आजादी: आजादी के बाद भारत की दशा काफी बदल गई थी। भारत से अंग्रेजी सत्ता का अंत हो गया था लेकिन 1947 के बाद भारत के लिए सबसे बड़ा फैसला हुकूमते बरतानिया की लेबर पार्टी लंदन में ले चुकी थी। लॉर्ड माउंटबेटन (डिकी) साइरिल रेडक्लिफ़ भारत के नक्शे में परिवर्तन कर रहे हैं। भारत मे आंतरिक कलह मची हुई थी। भारत से पाकिस्तान तो पहले ही अलग हो गया था। लेकिन बंगाल विभाजन की आवाज उठा चुकी थी। भारत का पंजाब राज्य और बंगाल उस दौर में दंगे की धड़कती आग से जल रहे थे।
दंगो को शांत करने के लिए गांधी उस समय अकेले प्रयास कर रहे थे। सरदार पटेल भारत के राजा महाराजाओं को रोकने की कवायद में लगे थे। उनका उद्देश्य भारत को एक जुट रखना था। लेकिन इस धधकती आग के बीच कई लोग ऐसे थे अपने दिल मे मोहब्बत लिये एक दूसरे के करीब आ रहे थे उनकी मोहब्बत उन दंगो ओर आजादी के जश्न में एक अलग ही रंग में रंग रही थी। यह कहानी है उस व्यक्ति की जो आजादी के बाद भारत का पहला प्रधानमंत्री बनने जा रहा था और उस महिला की जो भारत के पहले गवर्नर की पत्नी थी।
जाने वह महिला जिसकी मोहब्बत में मदहोश हुए थे नेहरू:-
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जब देश आजादी के बाद संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा था। गांधी अकेले दंगे को शान्त करवाने का प्रयास कर रहे थे। सरदार लोगो को एकजुटता का पाठ पढ़ा रहे हैं। वही देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू मोहब्बत की गिरफ्त में आ चुके थे। उस समय नेहरू की उम्र 58 साल थी ओर भारत के पहले गवर्नर जनरल की पत्नी एडविन की उम्र 47 साल थी। लेकिन हमने कई बार देखा ओर सुना है कि मोहब्बत एक एहसास है यह कभी भी कही भी किसी से भी हो सकती है। मोहब्बत में किसी की कोई उम्र नही होती।
वही अगर हम नेहरू के जीवन की बात करे तो वह हमेशा से प्रेम के आदि रहे क्योंकि वह कम उम्र में विदुर हो गए थे और कमला कौल से उनका वैवाहिक जीवन सफल नही रहा था। कमला एक सीधी साधी लड़की थी लेकिन नेहरू पढ़े लिखे तेज तर्रार व्यक्ति थे। यह जब लंदन में थे तो इनके और एडविना के रिश्ते ने खूब सुर्खियां बटोरी। जब डिकी भारत आए तो एडविना उनके साथ नही आना चाहती थी लेकिन जिंदगी ने करवट ली ओर उन्हें भारत आना पड़ा।
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पंडित जवाहर लाल नेहरू एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें डिकी और एडविना काफी पसंद करते थे। जिसका फायदा भारत को विभाजन के दौरान मिला। जब कश्मीर विभाजन की बात आई तब एडविना ने भारत के पक्ष में अहम भूमिका निभाई। मॉर्गन जेनेट ने अपनी किताब ‘एडविना माउंटबेटन: अ लाइफ ऑफ़ हर ओन’ में लिखा है कि जब विभाजन की बात हुई तब एडविना नेहरू को एक हिल स्टेशन ले गई। वहां उन्होंने नेहरू से बातचीत की ओर उन्हें समझाया। माउंटबेटन नेहरू और एडवीना की बढ़ती दोस्ती को महसूस कर रहे थे। नेहरू जब भी कही जाते थे तो वह एडविना के लिए कुछ न कुछ जरूर खरीदकर लाते थे उससे एडवीना काफी खुश होती थी।
नेहरू एडविना ने विभाजन में क्या निभाई भूमिका:-
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माउंटबेटन नेहरू और एडविना के रिश्ते को करीब से देख रहे थे। उन्हें यह महसूस हो चुका था कि अब नेहरू का लगाव एडविना के साथ अधिक बढ़ गया है। इनका यह रिश्ता विभाजन के काम को आसान बना देगा। वही एडविना नेहरू के लिए मुझे कभी नहीं छोड़ेंगी। बटवारे की राह को आसान बनाने के लिए उन्होंने कभी एडविना और नेहरू के रिश्ते पर।अंगुली नहीं उठाई। उन्हें आजाद छोड़ दिया। ब्रिटिश इतिहासकार फिलिप जिएग्लर ने माउंटबेटन की जीवनी में एक चिट्ठी का जिक्र किया है जो डिकी ने अपनी बेटी पेट्रिशिया को लिखी थी. इसमें उन्होंने लिखा था कि तुम कभी इस बात का जिक्र किसी से मत करना लेकिन यह सच है कि जवाहर और एडविना एक साथ अच्छे लगते हैं वह एक दूसरे के प्रति काफी समर्पित है। वही मैं ओर पामेला उनकी मदद करने के लिए हर सम्भव प्रयास कर रहे हैं। तुम्हारी माँ इस समय खुश हैं बहुत!
एडविना और माउंटबेटन के रिश्ते में कई बार तलाक की बात हुई लेकिन यह रिश्ता कही न कही तरक्की का रिश्ता था इसलिए यह नही टूटा। जब माउंटबेटन हिंदुस्तान से जा रहे थे तो भारत सरकार ने उन्हें सम्मान दिया और खाने पर बुलाया। खाने के बाद जवाहर ने एडविना को लेकर भाषण दिया जो उनकी मोहब्बत का सबूत दे रहा था। नेहरू की आंखों से आंसू के मोती छलक ऊठे। उस समय जवाहर बिल्कुल एक बच्चे की तरह रो दिए जैसे कोई अपने ह्रदय की सांस टूटने पर रोता है। 21 जून 1948 नेहरू के लिए भारी दिन बन गया। नेहरू और एडविना भारत से चले गए और नेहरू पहले की तरह अकेले ही रह गए।
नेहरू कई बार उनसे मिलने इंग्लैंड गए एडविना भी कई बार भारत आई। उस समय भारत की राजनीति में यह शोर गूंजने लगा था राम के मन मे झांको तो सीता मिलेगी नेहरू के मन मे झांको तो एडविना। एडविना और नेहरू के रिश्ते के कारण नेहरू का राजनीतिक करियर दाव पर लग गया। एक बार जब एडविना बीमार पड़ी और उन्हें ऑपरेशन थियेटर भेजा गया तो उन्होंने डिकी को वो सारे खत दिये जो नेहरू ने उन्हें दिए थे। उन्होंने उनसे वादा भी लिया कि यदि उन्हें कुछ हो जाता है वह तब ही यह खत पढ़ेंगे। लेकिन डिकी से सब्र न हुआ उन्होंने वह सभी खत पहले ही पढ़ लिये और एडविना ऑपरेशन थियेटर से सही सलामत बाहर आ गई।
जाने कब हुआ एडविना का देहांत:-
साल 1960 एडविना पर काफी भारी पड़ा। 21 फरवरी को सुबह सुबह एडविना का देहांत हो गया। जब एडविना ने अंतिम सांस ली तो उनके पास कुछ नही था सिवाय नेहरू के खत के। उनकी अंतिम इच्छा का ख्याल रखते हुए उन्हें समुद्र में दफनाया गया था। एडविना को अंतिम विदाई देने के लिए नेहरू ने गेंदे के फूलों के एक पुष्पचक्र के साथ हिंदुस्तानी जहाज़ ‘त्रिशूल’ वहां भेजा था। इन दोनों ने गरिमाओ में रहते हुए प्रेम की एक अनोखी मिशाल पेश की। कहा जाता है जिन्ना को लोगो ने सलाह दी थी कि वह नेहरू और एडवीना के रिश्ते का फायदा बटवारे में उठाए। लेकिन जिन्ना ने यह करने से इनकार किया था क्योंकि जिन्ना का मानना था कि किसी के आंतरिक मामले को राजनीति में इस्तेमाल करना गलत है। वह उनका आपसी मामला है उसको लेकर स्वार्थ की राजनीति करना अनुचित है। लेकिन आज के समय मे गांधी परिवार के अतीत को उठाकर राजनीतिक करना राजनेताओं के लिए गर्व बन गई है और लोग अब राजनीति को पर्सनल लाइफ से जोड़कर देखते है।