हिन्दू कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि होती है। इस वर्ष महाशिवरात्रि 11 मार्च को है। जागरण अध्यात्म में आज हम आपको दो ऐसे कार्य करने के बारे में बता रहे हैं, जिसे करके आप भगवान शिव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं। इन दो उपायों का जिक्र देवी भागवत पुराण में भी किया गया है। महाशिवरात्रि के दिन स्नान आदि से निवृत होकर आपको भगवान शिव की विधि विधान से पूजा करनी चाहिए। महाशिवरात्रि के दिन आप रुद्राक्ष और भस्म धारण करके शिव कृपा प्राप्त कर सकते हैं। आइए जानते हैं इनकी महत्ता के बारे में।
1. भस्म धारण करना
भगवान शिव की प्राप्ति के लिए भक्तों को भस्म धारण करना अत्यंत आवश्यक बताया गया है। इसे शिरोव्रत कहा जाता है। भस्म धारण करने का महत्व आप इस बात से समझ सकते हैं कि ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र आदि सभी देवता भी भस्म धारण करते हैं। देवीभागवत पुराण के अनुसार, जो व्यक्ति तीनों संध्याओं के समय भस्म से त्रिपुंड धारण करता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है और वह शिवलोक में स्थान प्राप्त करता है। पूरे शरीर में भस्म लगाने को भस्मस्नान की संज्ञा दी गई है।
2. रुद्राक्ष धारण करना
रुद्राक्ष धारण करने से व्यक्ति के सभी पाप कर्म मिट जाते हैं और वह शिव-सायुज्य की प्राप्ति करता है। इसके महत्व के बारे में एक कथा है। विन्ध्य पर्वत पर एक गर्दभ रुद्राक्ष ढोया करता था। एक दिन रुद्राक्ष ढोते समय ही गिरने से उसकी मौत हो गई। रुद्राक्ष के स्पर्श प्रभाव से वह गर्दभ शिवरुवरूप धारण करके शिवलोक चला गया। कहा गया है कि जो व्यक्ति रुद्राक्ष धारण करता है वो स्वयं शिवस्वरूप हो जाता है। रुद्राक्ष को श्रद्धापूर्वक पवित्रावस्था में ही धारण करना चाहिए। शिव मंत्रों की सिद्धि के लिए रुद्राक्ष की माला से जप करना चाहिए।
रुद्राक्ष की उत्पत्ति
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव त्रिपुरासुर के वध के लिए एक हजार वर्षों तक अघोरास्त्र नामक महान अस्त का चिंतन करत रहे। उस समय अत्यंत व्याकुल होकर उनके नेत्रों से अश्रुपात होने लगा। उनकी दाहिनी आंख से कपिलवर्ण, बाईं आंख से श्वेतवर्ण तथा तीसरी आंख से कृष्णवर्ण के रुद्राक्ष उत्पन्न हुए। ये रुद्राक्ष एक से लेकर 14 मुख वाले होते हैं। इनको शिव जी का विभिन्न स्वरूप माना जाता है।
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