राजनीति:- 1971 में इंदिरा हटाओ के नारे को मात देते हुए गरीबी हटाओ के नारे के साथ प्रचंड बहुमत से अपनी जीत हासिल करने वाली इंदिरा गांधी भारत के हर नागरिक के लिए उम्मीद बन गई। इंदिरा गांधी ने उस समय जनमत से जुड़कर राजनीति शुरू की ओर जनता का समर्थन प्राप्त कर सत्ता हासिल की। यह वही साल था जब इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने युद्ध मे पाकिस्तान को मात दी थी ओर बांग्लादेश दुनिया के नक्शे पर आया था। यह वह दौर था जब गूंगी गुड़िया कही जाने वाली इंदिरा गांधी लोगो के बीच दुर्गा बनकर सामने आई।
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जमीनी स्तर पर जुड़ी इंदिरा गांधी ने जनता का खूब दिल जीत लेकिन साल 1975 में इंदिरा गांधी का विरोध होने लगा। इंदिरा गांधी की सरकार गिरने की कगार पर आ गई। 25-26 जून रात इंदिरा गांधी ने रेडियो के माध्यम से देश मे आपातकाल की घोषणा करदी। इंदिरा गांधी ने कहा राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के आदेश पर संविधान की धारा 352 के अधीन ‘आंतरिक अशांति’ के तहत देश में आपातकाल की घोषणा की गई है। यह भारत का सबसे कठिन समय था। क्योंकि भारत के 21 महीने तक आपातकाल लगा रहा। यानी 26 जून 1975 से लगा आपातकाल 21 मार्च 1977 तक जारी रहा।
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आपातकाल का दौर काफी गम्भीर दौर रहा। लोगो के अधिकार उनसे छीन गए। चुनाव निरस्त हो गया। लोगो के पास उनके मौलिक अधिकार नही थे। बेबाक आवाज को दबाया जाने लगा। लोगो की भरभराकर गिरफ्तारी हुई। स्वतंत्र पत्रकारिता को दबाने का हर सम्भव प्रयास किया जाने लगा। देश संकट की आग में झुलस रहा है। लेकिन इस सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यह था कि जिस सरकार को जनता ने चुना, जिनके गरीबी हटाओ के वाक्य ने जनता का दिल जीता। वह तानाशाही सरकार कैसे बन गई। आखिर ऐसा क्या हुआ कि इंदिरा गांधी अपने ही चेहतो के लिए समस्या बनकर खड़ी हो गई। क्योंकि 1971 में जब इंदिरा गांधी की सरकार बनी तो इसने इंदिरा गांधी की छवि विकसित की लेकिन जब आपातकाल लगा तो इसके इंदिरा गांधी की छवि एक तानाशाही सरकार के रूप में बनाई।
जाने आपातकाल की वजह;-
जब देश मे इंदिरा गांधी की सरकार बनी तो उन्होंने प्रेस पर नियंत्रण पाने की कोशिश की उनका उद्देश्य प्रेस को सरकार के अधीन करना था। उसी कड़ी में इंदिरा सरकार, न्यायपालिका और प्रेस पर नियंत्रण की कोशिश में भी लग गई. 1967 में गोलकनाथ केस में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था देते हुए कहा कि संविधान के बुनियादी तत्वों में संशोधन का अधिकार संसद के पास नहीं है. इस फैसले को बदलवाने के लिए 1971 में 24वां संविधान संशोधन पेश किया गया। इंदिरा गांधी की यह कोशिश तब विफल हो गई जब केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 7-6 बहुमत के आधार पर 1973 में फैसला दिया कि संविधान की मूल भावना के साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती. न्यायपालिका के साथ कार्यपालिका का विवाद इस हद तक बढ़ गया कि एक जूनियर जज को कई वरिष्ठ जजों पर तरजीह देते हुए चीफ जस्टिस बना दिया गया. नतीजतन कई सीनियर जजों ने इस्तीफा दे दिया।
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1973 में अहमदाबाद में एलडी इंजीनियरिंग कॉलेज हॉस्टल मेस शुल्क में बढ़ोतरी की गई जिसके बाद छात्रों ने सरकार के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया। इस आंदोलन ने भ्रष्टाचार और आर्थिक संकट के खिलाफ उग्र रूप धारण किया और इसका नतीजा यह हुआ कि मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल को इस्तीफा देना पड़ा और राज्य में राष्ट्रपति लगाना पड़ा। इस आंदोलन के बाद कई ऐसे आंदोलन छिड़ गए जो सरकार की नीतियों के विरोध में थे।
1974 में जेपी ने छात्रों, किसानों और लेबर यूनियनों से अपील करते हुए कहा कि वे अहिंसक तरीके से भारतीय समाज को बदलने में अहम भूमिका निभाएं. इन सब वजहों से इंदिरा गांधी की राष्ट्रीय स्तर पर छवि प्रभावित हुई।
जब इंदिरा को जीत को मिली चुनौती:-
देश मे चल रहे आंदोलनों के बीच समाजवादी नेता राज नारायण ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में इंदिरा गांधी के लोकसभा चुनाव (1971) में जीत को चुनौती दी। राज नारायण ने आरोप लगाया कि चुनावी फ्रॉड और सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग के चलते इंदिरा गांधी ने वह चुनाव जीता। इस केस का फैसला करते हुए 12 जून, 1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के के जज जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी के निर्वाचन को अवैध ठहरा दिया. इंदिरा गांधी ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. 24 जून, 1975 को जस्टिस वीके कृष्णा अय्यर ने इस फैसले को सही ठहराते हुए सांसद के रूप में इंदिरा गांधी को मिलने वाली सभी सुविधाओं पर रोक लगा दी. उनको संसद में वोट देने से रोक दिया गया. हालांकि उनको प्रधानमंत्री पद पर बने रहने की छूट दी गई।
जब इंदिरा के खिलाफ गुंजा सिंहासन खाली करो की जनता आती है:-
25 जून, 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में जेपी ने इंदिरा गांधी के पद नहीं छोड़ने के लिए अनिश्चित काल का आंदोलन छेड दिया। उन्होंने रामधारी सिंह दिनकर की कविताओं से आंदोलन में जोश भर दिया। आंदोलन की गूंज जब इंदिरा के कानों में पड़ी तो सरकार में हलचल मच गई ओर उसी रात देश मे आपातकाल की घोषणा की गई। आपातकाल लगने के बाद लोगो के अधिकार खत्म कर दिये गए ओर धड़ाके से बुलंद आवाज को दबाया जाने लगा गिरफ्तारी होने लगी। यही वह दौर बना जो कांग्रेस के लिए आज तक नासूर बनता गया। आज भी आपातकाल को याद कर जनता कांग्रेस को अस्वीकार कर देती है।