्हें भी अंग्रेजी मीडियम बना देना चाहिए। क्योंकि हिंदी मीडियम से पढ़कर एक छात्र 12 वीं में 99 प्रतिशत अंक तो प्राप्त कर सकता है लेकिन जीवन के संघर्ष में अंग्रेजी के सम्मुख उसे शर्मिंदगी महसूस होती है।
क्योंकि वहां उसके हुनर से ज्यादा देखा जाता है की उसे अंग्रेजी में निपुणता हासिल है या नहीं। जहां हिंदी में काम होता है वहां के लोगों को भी फर्राटेदार अंग्रेजी जानने वाले कर्मचारियों की आवश्यकता होती है और अगर गलती से इंटरव्यू के दौरान अपने अपना परिचय हिंदी में दे दिया तो हाय तौबा नौकरी मिलने से पहले ही चली जाती है।
आज कल हिंदी पर कर्मचारियों के लिए एक और चुनैती ने जन्म लिया है जो हैं उनकी तनख्वाह अगर आप हिंदी भाषी है तो आपकी तनख्वाह आपके साथ समान पद पर कार्यरत व्यक्ति की तनख्वाह से आधी होगी क्योंकि अंग्रेजी का शब्द बुना ही अंग्रेजी पद्धति से है वहीं अंग्रेज जिन्होंने हिंदुस्तान को कभी सम्मान नहीं दिया तो हम उनकी भाषा से क्या उम्मीद लगा दें।

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