राजधानी का डिप्लोमेटिक एरिया चाणक्यपुरी आजकल एकबार फिर खबरों में है। वजह यह है कि वहां पर स्थित पाकिस्तान के हाई कमिशन में एक भारतीय महिला प्रोफेसर के साथ यौन उत्पीड़न का केस सामने आया है। वह वहां पर पाकिस्तान जाने के लिए वीजा लेने के लिए गईं थीं। अफसोस कि पाकिस्तान हाई कमीशन में कभी कोई सार्थक और रचनात्मक गतिविधियां नहीं हुईं। वहां पर पाकिस्तान के स्वाधीनता दिवस पर बिरयानी की दावत जरूर आयोजित होती थी। पर यह जगह मात्र भारत की जासूसी का अड्डा बना रहा। यहां पर जम्मू-कश्मीर के पृथकतावादी और आतंकवादी नेताओं को दामादों की तरह से सम्मान मिलता ही रहा।
भारत सरकार ने 1950 के दशक में चाणक्यपुरी में विभिन्न देशों को भू-भाग आवंटित किये थे। पाकिस्तान को भी इस आशा के साथ बेहतरीन जगह पर अन्य देशों की अपेक्षा बड़ा प्लाट दिया गया था कि वह भारत से अपने संबंधों को मधुर बनाएगा। पर पाकिस्तान ने भारत को निराश ही किया। वह अपनी करतूतों से न बाज आया न ही सुधरा । उसके गर्भनाल में भारत के खिलाफ नफरत भरी हुई है। अब वहां पर उन भारतीयों के साथ यौन उत्पीड़न भी हो रहा है, जो वीजा लेने के लिए वहां पर जाते हैं। मतलब घटियापन की इंतिहा कर रहा है पाकिस्तान। भारत से नफरत करना पाकिस्तान के डीएनए में है। वह भारत का सिर्फ बुरा ही चाहता है। यह बात अलग है कि उसके न चाहने के बाद भी भारत संसार की सैन्य और आर्थिक दृष्टि से एक बड़ी शक्ति बन गया हैं। पर पाकिस्तान के घटियापन के बावजूद भारत ने पाकिस्तान को भी किसी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाया। यह सब करना भारत की कूटनीति का अंग ही नहीं है।
पाकिस्तान की अब आंखें भी खुल रही हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ अपने देश की सच्चाई से मुंह मोड़ने की जगह जनता को असली स्थितियों से अवगत करा रहे हैं। हाल ही में उन्होंने पाकिस्तान के लिए बार-बार ऋण मांगने की तुलना भीख मांगने से की थी और कहा था कि उन्हें इसकी वजह से शर्मिंदा होना पड़ता है। अब उन्होंने भारत से रिश्तों को लेकर भी बयान दिया है। शरीफ ने कहा है कि भारत से तीन युद्धों में पराजय के बाद उनका देश अपने सबक सीख चुका है। शरीफ से भारत के साथ रिश्तों को लेकर सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा कि आजादी के बाद से तीन युद्धों में पाकिस्तान ने सबक सीखे हैं और वे अब शांति चाहते हैं। शरीफ ने इस बार भारत को कश्मीर पर कोई भी धमकी नहीं दी, बल्कि भारत से वार्ता की अपील करते दिखे।
बहरहाल, शरीफ कितनी भी शराफत दिखाएं पर पाकिस्तानी सेना भारत से संबंधों को सामान्य नहीं होने देगी। पाकिस्तान सेना को विदेशी मामलों में भी दखल देने का पुराना रोग है। पाकिस्तान में जब भी किसी अन्य देश का राष्ट्राध्यक्ष, प्रधानमंत्री या अन्य कोई अन्य महत्वपूर्ण नेता आता है तो सेनाध्यक्ष उससे मिलते ही हैं। कमर जावेद बाजवा भी उसी रिवायत को आगे बढ़ा रहे थे। अब वे रिटायर हो गए हैं। नए सेनाध्यक्ष के बारे में अभी कुछ नहीं कहना चाहिए। उनका कार्यकाल अभी चालू ही हुआ है। बाजवा को या उनसे पहले के जनरलों को डिप्लोमेसी की कोई समझ नहीं थी। बाजवा 23 जुलाई, 2019 को वाशिंगटन में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात करते हैं। इमरान खान को यह समझ नहीं आ रहा था कि सेनाध्यक्ष डिप्लोमेसी में क्यों दखल दे रहा है। इसलिए दोनों के बीच दूरियां बढ़ती गईं। गौर करें कि इमरान खान की रूस यात्रा के बाद उनके खिलाफ विपक्ष लामबंद हुआ। वे दावा कर रहे थे कि अमेरिका उनकी सरकार को हटाना चाहता है। दूसरी तरफ, बाजवा अमेरिका को पाक साफ बताते रहे। अब उनकी थू थू हो रही है।
पाकिस्तानी सेना देश की सरहदों की रक्षा करने में नाकाम रही है। उसे भारत से 1948,1965, 1971 और फिर करगिल में कसकर मार पड़ी थी। पर कुत्ते की पूंछ कभी सीधी नहीं होता ना । यही हाल पाक सेना का है। रस्सी जल गई पर ऐंठन बाकी है I
पाकिस्तान में सेना के चरित्र को जानने–समझने के लिए हमें इतिहास के पन्नों को खंगाल लेना होगा। पाकिस्तान 14 अगस्त, 1947 को दुनिया के मानचित्र पर आता है। वहां पर पहले ग्यारह साल तो आर्मी अपनी छावनियों में रही। इस बीच पाकिस्तान के दो शिखर नेता मोहम्मद अली जिन्ना 1948 में और फिर लियाकत अली खान 1951 में संसार से विदा हो गए। यूपी, हरियाणा और दिल्ली से समान रूप से संबंध रखने वाले लियाकत अली खान की 1951 में रावलपिंडी के आर्मी हाउस के करीब एक पब्लिक मीटिंग के दौरान हत्या कर दी जाती है। इतने भयावह हत्या कांड के दोषियों के नाम या हत्या के पीछे की गुत्थी कभी सामने नहीं आई। पाकिस्तान आर्मी के लिए साल 1958 खास रहा। वहां पर तब मीर जाफर के वंशज (सच में) प्रधानमंत्री इस्कंदर मिर्जा 27 अक्तूबर, 1958 को देश के संविधान को भंग करने के बाद देश में मार्शल लॉ लागू कर देते हैं। मिर्जा ने इसके बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) में पढ़े पर बिना कोई डिग्री लिए वहां से निकले अयूब खान को आर्मी चीफ बना दिया। पर मिर्जा जिसे अपना समझते थे उसी अयूब खान ने उन्हें तेरह दिनों के बाद सत्ता से बेदखल कर दिया। अयूब खान सत्ता पर काबिज हो गए। मिर्जा के प्रधानमंत्री बनने तक तो पाकिस्तान में जम्हूरियत की बयार बही और उसके बाद वह हमेशा- हमेशा के लिए बंद हो गई। फिर वहां पर आर्मी का सिक्का कायम हो गया। आर्मी ने मुल्क के विदेशी और घरेलू मामलों में भी दखल देना चालू कर दिया। यही से पाकिस्तान बर्बाद होने लगा।
अब हम फिर से अपने मूल विषय पर वापस आएंगे। हम बात कर रहे थे पाक हाई कमीशन में भारतीय महिला के साथ हुए यौन शोषण की। यह बेहद शर्मनाक घटना है। इस पर भारत का रुख भी सख्त है। भारत किसी भी सूरत में अपने किसी नागरिक का अपमान स्वीकार नहीं कर सकता। यह बात पाकिस्तान को अच्छी तरह समझ लेनी होगी।
लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद – आर.के. सिन्हा