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प्रेम जो अनुभूति, लगाव , समर्पण, शारिरिक अभिलाषा सब से भिन्न एक माया

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प्रेम को लेकर मन मे अनेकों सवाल रहते हैं हर कोई प्रेम को समझना चाहता है प्रेम को जानना चाहता है और प्रेम के साथ निरंतर चलना है। लेकिन प्रेम वास्तव में क्या है इसकी परिभाषा आज तक बड़े बड़े विद्वान भी नहीं दे पाए क्योंकि प्रेम जो कि अनुभूति, लगाव , समर्पण, शारिरिक अभिलाषा सब से भिन्न है। यह इस सृष्टि की वह माया है जिसके जाल से कोई नहीं बच पाया यह इस संसार के सुख दुख में मौजूद लौकिक से अलौकिक तक की जटिल प्रक्रिया है जिसकी माया से बच पाना असम्भ है।

इसकी माया जटिल है लेकिन इसका रस अत्यधिक स्वादिष्ट इसका आयाम एक ही है पात्रता। यह पात्रता प्रेम को पीड़ा और सुख में बदलती है। जो व्यक्ति पात्रता के पुल को पार किए बिना प्रेम के पथ पर चलता है वह प्रेम में पीड़ा को भोगता है और उसका प्रेम कभी सफलता के मार्ग पर अग्रसर नहीं हो सकता। लेकिन जो व्यक्ति पात्रता को अर्जित कर प्रेम के पथ पर कदम रखता है उसे सुख और प्रेम की प्राप्ति होती है। उसे आनंद प्राप्त होता है। वह प्रेम की माया में उलझता है लेकिन यह माया उसके लिए सुखमय मार्ग के रास्ते खोलती है।
प्रेम जो दो लोगों का मिलना नहीं बल्कि दो रास्तों का जुड़ना है और जब दो रास्ते आपस मे जुड़ते हैं तो वह एक लंबा मार्ग तय करते हैं। हालाकि रास्ता कितना भी अच्छा हो उसमे मरम्मत की आवश्यकता पड़ती है और यदि उस रास्ते की समय समय पर मरम्मत होती रहती है तो वह कभी अपने छोर से अलग नहीं होता। ठीक इन दो रास्तों की भांति है प्रेम की माया जिसे हर किसी को अपने जीवन मे स्वीकारना चाहिए। यह कभी भी एक ओर नहीं चलता लेकिन यह वहां जरूर रुकता है जहां पात्रता होती है। वही जो इसे समर्पण के औजार से निरंतर रोपता है उसको यह माया कभी नहीं छोड़ती।

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