सम्पादकीय;- धर्म एक ऐसा विषय है जिसके पक्ष में बोलने से चीजे सकारात्मक रहती है लेकिन यदि आप इसके विरोध में एक शब्द भी अपनी जुबां से निकाल दें तो समझ लीजिए यह शब्द अपके लिए गले की फांस बन जाएगा और सही पर भी आप धर्म पुरोधाओं के कटाक्ष का शिकार होंगे। जहां धर्म आज के समय मे इंसान के जीवन का आज हिस्सा बन गया है और यह इतना प्रभावशाली हों गया है कि इसके चलते मनुष्य मानवता की भेंट चढ़ा देता है। लेकिन इसी धर्म के रंग में आजकल भारत की राजनीति भी खूब गोते लगा रही हो।
चुनाव चाहे लोकसभा का हो या विधानसभा का राजनीति में मुद्दा एक ही उठता है धर्म।आज के समय मे भारतीय राजनीति का परिदृश्य धर्म का चोला ओढ़े हुए हैं और उसे अपने धर्म से ऊपर कुछ नहीं दिखाई देता। वही राजनेता अपने राजनीतिक हित हेतु अलग अलग धर्म का चोला पहनकर जनता के हितैषी बनते हैं और उनको धर्म के नाम पर अलग करके अपने राजनीतिक कल्याण की फूली फूली रोटियां सेंकते है और पूरे पांच वर्ष तक उसे खाते हैं।
भारत और राजनीतिक:-
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वैसे तो भारत विभिन्न जातियों वाला देश है यह अलग लग धर्म और जाति के लोग रहते हैं। वही अगर हम वर्ष 1991 में हुआ जनगणना पर गौर करें तो भारत मे हिंदुओं की आबादी 82.80% है जबकि मुस्लिम 11.70% हैं। वही भारत के संविधान ने भारत को धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया है। लेकिन जब 1857 में ब्रिटिश शासन के वक्त स्वतंत्रता संग्राम प्रभावित हुआ तो अंग्रेजो ने भारत मे फुट डालो रणनीति को अपना और भारत के राजाओं को अलग कर दिया। उन्होंने लोगो को धर्म और उनकी जातियों को आधर पर बांट दिया और एक एक राज्य के आधार पर भारत मे युद्द छेड़ उसपर अपना आधिपत्य स्थापित करना आरंभ कर दिया। वही इनके सत्ता में रहते भारत मे हिन्दू और मुस्लिम के मध्य कई दंगे हुए और तभी से राजनीति की अमुख सड़क हिन्दू मुस्लिम विवाद से होकर गुजरने लगी।
जब आजादी के बाद अपने मंसूबों में सफल हुए अंग्रेज और गहराई धार्मिक राजनीति:-
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वर्ष 1947 में जब भारत आजाद हुआ तो अंग्रेज अपने उद्देश्य में सफल हो चुके थे और वह हिन्दू और मुस्लिम को अलग अलग करके भारत विभाजन का कारण बने। वही आजादी के बाद भारत दो टुकड़ों में विभाजित हुआ और भारत का एक हिस्सा पाकिस्तान बना। इसी बटवारे के साथ भारत की राजनीति धर्म की राजनीति के पहिए के साथ गोल गोल घूमने लगी। हालाकि संविधान निर्माताओं ने भारत मे एकता का प्रचार प्रसार करने का अथक प्रयास किया लोगो को उनके अधिकारों से अवगत करवाया व भारत को धर्मनिरपेक्ष राज्य बताया। लेकिन धर्म की राजनीति के सामने संविधान निर्माताओं के संघर्ष ने घुटने टेक दिए और भारत मे धर्म की राजनीति फल फूल गई।
वही अगर हम धर्म की राजनीति पर गौर करें तो प्रत्येक राजनीति दल अब सत्ता के लाभ हेतु इसी फार्मूले का उपयोग कर रहा है। भारत मे आज के समय चुनाव से पूर्व धर्म का गुंजन होता है। राजनीति दल अपने हित हेतु धर्म का उपयोग करते हैं और सत्ता का सुख भोगते है। धर्म की राजनीति का सबसे बड़ा उदाहरण केरल की सत्ता में कांग्रेस का आना और वामपंथी दलों का मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन, मुस्लिम पर्सनल लॉ का न होना, इंदिरा गांधी का जामा मस्जिद के शाही इमाम अब्दुल्ला बुखारी के साथ बैठक, किसी भी धर्म पर आधारित राजनीति के उदाहरण हैं। इसके अलावा राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद का विवाद धार्मिक राजनीति विवाद का बड़ा मुद्दा बना और इसके सहारे पर यूपी में भाजपा की जीत का डंका बना। भाजपा आरम्भ से राम जन्म भूमि के समर्थन में रही लेकिन इसके पीछे छुपी वास्विकता राम प्रेम से ज्यादा हिंदुओ को अपने समर्थन में करना था। वही इस आंदोलन ने हिंदुओ को भाजपा का समर्थक बना दिया।
वर्तमान समय मे धर्म के नाम पर हो रहा कितना बड़ा राजनीतिक खेल:-
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आज के समय मे प्रत्येक दल धर्म के नाम पर जनता की भावनाओं के साथ खेल रहा है। हर किसी को यह लगता है कि आज यदि वह सत्ता में आना चाहता है तो उसे धर्म का इक्का फेंकना ही पड़ेगा। अगर हम बात अभी हाल ही में हुए यूपी विधानसभा चुनाव की बाद करें तो इसके हमे धर्म के अनेको रंग दिखे। कभी चुनाव से पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी पहुंचते हैं और काशी विश्वनाथ मंदिर में शिव की पूजा आराधना कर जनता को लुभाने की कोशिश करते हैं। तो कभी कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी लाइन में लग कर मंदिर में आम जनमानस की भांति पूजा करने पहुंच जाती है। कभी परशुराम जयंती पर अखिलेश जनता को धर्म के नाम पर आकर्षित करने की कोशिश करते हैं तो कभी एआईएमआईएम प्रमुख खुद को मुस्लिम हितैषी बताते है और अन्य पार्टियों को मुस्लिम विरोधी बताते हैं।
वही अगर हम बात उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की करे तो यह डंके की चोट पर खुद को हिन्दू कहते हैं और हिन्दू के समर्थन में हमेशा खड़े रहते हैं। एक मुख्यमंत्री के तौर पर यह सभी को समान भाव से देखने की बात करते हैं लेकिन कहीं न कहीं इनका झुकाव हिंदुओ के प्रति अधिक रहता है। वैसे योगी आदित्यनाथ का भगवा चोला भी राजनीतिक में काफी अहम भूमिका निभाता है और प्रत्येक ब्राह्मण और क्षत्रिय उनके भगवा चोले पर मोहित है और उन्हें हिन्दू ह्रदय सम्राट के नाम से जानता है।
राजनीति में गानों का पोस्टमार्टम:-
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यह ट्रेंड भारत की राजनीति में बिल्कुल नया आया है या यूं कहें की जब से भारत मे भाजपा की सरकार आई है इस ट्रेंड ने जोर पकड़ लिया है। यूपी चुनाव के दौरान ये भगवा रंग, जो राम को लाए हैं, शोर है योगी योगी, योगी राज में नहीं चलेगी बाते तालिबान की, योगी से डर लगता है तो यूपी छोड़ दो जैसे गानों ने खूब सुर्खियां बटोरी इन गानों को जवाब देने के लिए विपक्ष ने भी कदम बढ़ाए लेकिन विपक्ष इस फॉर्मूले को नहीं अपना सका और हर ओर यूपी में भगवा रंग छा गया। इन गानों ने न सिर्फ धर्म की राजनीति की बल्कि हर किसी को एक विशेष दल की ओर आकर्षित किया व जनता को यह बता दिया की आज के समय मे धर्म किंतना महत्वपूर्ण है।
गुजरात मे भी गुंजा धर्म:-
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इस साल के अंत मे गुजरात मे विधानसभा चुनाव होने को है यहां पिछले 30 सालों से भाजपा सत्ता में है वही कांग्रेस यहां लगातार संघर्ष कर रही है और सत्ता में आने की कवायद में जुटी है। कांग्रेस के पाटीदार नेता ने हिन्दू हितैषी बताते हुए भाजपा का दामन थाम लिया और कहा की कांग्रेस एक ऐसा दल है जो हिंदुओ के पक्ष में नहीं बोलती वही कांग्रेस के एक नेता के बयान पर कहा जाने क्यों इन कांग्रेसियों को राम से इतनीं नफरत है। वही उन्होंने भाजपा को राज्य की कल्याणकारी पार्टी बताया और 2 जून को वह भाजपाई हो गए। हार्दिक के इन बयानों से यह स्पष्ट हो गया कि आज मुद्दों की राजनीति का कोई महत्व नहीं है अब जो धर्म का खेल जितनी मजबूती से खेलेगा सत्ता में वह उतनी मजबूती से टिकेगा।
वही भाजपा के इस हिन्दू कार्ड का सहारा लेकर अब गुजरात मे कांग्रेस भी सत्ता में वापसी करना चाहती है। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने गुजरात मे धर्म की राजनीति की थी और भाजपा को कांटे की टक्कर देते हुए कांग्रेस यहां बड़े विपक्षी दल के रूप में उभरी थी। वही इस बार भी गुजरात के धर्म की राजनीति होने के आसार दिखाई दे रहे हैं हालांकि केजरीवाल दिल्ली मॉडल का गुणगान करते रहते हैं लेकिन उनका यह पैतरा कितना सफल होगा यह आगामी वक्त ही बताएगा। क्योंकि यूपी के चुनाव में इन्होंने पलटी मारते हुए राम के धाम से अपनी चुनावी यात्रा की शुरुआत की थी।
वर्तमान में हुए दंगो का चुनावी कनेक्शन:-
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वैसे तो ज्ञानवापी मस्जिद विवाद पर भाजपा ने चुप्पी साध रखी है लेकिन उसकी इस चुप्पी को राजनीतीज्ञय विशेषज्ञ राज्यसभा चुनाव से जोड़ रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा हिन्दू कार्ड खेलना चाहती है और पुनः केंद्र में मोदी सरकार लाना चाहती है। भारत मे पिछले कई दिनों से हिन्दू मुस्लिम विवाद से जुड़े मुद्दे उफना रहे हैं और इन्हीं के इर्द गिर्द राजनीति हो रही है। कभी राम नवमी पर विवाद तो कभी हनुमान जयंती पर दंगा कभी अचानक से मस्जिद में शिवलिंग मिलना तो कभी मस्जिद ओर मंदिर के मुद्दे का जोर पकड़ना।
कभी मुगलों को मस्लिम का वंशज बताना तो कभी इतिहास में हुई घटनाओं के नाम पर दंगे करना और देश का माहौल खराब करना और फिर इन घटनाओं पर पक्ष विपक्ष की प्रतिक्रिया आना और अपने अपने टारगेटेड वोट बैंक का समर्थन कर उनका वोट बैंक हासिल करना आज की राजनीति का अहम हिस्सा है। आज राजनीति में मुद्दों से ज्यादा धर्म की चर्चा होती है और लोग धर्म के नाम पर अलग अलग राजनीति परिदृश्य के साथ बंटे हुए हैं।