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ध्वनि प्रदूषण से जन स्वास्थ्य के समक्ष खतरे बढ़ते जा रहे हैं। इस पर संसद और सरकार काफी पहले से चेत चुकी हैं और सर्वोच्च न्यायालय भी सुस्पष्ट व्यवस्थाएं दे चुका है, किंतु सामाजिक चेतना की कमी और धार्मिक हठवादिता के चलते वांछित परिणाम नहीं आ सके हैं। हाल में इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुलपति द्वारा अजान की वजह से नींद में खलल पड़ने की शिकायत के बाद से इस मुद्दे ने फिर से तूल पकड़ा है। इस मामले में कानून तो एकदम स्पष्ट है, बस कार्यान्वयन के लिए अधिकारियों में साहस व इच्छा शक्ति चाहिए।

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 15 को ‘ध्वनि प्रदूषण (विनियमन एवं नियंत्रण)नियमावली 2000 के नियम 5/6 के साथ पढ़ने पर यह संज्ञेय और गैर जमानतीय अपराध है, जिसमें पांच वर्ष तक की सजा और एक लाख रुपये तक के हर्जाने की व्यवस्था है। नियमावली में प्रदत्त अनुसूची के अनुसार आवासीय क्षेत्र में दिन की अवधि में ध्वनि का स्तर 55 डेसिबेल और रात में 45 डेसिबेल स्वीकार्य है।

धर्म के नाम पर लोग नियमों की धज्जियां उड़ाते हैं

कानूनी प्रविधानों में रात 10 बजे से प्रात: 6 बजे तक लाउडस्पीकर का प्रयोग वर्जति है। दिन में सक्षम प्रधिकारी की अनुमति लेना अनिवार्य होता है, लेकिन धर्म के नाम पर लोग नियमों की धज्जियां उड़ाते हैं तथा लोक जीवन से खिलवाड़ करते हैं। अजान, नमाज पढ़ने वालों का बुलावा है। इसी तरह रमजान में 3 बजे रात से ही सहरी खाने की पुकार लाउडस्पीकर पर होने लगती है। प्रश्न यह है कि जिसे नमाज/पूजा भक्ति करनी होगी या जिसे रोजे में, सुबह से पहले भोजन लेना होगा, उसे लाउडस्पीकर पर चिल्लाकर कहने का क्या औचित्य है?

देश का कानून भी तो कोई चीज है!

तीव्र ध्वनि तो आसपास रह रहे अन्य धर्मावलंबियों के भी कान में पड़ती है और उनकी निद्रा भंग हो जाती है। इनमें बूढ़े, बच्चे व बीमार लोग भी होते हैं। देश का कानून भी तो कोई चीज है! विधान सब पर समान रूप से लागू होना चाहिए। उसका पालन कड़ाई से हो। हिंदूू धर्म में ईश्वर को अंतर्यामी कहा गया है। कुरान शरीफ में कहा गया है कि खुदा नजदीक ही है।’ फिर शोर-शराबे और लाउडस्पीकर जैसेआडंबर के क्या मायने। कुछ वर्ष पूर्व पटना उच्च न्यायालय के एक न्यायमूर्ति को ऐसी ही शिकायत हुई थी। दिन में अजान की तेज आवाज से उन्हें न्यायिक कार्य में बाधा पड़ती थी। मुद्दा गर्माया था, किंतु मुस्लिम तुष्टीकरण के चलते उनका अन्यत्र स्थानांतरण कर दिया गया था। अब देखना है इस बार उठी इस बात पर शासन-प्रशासन क्या करता है? कानून का पालन या साहसहीन तुष्टीकरण!