img

[object Promise]

जब भी एक खास उम्र के बाद आंखों को यही आशंका होती है कि कहीं उन्हें कैटरेक्ट यानी मोतियाबिंद तो नहीं हो गया, पर यह जरूरी नहीं है। आंखों से जुड़ी एक और गंभीर समस्या है ग्लूकोमा, लेकिन जागरूकता में कमी के कारण इसकी ओर लोगों का ध्यान नहीं जाता। अगर सही समय पर उपचार न किया जाए तो इसकी वजह से आंखों की दृष्टि नष्ट हो जाती है।

क्या है मर्ज

हमारी आंखों में खास तरह का तरल पदार्थ होता है, जिसे एक्वस ह्यूमर कहा जाता है। इसी की वजह से आंखों का ठोस आकार बना रहता है, इसके निश्चित दबाब के कारण ही व्यक्ति आंखें खोल पाता है। आंखों और नाक के बीच में एक संकरी निकासी नली होती है, जिससे यह अतिरिक्त तरल पदार्थ थोड़ा-थोड़ा करके नाक के रास्ते से बाहर निकल जाता है। कभी-कभी निकास नली में रूकावट के कारण यह फ्लूइड आंखों में जमा होने लगता है और ऑप्टिक नर्व पर उसका दबाव बढ़ जाता है, जिससे उसके फाइबर्स नष्ट होने लगते हैं और आंखों की दृष्टि चली जाती है। यह नर्व ब्रेन को इमेज का मैसेज भेजती हैं और व्यक्ति को आसपास की चीज़ें दिखाई देती हैं, लेकिन ग्लूकोमा होने पर ऑप्टिक नर्व को धीमी गति से नुकसान पहुंचता है। शुरूआत में व्यक्ति सामने की इमेज तो देख पाता है लेकिन पेरिफेरल विज़न में लॉस के कारण वह अपने दाएं-बाएं चीज़ों को बिना गर्दन घुमाए देखने में असमर्थ होता है।

प्रमुख लक्षण

आंखों में तेज दर्द, रंगत का लाल होना, दृष्टि में धुंधलापन, तेज रोशनी में तकलीफ, किसी भी वस्तु के चारों ओर उसकी धुंधली छाया जैसी आकृति नजर आना और सिर में तेज दर्द आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं। गंभीर स्थिति में मरीज को वॉमिटिंग भी हो सकती है। हालांकि यह जरूरी नहीं है कि सभी मरीजों में इसके सारे लक्षण दिखाई दें।

क्या है उपचार

अगर शुरुआती दौर में इसकी पहचान हो जाए तो आई ड्रॉप के नियमित इस्तेमाल से इस समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है। क्लोज़ एंगल ग्लूकोमा की वजह से अगर ऑप्टिक नर्व पर ज्यादा प्रेशर पड़ रहा हो तो पेरिफेरल आईडेक्टॉमी नामक लेज़र तकनीक की मदद से एक छोटा-सा ड्रेनेज चैनल तैयार किया जाता है, जिससे आंखों में जमा होने वाले फ्लूइड को बाहर निकलने का रास्ता मिल जाता है और यह समस्या दूर हो जाती है। आजकल लेज़र के जरिए आंखों की सिंकाई की नई तकनीक भी आ गई है, जो कारगर साबित होती है। सर्जरी को अंतिम विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।