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मौजूदा भागमभाग भरी जिंदगी इंसानी दिनचर्या को बहुत प्रभावित क र रही है। इससे उच्च रक्तचाप व निम्न रक्तचाप से लोग पीड़ित हो रहे हैं। ऐसे लोगों के लिए आयुर्वेद का नुस्खा बहुत कारगर साबित होगा। बीएचयू के वेलनेस सेंटर के वैद्य नरेंद्र शंकर त्रिपाठी एवं वैद्य सुशील दुबे ने मंगलवार को बताया कि आयुर्वेद में ब्लड प्रेशर को रक्तगत वात कहा जाता है। आयुर्वेद के अनुसार हर 10 वर्ष पर व्यक्ति की प्रकृति बदलती है।

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पहले का 10 वर्ष बाल्यकाल होता है, 10 से 20 वर्ष तक लंबाई बढ़ती है, 20 से 30 वर्ष तक चेहरे की चमक में कमी आने लगती है, 30 से 40 वर्ष तक बुद्धि के विकास में कमी दिखाई देने लगती है, 40 से 50 वर्ष में त्वचा में झुर्रियां पड़ने लगती हैं। 50 से 60 वर्ष में आंखों की रोशनी कम होने लगती है, 70 से 80 वर्ष में वीर्य का क्षय होने लगता है, 80 से 90 वर्ष में भूलने की आदत हो जाती है और 90 से 100 वर्ष में व्यक्ति अशक्त हो जाता है।

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वैद्य सुशील दुबे ने बताया कि इन समस्याओं से बचने के लिए आयुर्वेद में वर्णन है। यदि व्यक्ति 40 वर्ष के बाद आयुर्वेद के रसायन और द्रव्य का सेवन करे तो वह कई बीमारियों से बच सकता है। आयुर्वेद में सिर को श्रेष्ठ अंग माना गया है। यदि मस्तिष्क में तनाव है तो मुलेठी को दूध के साथ शंखपुष्पी, गिलोय, अश्वगंधा और ब्राह्माी की चटनी बनाकर सुबह-शाम सेवन किया जाए तो कभी भी हाई या लो ब्लड प्रेशर नहीं होगा। इन औषधियों के पौधे 100 रुपये से कम कीमत में मिल जाते हैं और इन्हें घर में गमले में भी लगाया जा सकता है।

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वैद्य नरेंद्र शंकर त्रिपाठी का कहना है आयुर्वेद में सेंधा नमक का बहुत महत्व है। यह भी रक्तचाप को बढ़ने या घटने नहीं देता है। इसी कारण भारत में व्रत-उपवास के दौरान सेंधा नमक का प्रयोग वर्षो से प्रचलित है।प्रस्तुति: रामकुमार