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भारत मे हर साल बढ़ रहा हिंदी बोलने वालों का आकड़ा, लोगो ने इसे राजभाषा नहीं राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकारा

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दिल्ली| जब से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 37 वीं संसदीय राजभाषा की बैठक में यह बयान दिया है कि अन्य राज्यों के लोगों को भी हिंदी बोलना चाहिए और दो अलग अलग राज्य के लोगों को अंग्रेजी की को छोड़कर हिंदी में बात करनी चाहिए। गृह मंत्री के इस बयान के बाद देश मे हिंदी को लेकर बयान बाजी आरम्भ हो गई है। 

कई लोगों ने उनके इस बयान को इंगित करते हुए टिप्पणी की है। एआर रहमान ने भी अमित शाह के बयान के बाद एक ट्वीट कर हिंदी का विरोध किया। वही कई लोग गृह मंत्री के इस बयान का विरोध कर रहे हैं क्योंकि उन्होंने सभी के लिए 10 तक हिंदी अनिवार्य करदी है।

जाने अंग्रेजी के बीच हिंदी पसन्द करने वालो का आकड़ा:-

लेकिन इस विरोध के बीच अब हर कोई इस बात पर सवाल उठा रहा है कि वास्तव में भारत जैसे विशालकाय देश मे हिंदी का क्या औचित्य है। जहां भाषा की उत्पत्ति संस्कृत से मानी गई है वहां हिंदी अपना को तबजुब देने वाले कितने लोग हैं और कितने लोग हिंदी भाषा का उपयोग कर रहे हैं और अंग्रेजों की अंग्रेजी से पहले हिंदी हो महत्व दे रहे हैं। 
यदि हम वर्ष 2011 में हुई भाषाई जनगणना की बात करें तो इसमे 121 मातृ भाषाएं शामिल थी। जिन भाषाओं में संविधान की आठवीं अनुसूची में शमिल 22 भाषाओं को भी जोड़ा गया था। वही यदि हम हिंदी की बात करें तो जनगणना में पता चला की 52.8 करोंड व्यक्ति या 42.6 फीसदी की आबादी हिंदी प्रिय है जो हिंदी का सम्मान करती है और इसे न सिर्फ बोलते है बल्कि भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में पूजते हैं। वह हिंदी को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं और उसे राजभाषा न स्वीकार कर राष्ट्रभाषा के रूप में अपने मस्तिष्क पर बैठाए है।
वही यदि हम हिंदी भाषा के इतिहास की बात करें तो इसका इतिहास बेहद पुराना है। इसकी उत्पत्ति संस्कृत से मानी जाती है। क्योंकि जब संस्कृत शब्द ईरानियों के संपर्क में आया तो उन्होंने इसे हिन्दू बना दिया और हिन्दू से हिंदी बन गई। हिंदी संस्कृत, पाली, प्राकृत भाषा से होती हुई अपभ्रंश / अवहट्ट से गुजरती हुई हिंदी का रूप ले लेती है। इसका व्यापक प्रचार प्रसार भारतेंदु युग मे हुआ। प्राचीन काल मे भारत मे कई भाषाओं को महत्व देने की जगह लोग अपनी मूल भाषा जगत जननी हिंदी को महत्व देते थे और संस्कृत का मूल ज्ञान रखते थे।

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