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कोलकाता। आयुर्वेद में किडनी (गुर्दे) की बीमारी का असरदार इलाज संभव है। आयुर्वेद की दवा गुर्दे को नुकसान पहुंचाने वाले घातक तत्वों को भी बेअसर करती है। कोलकात्ता में चल रहे भारत अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान मेले में पहली बार आयुर्वेद दवाओं पर एक विशेष सत्र का आयोजन किया गया जिसमें गुर्दे के उपचार में इसके प्रभाव पर चर्चा की गई।

इस सत्र के दौरान एमिल फार्मास्युटिकल के कार्यकारी निदेशक संचित शर्मा ने आयुर्वेद के उपचार में प्रभावी दवा नीरी केएफटी के बारे में अब तक हुए शोधों का ब्यौरा पेश करते हुए कहा कि नीरी केएफटी गुर्दे में टीएनएफ अल्फा के स्तर को नियंत्रित करती है। टीनएफ एल्फा परीक्षण से ही गुर्दे में हो रही गड़बड़ियों का पता चलता है तथा यह सूजन आदि की स्थिति को भी दर्शाता है। टीएनएफ अल्फा सेल सिग्नलिंग प्रोटीन है।

शर्मा ने अपने प्रजेंटेशन में कहा कि नीरी के एफटी को लेकर अमेरिकन जर्नल ऑफ फार्मास्युटिकल रिसर्च में शोध प्रकाशित हो चुका है। इस शोध में पाया गया कि जिन समूहों को नियमित रूप से नीरी केएफटी दवा दी जा रही थी उनके गुर्दे सही तरीके से कार्य कर रहे थे। उनमें भारी तत्वों, मैटाबोलिक बाई प्रोडक्ट जैसे क्रिएटिनिन, यूरिया, प्रोटीन आदि की मात्रा नियंत्रित पाई गई। जिस समूह को दवा नहीं दी गई, उनमें इन तत्वों का प्रतिशत बेहद ऊंचा था। यह पांच बूटियों पुनर्नवा, गोखरू, वरुण, पत्थरपूरा तथा पाषाणभेद से तैयार की गई है।

उन्होंने कहा कि जिन लोगों के गुर्दे खराब हो चुके हैं लेकिन अभी डायलिसिस पर नहीं हैं, उन्हें इसके सेवन से लाभ मिलता है। उन्हें डायलिसिस पर जाने की नौबत नहीं आती है।

उन्होंने यह भी कहा कि आयुर्वेद में कई उपयोगी दवाएं हैं। आयुर्वेद में उन बीमारियों का उपचार है जिनका एलोपैथी में नहीं है। लेकिन उन्हें आधुनिक चिकित्सा की कसौटी पर परखे जाने और प्रमाणित किये जाने की जरूरत है। इस दिशा में डीआरडीओ और सीएसआईआर ने कार्य किया है इस पर और ध्यान दिये जाने की जरूरत है।