उत्तर प्रदेश, भारत का सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य है, जिसका राजनीतिक परिदृश्य भारतीय संघ के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस प्रदेश के शासन प्रमुख के रूप में, मुख्यमंत्री की भूमिका राज्य की दिशा और दशा तय करने में निर्णायक होती है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने राज्य की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संरचना को आकार देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह लेख उत्तर प्रदेश के अब तक के मुख्यमंत्रियों की एक विस्तृत सूची उनके कार्यकाल सहित प्रस्तुत करता है, जो राज्य के प्रशासनिक इतिहास को समझने में सहायक होगी।
उत्तर प्रदेश का राजनीतिक महत्व
उत्तर प्रदेश, लोकसभा में सर्वाधिक सीटों वाला राज्य होने के नाते, केंद्र की राजनीति में भी एक बड़ा प्रभाव डालता है। यहां के मुख्यमंत्री न केवल राज्य की करोड़ों जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं, बल्कि उनकी नीतियां और नेतृत्व राष्ट्रीय विमर्श को भी प्रभावित करते हैं। राज्य के मुख्यमंत्रियों की सूची प्रदेश के राजनीतिक सफर, गठबंधन की सरकारों, और विभिन्न दलों के उत्थान-पतन की गाथा कहती है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री: एक विस्तृत सूची
आजादी के बाद से, उत्तर प्रदेश ने कई दूरदर्शी और प्रभावशाली मुख्यमंत्रियों का नेतृत्व देखा है। यह सूची उनके कार्यकाल और राजनीतिक संबद्धता को दर्शाती है:
- गोविंद बल्लभ पंत (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस): 15 अगस्त 1947 - 27 मई 1954
- संपूर्णानंद (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस): 28 मई 1954 - 6 दिसंबर 1960
- चंद्रभानु गुप्त (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस): 7 दिसंबर 1960 - 2 अक्टूबर 1963
- सुचेता कृपलानी (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस): 2 अक्टूबर 1963 - 13 मार्च 1967 (उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री)
- चंद्रभानु गुप्त (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस): 14 मार्च 1967 - 2 अप्रैल 1967
- चौधरी चरण सिंह (भारतीय क्रांति दल): 3 अप्रैल 1967 - 25 फरवरी 1968
- चंद्रभानु गुप्त (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस): 26 फरवरी 1969 - 17 फरवरी 1970
- चौधरी चरण सिंह (भारतीय क्रांति दल): 18 फरवरी 1970 - 2 अक्टूबर 1970
- त्रिभुवन नारायण सिंह (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (संगठन)): 18 अक्टूबर 1970 - 3 अप्रैल 1971
- कमलापति त्रिपाठी (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस): 4 अप्रैल 1971 - 12 जून 1973
- हेमवती नंदन बहुगुणा (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस): 8 नवंबर 1973 - 29 नवंबर 1975
- नारायण दत्त तिवारी (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस): 21 जनवरी 1976 - 30 अप्रैल 1977
- राम नरेश यादव (जनता पार्टी): 23 जून 1977 - 28 फरवरी 1979
- बनारसी दास (जनता पार्टी): 28 फरवरी 1979 - 17 फरवरी 1980
- विश्वनाथ प्रताप सिंह (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस): 9 जून 1980 - 18 जुलाई 1982
- श्रीपति मिश्रा (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस): 19 जुलाई 1982 - 2 अगस्त 1984
- नारायण दत्त तिवारी (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस): 3 अगस्त 1984 - 24 सितंबर 1985
- वीर बहादुर सिंह (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस): 24 सितंबर 1985 - 24 जून 1988
- नारायण दत्त तिवारी (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस): 25 जून 1988 - 5 दिसंबर 1989
- मुलायम सिंह यादव (जनता दल): 5 दिसंबर 1989 - 24 जून 1991
- कल्याण सिंह (भारतीय जनता पार्टी): 24 जून 1991 - 6 दिसंबर 1992
- मुलायम सिंह यादव (समाजवादी पार्टी): 4 दिसंबर 1993 - 3 जून 1995
- मायावती (बहुजन समाज पार्टी): 3 जून 1995 - 18 अक्टूबर 1995
- मायावती (बहुजन समाज पार्टी): 21 मार्च 1997 - 21 सितंबर 1997
- कल्याण सिंह (भारतीय जनता पार्टी): 21 सितंबर 1997 - 12 नवंबर 1999
- राम प्रकाश गुप्ता (भारतीय जनता पार्टी): 12 नवंबर 1999 - 28 अक्टूबर 2000
- राजनाथ सिंह (भारतीय जनता पार्टी): 28 अक्टूबर 2000 - 8 मार्च 2002
- मायावती (बहुजन समाज पार्टी): 3 मई 2002 - 29 अगस्त 2003
- मुलायम सिंह यादव (समाजवादी पार्टी): 29 अगस्त 2003 - 13 मई 2007
- मायावती (बहुजन समाज पार्टी): 13 मई 2007 - 15 मार्च 2012
- अखिलेश यादव (समाजवादी पार्टी): 15 मार्च 2012 - 19 मार्च 2017
- योगी आदित्यनाथ (भारतीय जनता पार्टी): 19 मार्च 2017 - वर्तमान तक
यह सूची उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के राजनीतिक सफर और राज्य में उनके योगदान को संक्षेप में प्रस्तुत करती है। प्रत्येक मुख्यमंत्री ने अपने कार्यकाल के दौरान राज्य के विकास और प्रशासन में अद्वितीय भूमिका निभाई है, जिससे उत्तर प्रदेश की प्रगति को नई दिशा मिली है।
निष्कर्ष
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों की यह सूची राज्य की गतिशील राजनीति और लोकतांत्रिक परंपराओं का प्रमाण है। स्वतंत्रता के बाद से, विभिन्न राजनीतिक दलों और विचारधाराओं के नेताओं ने इस पद पर रहकर राज्य के करोड़ों निवासियों की सेवा की है। वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में, उत्तर प्रदेश अपनी विकास यात्रा जारी रखे हुए है, और यह सूची भविष्य के शोधकर्ताओं और आम नागरिकों के लिए राज्य के महत्वपूर्ण प्रशासनिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण स्रोत बनी रहेगी।