क्यों निर्विरोध मिलनी चाहिए Draupadi Murmu को राष्ट्रपति की कुर्सी?
उनके (आदिवासी) जीवन को ध्वस्त कर हमने हमेशा छीने हैं मौके
Draupadi Murmu को रोकना देश को दे रहा गलत संकेत
चुनावी कुरुक्षेत्र नहीं बदलाव के नारे के साथ विपक्ष को करना चाहिए Draupadi Murmu का समर्थन
President Election 2022 । देश के सर्वोच्च राजनीतिक पद पर कौन होगा? क्या विपक्ष अपने आगे सत्तारूढ़ को नतमस्तक कर देगा या सत्ताधारी अपना रास्ता साफ करेंगे? इन दिनों इसी बात की चर्चा हर जगह हो रही है। क्या आपको पता है राष्ट्रपति को देश की संसद का एक अंग माना जाता है जिस कारण से यह चुनाव बेहद खास हो जाता है।
एक ओर भारतीय जनता पार्टी अलायन्स NDA की तरफ से द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया जाना ऐतिहासिक बताया जा रहा है।
पद की दावेदार, दमदार लीडर हैं Draupadi Murmu
बता दें कि दलितों के पास भीमराव आंबेडकर थे लेकिन आदिवासी समुदाय के पास कोई भी राजनैतिक आवाज़ नहीं थी। इसलिए देश के कोने-कोने में फैले होने के बाद भी उनका राजनैतिक प्रतिनिधित्व कभी प्रखर नहीं रहा। भारत को दो दलित राष्ट्रपति भी मिले जिनमें के आर नारायणन और कोविंद जी शामिल हैं लेकिन आदिवासी समुदाय से ना प्रधानमंत्री मिला और ना ही राष्ट्रपति, ना आज तक कोई वित्त मंत्री, रक्षा मंत्री और गृह मंत्री आदिवासी समुदाय से आया।
यशवंत सिंहा क्यों नज़र आ रहे लड़ाई से बाहर
बता दें कि कोई भी आदिवासी केंद्र में महत्वपूर्ण भूमिका में लंबे समय तक नहीं रहा है लेकिन द्रौपदी मुर्मू की दावेदारी की घोषणा के बाद राजनैतिक समीकरण बदला हुआ नजर आ रहा है। टीएमसी के नेता यशवंत सिन्हा संपूर्ण विपक्ष के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बने हैं।
राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार वो हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं।क्योंकि उनकी दावेदारी से विपक्ष के एकजुट होने के आसार नजर नहीं आ रहे। विशेषज्ञ बताते हैं कि कलाम साहब के वक़्त जो हुआ वो ही सभी राजनीतिक पार्टियों को करने की कोशिश करनी चाहिए। उनके अनुसार मुर्मू का समर्थन होना चाहिए और केवल विरोध के नाम पर उम्मीदवार नहीं आना चाहिए।
बता दें कि आज लेफ्ट भारतीय राजनीति में मायने ही नहीं रखती है। उसे कोई पूछता ही नहीं है। यशवंत सिन्हा जी भी पिछड़े लोगों की राजनीति करते है तो उनको मुर्मू जी की उम्मीदवारी का पूर्ण समर्थन करना चाहिए। जिससे देश में सही संकेत जाएगा और आदिवासी समाज को भी लगेगा कि उनके साथ न्याय हो रहा है। अगर यशवंत ऐसा नहीं करते है तो यह पूर्ण रूप से आदिवासी लोगों की खिलाफत मानी जाएगी।
क्या आप जानते हैं कि आज़ादी के बाद अगर किसी ने सबसे ज़्यादा तकलीफ का सामना किया है तो वो आदिवासी समाज ने किया है क्योंकि विकास के नाम पर उनके जंगल काटे गए। उसकी लाइफ में हमने इंटरफेयर किया पर उनको कभी समाज से जुड़ने की नहीं दिया।
द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनने से रोकना गलत
इस बात पर कई दल ये कहेंगे कि उनकी लड़ाई मुर्मू से नहीं बल्कि संघ से है। लेकिन इस दावेदारी ने सिद्ध कर दिया है कि संघ आज दलित और आदिवासियों के ज़्यादा करीब जा खड़ा है। मुर्मू जी को कोई राष्ट्रपति बनने से नहीं रोक सकता। ऐसे में यशवंत सिंहा को विवेक रख विचार करना चाहिए और निविरोध ही यह चुनाव भाजपा के खेमे में डाल देना चाहिए।
जिन लोगों ने देश के विकास के लिया अपना जंगल, अपना घर खोया है अगर उनमें से निकला कोई व्यक्ति बिना विवाद के देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति पर जाएगा तो निसन्देश ही यह पूरे समाज के लिए एक अच्छा सन्देश बनेगा। इसी कारण से मुर्मू को बिना लड़े ही राष्ट्रपति भवन भेजने की चेष्टा होनी चाहिए।