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भारत में पोलियो के मामले की जानकारी को लेकर सरकार और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की ओर से जानकारी में पारदर्शिता की कमी चिंता का विषय है। मई 2023 में मेघालय के पश्चिम गारो हिल्स जिले में दो साल के बच्चे में पोलियो के लक्षण मिलने के बाद से ही, इस मामले से जुड़ी जानकारी को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय और मेघालय सरकार ने इस मामले की पूरी जानकारी सार्वजनिक नहीं की है, और WHO ने भी इस बारे में आधिकारिक घोषणा नहीं की है। यह लेख इस मामले की जांच-पड़ताल और इससे जुड़े विरोधाभासों पर प्रकाश डालता है।

मेघालय पोलियो मामले की पृष्ठभूमि और खोज

प्रारंभिक लक्षण और जांच

अगस्त 2023 के पहले सप्ताह में, मेघालय के पश्चिम गारो हिल्स जिले में एक दो साल के बच्चे में पोलियो के लक्षण दिखाई दिए। इसके बाद, ICMR-NIV मुंबई यूनिट ने इसकी जांच की, जो WHO द्वारा मान्यता प्राप्त पोलियो प्रयोगशाला है। 12 अगस्त को, ICMR ने इस बात की पुष्टि की कि बच्चे में पोलियो टाइप -1 वैक्सीन-व्युत्पन्न पोलियोवायरस (VDPV) था। इस परिणाम को स्वास्थ्य मंत्रालय, मेघालय सरकार और WHO के साथ साझा किया गया। CDC अटलांटा ने भी इसे टाइप 1 VDPV के रूप में पुष्टि की।

पोलियो वायरस का प्रकार और संक्रमण की संभावना

ICMR-NIV मुंबई यूनिट द्वारा किए गए अनुवर्ती परीक्षणों से पता चला कि बच्चे की प्रतिरक्षा प्रणाली सामान्य थी और समुदाय में वायरस के प्रसार का कोई प्रमाण नहीं था। इसलिए, इस मामले को immunodeficiency related vaccine-derived poliovirus (iVDPV) नहीं माना गया। यह एक VDPV टाइप-1 था, जिसका कारण द्विसंयोजक मौखिक पोलियो टीके में इस्तेमाल किया गया लाइव, कमजोर टाइप-1 वायरस स्ट्रेन का उत्परिवर्तन था। यह स्ट्रेन पूर्ण रूप से टीकाकरण नहीं होने वाले बच्चे में पोलियो पैदा करने में सक्षम हो गया था। क्योंकि समुदाय में वायरस का प्रसार नहीं हुआ, इसलिए इसे circulating VDPV (cVDPV) टाइप-1 नहीं कहा गया।

WHO और GPEI की प्रतिक्रिया में विसंगतियाँ

WHO ने सितंबर 2023 में द हिंदू को मामले की जानकारी दी थी, लेकिन इसके बावजूद, अपनी वेबसाइट पर इस मामले के बारे में कोई जानकारी नहीं दी और न ही आधिकारिक घोषणा की। अक्टूबर में, WHO ने द हिंदू के इस विषय से संबंधित प्रश्नों का जवाब नहीं दिया। इसी प्रकार, ग्लोबल पोलियो इरेडिकेशन इनिशिएटिव (GPEI) ने भी इस मामले पर कोई आधिकारिक बयान नहीं जारी किया। यह उल्लेखनीय है कि पिछले वर्षों में, GPEI ने अन्य देशों में पोलियो के मामलों के बारे में तुरंत घोषणा की थी। उदाहरण के लिए, इज़राइल और न्यू यॉर्क में पोलियो के मामलों की जानकारी GPEI ने बहुत जल्दी जारी की थी। लेकिन मेघालय के मामले में GPEI और WHO की तरफ से सुस्त प्रतिक्रिया चौंकाने वाली है।

पारदर्शिता और जानकारी के प्रसार में कमी

WHO की अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियमों (2005) में कहा गया है कि गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य घटनाओं पर जानकारी उपलब्ध कराई जा सकती है, अगर आधिकारिक और स्वतंत्र जानकारी के प्रसार की आवश्यकता हो। लेकिन मेघालय पोलियो मामले की जानकारी WHO ने क्यों नहीं दी, यह एक गंभीर सवाल है। यह WHO की ओर से पारदर्शिता की कमी को दर्शाता है। गुजरात में ज़ीका वायरस के मामलों में भी, स्वास्थ्य मंत्रालय ने जानकारी को छुपाने की कोशिश की थी, लेकिन WHO ने उस मामले की जानकारी दी थी। लेकिन मेघालय पोलियो मामले में WHO का व्यवहार भिन्न है। सरकार और WHO दोनों की चुप्पी जानकारी के प्रसार में रुकावट पैदा करती है और लोगों की चिंता को बढ़ाती है।

निष्कर्ष और आगे की राह

मेघालय के पोलियो मामले में सरकार और WHO दोनों की ओर से जानकारी को लेकर पारदर्शिता की कमी बेहद चिंताजनक है। पोलियो के उन्मूलन के प्रयासों के लिए, सार्वजनिक स्वास्थ्य के मामलों में पारदर्शिता अनिवार्य है। इस मामले से संबंधित सभी जानकारी सार्वजनिक करने और भविष्य में इस तरह की घटनाओं से बचने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। इसके अलावा, WHO और GPEI को अपनी प्रक्रियाओं की समीक्षा करनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भविष्य में इस तरह की घटनाओं के बारे में समय पर जानकारी दी जाए।

मुख्य बिन्दु:

  • मेघालय में दो साल के बच्चे में पोलियो का पता चला।
  • यह vaccine-derived poliovirus (VDPV) टाइप -1 का मामला था, समुदाय में इसका प्रसार नहीं हुआ।
  • WHO और GPEI ने इस मामले पर देर से प्रतिक्रिया दी और जानकारी को सार्वजनिक नहीं किया।
  • इस घटना ने सार्वजनिक स्वास्थ्य के मामलों में पारदर्शिता की आवश्यकता पर सवाल उठाया है।