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क्या बकरीद में जानवरों को नहीं होता दर्द, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 हिंदुओ के साथ पक्षपात

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कल देश मे बकरा ईद का त्योहार मनाया जाएगा, देश में इस्लाम को मानने वाले अनगिनत, बकरों, मुर्गों समेत अलग-अलग जानवरों की कुर्बानी देंगे। क्या आप जानते हैं कि देश में बलिदान प्रतिबंधित है। पर फिर भी मुस्लिम कुर्बानी कैसे देते हैं क्योंकि संविधान में मौजूद पशु क्रूरता निवारण अधिनियम का खोखलापन मुसलमानों को इसकी अनुमति देता है।

पशु बलि की उत्पत्ति

देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए जानवरों को मारने की प्रथा का पता वेदों और उपनिषदों के काल से लगाया जा सकता है।  यहां तक ​​​​कि इस्लाम जैसे समकालीन धर्म भी ईद-अल-अधा जैसे बलिदान के त्योहारों को अपने पैगंबर के अल्लाह को दिए गए बलिदान को मनाने के लिए मनाते हैं। हालांकि हर धर्म ने प्रेम, करुणा और निस्वार्थता के मानवीय मूल्य बताकर प्रचार किया गया है।  

हालाँकि, ये प्रथाएँ धार्मिक गलत व्याख्याओं और अंधविश्वासों पर आधारित हैं जिनका उपयोग स्वार्थी लोगों ने अपने लाभ के लिए भी किया है।  कुछ सबसे विकसित भारतीय शहरों में भी धार्मिक त्योहारों और मेलों के दौरान पशु बलि का प्रचलन रहा था।

क्या है 1960 का ये अधिनियम

भारतीय विधायिका ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 पारित किया था यह एक पशु कल्याण नियामक ढांचा बनाने के लिए था। अधिनियम जानवरों को अनावश्यक दर्द या पीड़ा को रोकने के लिए है। इसमें किसी भी रूप में पशु क्रूरता को नियंत्रित और दंडित करने का प्रावधान है।  इस अधिनियम की धारा 11 के तहत किसी भी अनावश्यक रूप से क्रूर तरीके से जानवरों का वध करना दंडनीय अपराध है।  

धारा 11(3)(ई) में कहा गया है कि किसी जानवर को अनावश्यक रूप से क्रूर तरीके से मारना कानून के तहत दंडनीय अपराध है पर इस बात पर गौर करिएगा की मानव जाति के लिए भोजन उपलब्ध कराने के लिए किसी जानवर की हत्या पशु क्रूरता की परिभाषा में शामिल नहीं है। पशु क्रूरता के लिए दंडनीय अपराधों के दायरे में बकरीद पर पशु बलि को शामिल करने में कानून विफल रहता है।  

जानवरों के प्रति क्रूरता की रोकथाम अधिनियम की धारा 28 में यह भी कहा गया है कि धर्म या समुदाय द्वारा अनिवार्य कर्मकांड के अनुसार किसी जानवर की बलि पशु क्रूरता के दायरे से बाहर है।

धार्मिक उद्देश्यों के लिए पशु बलि एशिया-प्रशांत संस्कृति के भीतर निहित है।  दुनिया के सबसे बड़े पशु बलि उत्सवों में से एक पड़ोसी देश नेपाल में होता है।  भारतीय सीमा के पास नेपाल के बारा जिले में मनाए जाने वाले गढ़ीमाई महोत्सव ने भारत के भीतर भी पशु कल्याण को लेकर गंभीर चिंता को जन्म दिया है।  

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार को नेपाल को जीवित मवेशियों और भैंसों के निर्यात को प्रतिबंधित करने का निर्देश भी दिया था।  भारत सरकार ने प्रतिबंधित निर्यात श्रेणी के तहत जीवित मवेशियों और भैंसों को शामिल किया है, जिससे विदेशी व्यापार (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1992 की धारा 5 के तहत इसमें निहित शक्तियों का उपयोग करके उन्हें कानूनी रूप से निर्यात करने का लाइसेंस बनाया गया है।

समाज को और अधिक संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है जो भक्ति के लिए पशु बलि करना जारी रखता है और अन्य जीवित प्राणियों के प्रति करुणा के प्रति घोर उपेक्षा प्रदर्शित करता है।  

कर्मकांडों की आड़ में सार्वजनिक चौराहों पर जानवरों की हत्या क्रूरता को बढ़ावा देती है और भारतीय समाज की नकारात्मक छवि भी बनाती है। 

 

इस अधिनियम में मुसलमानों को पशु बलि देने से प्रतिबंधित न कर पाना कई बार विवाद का मुद्दा बन जाता है। साथ ही कई ऐसे तर्क भी दिए जाते हैं कि अपना पेट भरने के लिए या खाने के लिए किया गया इंसान का कत्ल भी मर्डर की श्रेणी से बाहर होगा।

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