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कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला करवा चौथ का त्यौहार उत्तर भारत में विवाहित महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह पर्व अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना से जुड़ा है। इस दिन महिलाएँ सूर्योदय से लेकर चाँद को देखने तक निर्जला उपवास रखती हैं, यह उपवास केवल भोजन और पानी का त्याग ही नहीं, अपितु अपने पति के प्रति अटूट प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। इस पूरे अनुष्ठान में ‘सरगी’ का विशेष महत्व है। यह एक ऐसा प्रातःकालीन भोजन है जो सास द्वारा अपनी बहू को सूर्योदय से पहले दिया जाता है। आइये, करवा चौथ के इस महत्वपूर्ण पहलू – सरगी – पर विस्तार से चर्चा करते हैं।

सरगी: एक पौष्टिक प्रातःकालीन भोजन

सरगी की सामग्री और महत्व

सरगी में आमतौर पर फल, मिठाइयाँ, सूखे मेवे, और पानी या दूध शामिल होता है। यह एक ऐसा भोजन है जो महिलाओं को पूरे दिन के उपवास में सहयोग देता है। यह केवल पेट भरने का साधन नहीं, अपितु शक्ति और ऊर्जा प्रदान करता है जिससे महिलाएँ बिना पानी और भोजन के पूरे दिन का व्रत आसानी से कर सकें। सरगी में शामिल विभिन्न खाद्य पदार्थों का चुनाव भी इसीलिए ध्यान से किया जाता है ताकि पूरे दिन के लिए आवश्यक पोषक तत्व शरीर को प्राप्त हो सकें। फलों में मौजूद विटामिन्स और खनिज, सूखे मेवों में पाए जाने वाले ऊर्जा-वर्धक गुण और मिठाइयों की थोड़ी सी मात्रा व्रत को सहन करने की क्षमता को बढ़ाते हैं।

सास-बहू के रिश्ते का प्रतीक

सरगी सिर्फ एक भोजन नहीं बल्कि सास-बहू के बीच प्रेम और सम्मान के भाव का प्रतीक भी है। साँस द्वारा अपनी बहू को सरगी प्रदान करना, दोनों के बीच बंधन को मजबूत करता है और भावनात्मक लगाव को बढ़ावा देता है। यह एक ऐसा परंपरागत अनुष्ठान है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आ रहा है, और पारिवारिक मूल्यों को संजोए रखने में सहायक होता है। साँस के आशीर्वादों से बहू को सुखमय वैवाहिक जीवन की कामना और शारीरिक स्वास्थ्य की प्रार्थना भी जुड़ी होती है। इस प्रकार, सरगी मात्र एक भोजन ही नहीं है बल्कि आशीर्वादों और स्नेह से भरपूर एक अनुष्ठान है। यह रिश्ता और विरासत दोनों का प्रतीक है।

करवा चौथ की पूजा और चंद्रोदय

पूजा विधि और समय

सरगी के बाद, महिलाएँ चंद्रोदय के बाद चाँद की पूजा करती हैं। इस पूजा में विभिन्न मंत्रों का जाप और प्रार्थनाएँ शामिल होती हैं। पूजा का समय और चंद्रोदय का समय क्षेत्र के आधार पर भिन्न हो सकता है, इसलिए महिलाओं को अपने क्षेत्र के अनुसार समय की जांच करना जरूरी है। इस वर्ष चंद्रोदय के बाद महिलाओं को अपने पति का चेहरा छलनी में देखकर चाँद को जल अर्पित करना चाहिए और उसके पश्चात पति के हाथों से जल या भोजन ग्रहण कर व्रत तोड़ना चाहिए। इस समय तक महिलाओं का धैर्य और समर्पण परीक्षा में होता है, जोकि व्रत के महत्व को और भी अधिक स्पष्ट करता है।

चांद का महत्व और व्रत का समापन

चाँद का इस पर्व में महत्वपूर्ण स्थान है। चाँद को देखकर व्रत तोड़ना करवा चौथ की पूजा की परंपरा का एक अभिन्न अंग है। चाँद को पवित्र माना जाता है, और चाँद को देखकर व्रत खोलने से पति की दीर्घायु और कुशलता की कामना की जाती है। चंद्रोदय के समय की सटीकता बहुत महत्वपूर्ण है। इस समय पर चाँद को देखकर व्रत तोड़ना पूरे व्रत के महत्व को पूरा करता है। यह परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है।

सरगी की परंपरा और आधुनिक परिवेश

परंपरा का बदलता स्वरूप

समय के साथ, सरगी की परंपरा में भी कुछ बदलाव आये हैं। जबकि मूल तत्व अपरिवर्तित रहे हैं, आजकल सरगी में कुछ नए खाद्य पदार्थ भी जोड़े जाते हैं, परन्तु मूल भावना वही रहती है। बदलते खानपान के तरीकों के साथ, सरगी की सामग्री और विधि में आधुनिकता के अनुकूल बदलाव दिखाई दे रहे हैं परंतु सरगी का पारम्परिक महत्व बना ही रहता है।

नई पीढ़ी और करवा चौथ

आधुनिक महिलाओं द्वारा सरगी की परम्परा को आगे बढ़ाया जा रहा है, वे इसे केवल एक रस्म नहीं, बल्कि अपने सांस्कृतिक मूल्यों को सम्भालने के एक तरीके के रूप में देखती हैं। नई पीढ़ी पुरानी परंपराओं को समझने और उनका पालन करने के साथ-साथ अपनी सुविधा के अनुसार बदलावों को भी अपनाती है परंतु मूल भाव और परंपरा को बचा कर रखती हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि कैसे पुरानी परंपराएं बदलते परिवेश में भी अपना महत्व बनाए हुए हैं।

निष्कर्ष : सरगी – एक रिश्ता, एक भावना

सरगी मात्र एक भोजन नहीं है, यह प्रेम, सम्मान, आशीर्वाद, और एक मजबूत पारिवारिक बंधन का प्रतीक है। यह करवा चौथ व्रत का एक अहम हिस्सा है जो सास-बहू के रिश्ते को और मजबूत करता है। यह परंपरा आधुनिक समय में भी अपनी सार्थकता बनाए रखे हुए है। इसके पारंपरिक स्वरूप को बनाए रखने के साथ नई पीढ़ी द्वारा भी इसे अपनाया जा रहा है।

मुख्य बिन्दु:

  • सरगी एक प्रातःकालीन पौष्टिक भोजन है जो करवा चौथ के उपवास में महिलाओं को शक्ति प्रदान करता है।
  • सरगी सास-बहू के बीच प्रेम और आशीर्वाद का प्रतीक है।
  • चंद्रोदय के बाद पति के चेहरे को छलनी में देखकर चाँद को जल अर्पित करना और व्रत खोलना करवा चौथ व्रत की मुख्य परंपरा है।
  • समय के साथ सरगी की सामग्री में कुछ परिवर्तन आये हैं, लेकिन इसका महत्व बिल्कुल अपरिवर्तित है।