img

[object Promise]

आगरा। हिन्दू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को तुलसी विवाह का आयोजन होता है। इस वर्ष तुलसी विवाह 25 नवंबर को है। इस दिन तुलसी की भगवान शालिग्राम से विधिपूर्वक विवाह किया जाता है। ज्योतिषाचार्य डॉ शाेनू मेहरोत्रा के अनुसार कार्तिक शुक्ल एकादशी को तुलसी का विवाह क्यों किया जाता है, इसके संदर्भ में एक पौराणिक कथा है, ​जिसमें वृंदा नाम की पतिव्रता स्त्री को भगवान विष्णु से शालिग्राम (पत्थर) स्वरुप में विवाह करने का वरदान प्राप्त हुआ था। विवाह के लिए शर्त थी कि वृंदा तुलसी का स्वरुप ले ले। वरदान के अनुसार, फिर तुलसी और शालिग्राम का विवाह हुआ।

तुलसी विवाह का महत्व

कार्तिक शुक्ल एकादशी को देवउठनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु योग निद्रा से बाहर आते हैं। उनके साथ सभी देवता भी योग निद्रा का त्याग कर देते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा होती है। फिर भगवान शालिग्राम और तुलसी का विवाह कराया जाता है। इस दिन से ही विवाह, मुंडन, उपनयन संस्कार जैसे मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।

तुलसी विवाह से लाभ

एकादशी के दिन तुलसी और भगवान शालिग्राम की विधिपूर्वक पूजा कराने से वैवाहिक जीवन में आ रही समस्याओं का अंत हो जाता है। जिन लोगों का विवाह नहीं हो रहा है, उन लोगों के रिश्ते पक्के हो जाते हैं। इतना ही नहीं, तुलसी विवाह कराने से कन्यादान जैसा पुण्य प्राप्त होता है।

विवाह की विधि

एकादशी के शाम को तुलसी के पौधे के गमला को गेरु आदि से सजाते हैं। फिर उसके चारों ओर ईख का मण्डप बनाकर उसके ऊपर ओढ़नी या सुहाग की प्रतीक चुनरी ओढ़ाते हैं। गमले को साड़ी में लपेटकर तुलसी को चूड़ी पहनाकर उनका श्रृंगार करते हैं। इसके बाद भगवान गणेश आदि देवताओं का तथा शालिग्राम जी का विधिवत पूजन करके श्रीतुलसी जी की षोडशोपचार पूजा ‘तुलस्यै नमः’ मंत्र से करते हैं। इसके बाद एक नारियल दक्षिणा के साथ टीका के रूप में रखते हैं तथा भगवान शालिग्राम की मूर्ति का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसी जी की सात परिक्रमा कराएं और आरती के पश्चात विवाहोत्सव पूर्ण करें। तुलसी विवाह में हिन्दू विवाह के समान ही सभी कार्य संपन्न होते हैं। विवाह के समय मंगल गीत भी गाए जाते हैं। राजस्थान में तुलसी विवाह को ‘बटुआ फिराना’ कहते हैं। श्रीहरि विष्णु को एक लाख तुलसी पत्र समर्पित करने से बैकुण्ठ लोक की प्राप्ति होती है।