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जाने क्या है पैगम्बर मोहम्मद का सच, क्या हिंसक कभी हो सकते हैं पैगम्बर के अनुयायी

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Islam:- इस समय पूरे भारत मे पैगम्बर मोहम्मद की चर्चा हो रही है और इनके समर्थक सड़को को पत्थरो से पाटने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। जहाँ भाजपा प्रवक्ता में पैगम्बर मोहम्मद को लेकर विवादित टिप्पणी की और इनके अनुयायियों की धार्मिक भावनाओं को आहत किया वही अब इनके अनुयायी लगातार भारत को आहत करने में जुटे हुए हैं और नुपुर शर्मा की गिरफ्तारी की मांग के चलते जगह जगह पर हिंसक प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन अगर हम बात पैगम्बर मोहम्मद की करें तो वह सभी को समानांतर देंखने की बात करते थे और हिंसा को कभी बढ़ावा देने की बात नहीं करते थे। 

इस्लाम में कभी भी हिंसक गतिविधियों का जिक्र नहीं किया गया और आज भारत मे जिस प्रकार से लोगो खुद को पैगम्बर का अनुयायी बताकर सड़को को पथराव से भर रहे हैं वह कही न कही पैगम्बर के नियमों के विरुद्ध है और उनकी धार्मिक नीतियों को अस्त व्यस्त कर रहा है। पैगम्बर मोहम्मद जिन्हें मुस्लिम समाज ईश्वर का दूत कहता है इन्हें ईश्वर का इस्लामी पैगम्बर भी कहा जाता है और ईश्वर अपने लिए किसी को आहत करने की अनुमति कभी नहीं देता है।  

जाने क्या है पैगंबर मोहम्मद का सच:- 

पैगम्बर मोहम्मद को ईश्वर का दूत कहा जाता है जब यह 6 वर्ष के थे तो इन्होंने अपने माता पिता दोनो को खो दिया था। पैगम्बर मोहम्मद का पालन पोषण उनके चाचा ने किया था। पैगम्बर मोहम्मद जब 25 वर्ष के थे तो उन्होंने ख़ादीजा नाम की एक विधवा के घर काम करना आरंभ किया और बाद में ख़ादीजा बिन खुवैलिद से विवाह किया जोकि उनके इस्लाम धर्म अपनाने के पश्चात् पहली मुस्लिम बनी थी। वही जब यह 40 वर्ष के हुए तो इन्होंने स्वम् को ईश्वर से बातचीत करने और मिलने का दावा किया वही यह उपदेश दिया की ईश्वर एक है और सभी को एकजुट होकर एकता के साथ रहना चाहिए।
मुस्लिम समाज के लोगो का कहना है कि पैगम्बर मोहम्मद को मक्का की पहाड़ियों में ज्ञान की प्राप्ति हुई और यही से यह विश्व विख्यात हो गए। मक्का में जब पैगम्बर ने उपदेश दिए तो वहां की जनजातियों ने इनका विरोध किया और वह इनकी कट्टर दुश्मन बन गई। इस विरोध के चलते पैगम्बर ने शांति का परिचय दिया और मक्का छोड़कर मदीना की ओर चल दिए। उनके मक्का से मदीना की ओर जाने की घटना को इस्लाम मे हिजरा के नाम से जाना जाता है। वही इस्लामी कलेंडर का निर्माण इसी हिजरा के आधार पर हुआ है। 
कहा जाता है कि पैगम्बर मोहम्मद ने अपने उपदेशों से लोगों का दिल जीत लिया और इनके अनुयायियों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई। जब पैगम्बर के अनुयायी बढ़ गए तो इन्होंने उनके समर्थन के साथ मक्का पर चढ़ाई कर दी और जीत हासिल की। इस जीत के बाद मक्का के लोगो ने इस्लाम को स्वीकार किया और मक्का में स्थित काबा को इस्लाम का प्रमुख धार्मिक स्थल घोषित कर दिया गया। वही पैगम्बर मोहम्मद का निधन उस दौर में हुआ जब इस्लाम का प्रचार प्रसार चर्म पर था पूरा अरब इस्लाम के सूत्र में बंध चुका था। मोहम्मद पैगम्बर की मौत के बाद साहब के दोस्त अबू बकर को मुहम्मद साहेब का उत्तराधिकारी घोषित किया गया और इस्लाम को सर्वोपरि माना गया उसका एक एक कथन पत्थर की लकीर बना और जो लोग इस्लाम का सच्चे मन से अनुसरण करते थे उन्होंने पैगम्बर के संदेश को मानते हुए एकता का परिचय दिया और सभी धर्मों का सम्मान किया। क्योंकि पैगम्बर का पहला उद्देश्य इसी संदर्भ में था कि ईश्वर एक है और सभी को एकजुट होकर रहना चाहिए।

जाने पैगम्बर मोहम्मद की कितनी पत्नी थी:-

अगर हम पैगम्बर मोहम्मद की शादियों की बात करें तो यह अपनी पहली पत्नी ख़दीजा थी। पैगम्बर मोहम्मद ने खदीजा से 25 वर्ष की उम्र में विवाह किया था। यह खदीजा से बेहद प्यार करते थे। जब पैगम्बर मोहम्मद ने खदीजा से शादी की तो उनकी उम्र 40 थी जबकि मोहम्मद की उम्र मात्र 25 वर्ष थी। खदीजा की मौत के बाद पैगम्बर मोहम्मद ने 10 और शादियां की थी। पैगम्बर मोहम्मद की पहली पत्नी खदीजा काफी दयावान थी वह अपनी आय को गरीबों, अनाथों, विधवाओं और बीमारों के बीच बांटा करती थी। उन्होंने गरीब लड़कियों की शादी के खर्च का भी ध्यान रखा और एक बहुत ही नेक और सहायक महिला के रूप में जानी जाति थी। वही अगर हम पवित्र कुरान की बात करें तो इसे मोहम्मद की मौत 100 साल बाद लिखा गया वही इसका संग्रह और बाद में हुआ है। 

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