वाराणसी, जिसे काशी के नाम से भी जाना जाता है, भारत की आध्यात्मिक राजधानी है और हिंदू धर्म के सबसे पवित्र शहरों में से एक है। यहीं पर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक, श्री काशी विश्वनाथ मंदिर स्थित है। सदियों से, इस पवित्र स्थल तक पहुँच श्रद्धालुओं के लिए एक चुनौती रही है, जिसके लिए उन्हें संकरी गलियों और भीड़-भाड़ वाले रास्तों से गुजरना पड़ता था। इस ऐतिहासिक समस्या का समाधान करने और मंदिर के गौरव को पुनर्स्थापित करने के उद्देश्य से, 'श्री काशी विश्वनाथ धाम' परियोजना, जिसे काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के नाम से जाना जाता है, का अनावरण किया गया है। यह परियोजना न केवल मंदिर परिसर का विस्तार करती है बल्कि इसे गंगा नदी से सीधा जोड़कर एक अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती है।काशी विश्वनाथ मंदिर का अपना एक समृद्ध और जटिल इतिहास रहा है, जिसमें कई बार विनाश और पुनर्निर्माण शामिल हैं। औरंगजेब द्वारा 1669 में इसे ध्वस्त करने के बाद, वर्तमान मंदिर का निर्माण इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने 1780 में करवाया था। समय के साथ, मंदिर के आसपास अनियोजित शहरीकरण के कारण गलियां बेहद संकरी हो गईं, जिससे तीर्थयात्रियों को असुविधा होती थी। गंगा स्नान के बाद सीधे मंदिर तक पहुँचने की इच्छा रखने वाले भक्तों के लिए यह यात्रा और भी कठिन थी। इस चुनौती को दूर करने और एक व्यवस्थित, स्वच्छ तथा सुलभ आध्यात्मिक वातावरण प्रदान करने की तत्काल आवश्यकता महसूस की गई, जिससे 'श्री काशी विश्वनाथ धाम परियोजना' की नींव पड़ी।काशी विश्वनाथ कॉरिडोर (काशी विश्वनाथ धाम परियोजना) एक महत्वाकांक्षी शहरी नवीनीकरण परियोजना है जो लगभग 5 लाख वर्ग फुट क्षेत्र में फैली हुई है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
- गंगा से सीधा संपर्क: कॉरिडोर का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह मंदिर को सीधे गंगा नदी के घाटों से जोड़ता है। अब श्रद्धालु गंगा में पवित्र स्नान करने के बाद सीधे ललिता घाट से 'गंगा द्वार' के माध्यम से मंदिर परिसर तक पहुँच सकते हैं। यह मार्ग दिव्य और सुविधाजनक अनुभव प्रदान करता है।
- विस्तारित मंदिर परिसर: परियोजना ने मंदिर परिसर को लगभग 3,000 वर्ग फुट से बढ़ाकर 5 लाख वर्ग फुट से अधिक कर दिया है। इसके लिए सैकड़ों संपत्तियों का अधिग्रहण किया गया और उन्हें ध्वस्त किया गया, जिससे मंदिर के आसपास पर्याप्त खुला स्थान उपलब्ध हुआ।
- आधुनिक सुविधाएँ और अवसंरचना: कॉरिडोर में विभिन्न आधुनिक सुविधाएँ शामिल हैं, जिनमें यात्री सुविधा केंद्र, मुमुक्षु भवन (वृद्धों के लिए आवास), वैदिक केंद्र, भोगशाला, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, संग्रहालय और एक बहुउद्देशीय सभागार शामिल हैं। इन सुविधाओं का उद्देश्य तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को एक समग्र अनुभव प्रदान करना है।
- वास्तुकला और सौंदर्यशास्त्र: कॉरिडोर का डिज़ाइन भारतीय स्थापत्य कला और आध्यात्मिकता का एक सुंदर मिश्रण है। इसमें लाल बलुआ पत्थर का व्यापक उपयोग किया गया है, और परिसर के भीतर 24 से अधिक छोटे मंदिरों को पुनर्स्थापित किया गया है जिन्हें दशकों से संकरी गलियों में छिपा दिया गया था।
- सुरक्षा और पहुँच: विस्तृत गलियारे और खुले स्थान बेहतर भीड़ नियंत्रण और सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। दिव्यांगजनों और वरिष्ठ नागरिकों के लिए रैंप और अन्य पहुँच सुविधाएँ भी प्रदान की गई हैं।
- धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा: बेहतर सुविधाओं और पहुँच के साथ, यह कॉरिडोर धार्मिक पर्यटन को उल्लेखनीय रूप से बढ़ावा देगा, जिससे न केवल वाराणसी बल्कि पूरे पूर्वी उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था को लाभ होगा।
- सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण: परियोजना ने अनेक प्राचीन मंदिरों और मूर्तियों को प्रकाश में लाकर उन्हें संरक्षित किया है जो संकरी गलियों में गुम हो गए थे। यह भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में एक महत्वपूर्ण योगदान है।
- आध्यात्मिक अनुभव में वृद्धि: गंगा और विश्वनाथ मंदिर के बीच सीधा और भव्य संबंध श्रद्धालुओं को एक अविस्मरणीय आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है, जिससे उनकी धार्मिक यात्रा अधिक सार्थक और सुगम बनती है।
- रोजगार सृजन: निर्माण कार्य से लेकर पर्यटन और सेवा क्षेत्रों तक, कॉरिडोर ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर सृजित किए हैं।