डेस्क। आज के समय में हर कोई सोशल मीडिया का ऐसा दीवाना है की इसे एक स्वैच्छिक गुलामी कहना गलत नहीं होगा। टेक्स्ट मेसेज, वीडियों कॉल या पोस्ट के जरिए हम पल-भर में सभी के पास पहुंच जातें है..पर एक ऐसा भी समय था जब हर सदेंश पोस्ट के द्वारा लोगों तक पहुंचता था। पर इंटरनेट की इस तेजी से भागती दौड़ती दुनिया में पोस्ट कार्ड बहुत पीछे रह गया है। आज लोग ईमेल, एसएमएस, ट्विटर, व्हाट्सएप और फेसबुक के आदी हो चुके है.. पर आप सोच रहे होंगे कि हम आज ये बाते क्यों कर रहें हैं।
दरअसल, आज के दिन ही भारत में पोस्टकार्ड की आधिकारिक शुरुआत 1 जुलाई, 1879 को मानी जाती है। भले ही इसका उपयोग आज न होता हो पर इस दिन की महानता भारतीय इतिहास में घटने वाली नहीं।
हाल ही के वर्षों में आई संगीता और रत्नेश माथुर की किताब में इस बात का विस्तार से जिक्र भी किया गया है कि शुरुआत में इसे किस तरह लोगों ने हाथों हाथ लिया। किताब में जिक्र मिलता है कि महज चार साल के बाद 1883 में यह लाखों की संख्या में बिकना शुरू हो गए। न केवल अंग्रेजों ने बल्कि भारतीयों ने भी इस नई सुविधा का खुलकर लाभ उठाया और दशकों तक अपने परिचितों और परिजनों का सुख-दुख बांटने के लिए इसका इस्तेमाल भी किया।
दो दशक पहले मोबाइल फोन ने पोस्टकार्डों की बादशाहत को निस्तोनाबूद कर दिया था, इसके SMS नाम के तीर ने रोलआउट होते ही पोस्टकार्डों को छिन्न-भिन्न कर डाला। साथ ही व्हाट्सप्प ने आते ही एसएमएस के चलन को भी दरकिनार कर दिया।
आज के हालात ये हैं कि दिल्ली जैसी जगह जहां की आबादी लबालब भारी हुई है वहां मुश्किल से कुछ हजार पोस्टकार्ड ही बिक पाते है; पर whatsapp मेस्सज हर मिनट इतने होते है कि इनकी गिनती करना भी मुश्किल है।
साथ ही पोस्ट ऑफिस से जुड़े अधिकारियों की माने तो दिन में एक पोस्ट ऑफिस पर केवल 10 से 15 पोस्ट कार्ड का बिकना भी मुश्किल होता है।