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कई बार ऐसा होता है कि हमारी टांगों में मौजूद काफ मसल्स (टांगों का पिछला हिस्सा) की धमनियों में ब्लड क्लॉट बन जाता है। इसकी वजह से टांग सूजकर हाथी पांव जैसी हो जाती है और उसमें दर्द होता है। कैलाश हॉस्पिटल स्थित कार्डियॉलजिस्ट और वस्कुलर सर्जन डॉ. डी. एस गंभीर ने हमसे इस बीमारी पर विस्तार से बात की और बताया कि इससे क्या असर पड़ता है, क्या रिस्क है और इससे कैसे बचा जा सकता है।

केस स्टडी 1: प्रेग्नेंसी के दौरान कविता ने पांव की सूजन को सामान्य समझा। घर की बड़ी-बुजुर्ग महिलाओं ने भी उन्हें यही कहा कि इस दौरान वेट बढ़ने से पैरों में सूजन आना आम है और गुनगुने पानी में पैरों को सेंक देने से आराम मिल जाता है। लेकिन डिलीवरी के बाद पैरों की भी कविता के पैरों की सूजन कम होने की बजाए बढ़ने लगी और दर्द असहनीय हो गया और हॉस्पिटल में ऐडमिट होने की नौबत आ गई। डॉक्टरों ने बताया कि पैरों की सूजन सामान्य नहीं है बल्कि डीवीटी यानी बल्ड क्लॉट की बनने की वजह से है। कविता को कई दिन हॉस्पिटल में आईसीयू में रहना पड़ा।

केस स्टडी 2: 65 वर्षीय बुजुर्ग शांति देवी को कई दिनों तक पैरों में दर्द महसूस हुआ तो उन्हें लगा कि ज्यादा टहलने की वजह से उन्हें ऐसा हो रहा है। टहलना बंद करने के बाद भी पैरों का दर्द बंद नहीं हुआ और सूजन लगातार बढ़ती रही। गर्म पानी के सेक से भी आराम नहीं हुआ और नौबत यहां तक पहुंच गई कि दर्द के चलते रात को नींद आना भी बंद हो गया। जब सूजन काफ से लेकर जांघ तक पहुंच गई और एक पैर हाथी के पैर की तरह सूज गया तो उन्हें चेकअप के लिए हॉस्पिटल ले जाया गया जहां डॉक्टर ने उनका पैर देखते ही उन्हें तुरंत इमर्जेंसी में हॉस्पिटल में एडमिट करने के लिए कहा। वजह थी डीवीटी की गंभीर स्टेज जिसमें ब्लड क्लॉट किसी भी वक्त टूटकर हार्ट तक पहुंच सकते थे और ऐसे में मरीज के साथ कोई भी अनहोनी हो सकती थी।

क्या होता है डीवीटी?
हमारी टांगों में मौजूद धमनियां बॉडी के सभी हिस्सों से सारा गंदा खून इकट्ठा कर वापस दिल यानी हृदय में ले जाती हैं। जो धमनियां हृदय से शरीर के अन्य हिस्सों में खून ले जाती हैं उन्हें आर्टरी कहा जाता है। टांगों में मौजूद काफ मसल्स में धमनिया काफी अंदर होती हैं और उनमें कई बार ब्लड क्लॉट यानी खून का थक्का बन जाता है। इसी स्थिति को डीप वेन थ्रॉम्बोसिस यानी डीवीटी कहा जाता है।

3 मुख्य लक्षण जिनसे डीवीटी का पता चलता है

डीवीटी की वजह से चलने-फिरने में पैरों और टांगों में खिंचाव महसूस होने लगता है और तेज दर्द होता है। डॉक्टर के मुताबिक, दो-तीन ऐसे मुख्य लक्षण हैं जिनसे पता चलता है कि मरीज को डीप वेन थ्रॉम्बोसिस की बीमारी हो सकती है।

1- काफ मसल्स में दर्द
यह जरूरी नहीं कि दर्द चलने पर ही हो। कई बार रेस्टिंग स्टेज में भी होता है। यानी जब आप आराम कर रहे हो और जरा भी मूवमेंट नहीं हो। यह दर्द वक्त के साथ और भी खतरनाक हो जाता है।

2- काफ मसल्स में सूजन
टांगों में मौजूद काफ मसल्स में सूजन आ जाती है और अगर क्लॉट ऊपरी हिस्से में चले जाएं तो वहां भी सूजन आ सकती है।

3- लो ब्लड प्रेशर
अगर किसी व्यक्ति का ब्लड प्रेशर लो हो जाता है, बेहोशी आती है तो और ज्यादा लो रहता है तो उस स्थिति में हार्ट को ब्लड पंप करने में अत्यधिक मशक्कत करनी पड़ती है। इससे भी वेन्स में ब्लड क्लॉट बन सकता है।

किस वजह से डीवीटी होता है?
ब्लड क्लॉट यानी खून का थक्का तभी बनता है जब खून धमनियों को किसी तरह का नुकसान पहुंचता है। यह नुकसान सर्जरी की वजह से भी हो सकता है, हड्डी टूटने या फिर किसी अन्य ऐक्सिडेंट की वजह से भी।

किन लोगों को और किन परिस्थितियों में डीवीटी हो सकता है?
1- हमारा वर्क एन्वायरनमेंट ऐसा है कि सारे दिन बैठकर काम करते हैं। ओवरवेट भी हैं। पूरे दिन दिन टांग लटकाकर रहने से टांग में क्लॉट बनने लगते हैं। घंटों तक बैठे रहने और बिल्कुल भी टांग न हिलाने से डीवीटी हो सकता है।

2- अगर कोई बीमार है और लंबे समय से बिस्तर पर है तो उसे भी डीवीटी हो सकता है।

3- जो महिलाएं बर्थ कंट्रोल थेरपी या मेनॉपोज के दौरान हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरपी लेती हैं उनमें भी टांगो में खून का थक्का बनने लगता है जो डीवीटी की ओर इशारा करता है।

4- लेकिन ऐसे लोगों में दोबारा भी खून का थक्का बन सकता है जो या तो कैंसर के मरीज रहे हैं, लकवा से पीड़ित हैं या फिर बेड पर ही रहते हैं और चल-फिर नहीं सकते। अगर परिवार में किसी को कभी भी ब्लड क्लॉट रहा हो तो भी अन्य सदस्यों में यह अनुवांशिक तौर पर आ सकता है।

वृद्धावस्था और प्रेग्नेंसी में आम है डीवीटी
डीवीटी वृद्धावस्था में काफी आम होता है। 70-80 साल की आयु में व्यक्ति का वेन्स सिस्टम कमजोर हो जाता है। जब आदमी खड़ा होता है तो उसकी बॉडी का ग्रेविटी सिस्टम नीचे की तरफ होता है जबकि वेन्स ऊपर की तरफ ब्लड को प्रोपेल करती हैं। वृद्धावस्था में वेन्स कमजोर होने की वजह से उनका प्रोपेलिंग ऐक्शन कम हो जाता है और ब्लड एक ही जगह स्टेगनेट होकर क्लॉट बन जाता है।

प्रेगनेंट महिलाओं, खासकर मोटी महिलाओं में जब भ्रूण का विकास होता है तो उसका प्रेशर बढ़ता है जिससे यूटरस की वेन्स में ब्लड का फ्लो कम होने लगता है और वह स्थिर (स्टैग्नेंट) होने लगता है जिससे टांगों में क्लॉट होने लगते हैं।

क्रॉनिक स्मोकर्स में डीवीटी का ज्यादा खतरा
डॉक्टर के अनुसार, डीवीटी यानी डीप वेन थ्रॉम्बोसिस आदतों की वजह से भी हो सकता है जैसे कि स्मोकिंग, खासकर क्रॉनिक स्मोकर्स। ऐसे लोगों में डीवीटी का खतरा ज्यादा होता है।

कुछ ऐसी स्थितियां भी हैं जिनमें व्यक्ति को डीवीटी होने का चांस बढ़ जाता है। जैसे कि फ्रैक्चर और कैंसर। कैंसर में वैसे ही ब्लड प्रॉपर्टीज बदलने लगती हैं इसकी वजह से ब्लड क्लॉट हो सकता है। दिल के मरीजों में भी ब्लड क्लॉट होने का खतरा अधिक होता है।

डीवीटी कितने पर्सेंट लोगों को प्रभावित करता है?
डीवीटी बहुत ही असामान्य बीमारी है। लेकिन यह बीमारी किसी को भी और कभी भी गिरफ्त में ले सकती है। उन लोगों ज्यादा ध्यान रखना पड़ता है जो बूढ़े हैं। वृद्धावस्था में फ्रैक्चर होने के चांस अधिक बढ़ जाते हैं इससे व्यक्ति के एक ही जगह पर पड़े रहने की नौबत आ जाती है। इस स्थिति की वजह से उन्हें डीवीटी होने के चांस बढ़ जाते हैं। ओवरऑल देखा जाए तो यह बीमारी ज्यादा आम नहीं है लेकिन बुजुर्ग और प्रेगनेंट महिलाओं को खास सावधानी बरतने की जरूरत होती है।

कॉम्पलिकेशन्स
इसका सबसे बड़ा कॉम्पलिकेशन यही है कि इसमें असहनीय दर्द होता है और सूजन आ जाती है। मरीज कोई काम नहीं कर सकता। उसे पूरा रेस्ट चाहिए होता है और इसलिए उसे ऐडमिट करना जरूरी हो जाता है।

पल्मोनरी थ्रॉम्बोसिस-डीवीटी का खतरनाक रूप
क्लॉट कई बार छूटकर शरीर के अन्य हिस्सों और फेफड़ों में जा सकते हैं। अगर यह क्लॉट जाकर हार्ट के दाएं हिस्से में चला जाए तो वह हिस्सा डिस्लॉज होकर अलग हो जाता है। अगर क्लॉट बड़ा है तो यह पलमोनरी एम्बोलस पैदा कर सकता है। जो क्लॉट बनने के बाद छूट जाता है उसे एम्बोलस कहा जाता है और वह जब और भी टूटकर अन्य टुकड़ों में बंट जाता है तो उसे एम्बोलाई कहते हैं।

अगर क्लॉट बड़ा है और फेफड़े की मुख्य धमनी को ब्लॉक कर दे तो स्थिति खतरनाक हो सकती है। उस स्थिति को पल्मोनरी थ्रॉम्बोसिस कहा जाता है।

पलमोनरी एम्बोलस के लक्षण
लो ब्लड प्रेशर
हार्ट रेट बढ़ जाता है
मरीज को पसीना आता है और फिर वह बेहोश हो जाता है।
अगर ब्लड व्यक्ति के फेफड़े में जा ही नहीं रहा है और कोई बड़ा क्लॉट धमनियों के जरिए वहां जाकर बैठ गया, तो ब्लड फेफड़ों में जाएगा ही नहीं और उसका ऑक्सिजिनेशन नहीं होगा और जब ब्लड ऑक्सिजिनेट नहीं होगा तो व्यक्ति बेहोश हो जाएगा।

इलाज
जब तक डीवीटी टांग में है तब तक पूरा बेड रेस्ट। पहले 2-3 हफ्ते तक ऐडमिट करते हैं। इंट्राविनस ब्लड थिनर हिपैरिन दिया जाता है। यह एक बेहद स्ट्रॉन्ग ब्लड थिनर है जिससे क्लॉट घुल जाते हैं और धीरे-धीरे निकल जाते हैं। साथ में ऐंटीबायॉटिक और सूजन कम करने वाले ड्रग्स दिए जाते हैं।

डायग्नॉज के लिए वीनस डॉपलर टेस्ट किया जाता है उसी के बाद दवाई शुरू की जाती है। 2-3 हफ्ते बाद फिर से टेस्ट किया जाता है जिसमें देखा जाता है कि क्लॉट घुल रहे हैं या नहीं। अगर घुल जाते हैं तो फिर मरीज को छुट्टी दे दी जाती है और फिर उसके बाद उसे ओरल ब्लड थिनर दिया जाता है।

आजकल कुछ ऐसे ब्लड थिनर आ गए हैं जो एकदम सुरक्षित हैं और ये 6 महीने तक दिए जाते हैं। इन्हें NOACs (Novel oral anticoagulants) कहा जाता है। पुराने जमाने में कुछ ऐसे NOACs दिए जाते थे। वे अभी भी दिए जाते हैं पर वे थोड़े सस्ते हैं लेकिन इसमें कुछ पैरामीटर्स का ध्यान रखना होता है जैसे कि ब्लड ज्यादा पतला न हो और न ही कम। अगर ब्लड का पतला कम हो रहा है ज्यादा पतला नहीं हुआ है तो फिर यह प्रभावी नहीं है। इसे मॉनिटर करने के लिए दो टेस्ट होते हैं पीटी और आईएमआर…

6 महीने से 1 साल के अंदर ठीक हो जाता है डीवीटी
6 महीने से 1 साल के अंदर डीवीटी ठीक हो जात है। एकाध क्लॉट रह भी जाता है तो वह वक्त के साथ ऑर्गेनाइज हो जाते हैं और उनका छूटने का डर भी नहीं होता और दवाइयों से ठीक हो जाता है।

डीवीटी के लिए डायट
ऐसी कोई चीज नहीं जिसे खाने या ना खाने से नुकसान होगा। कई खास डायट नहीं। अगर मोटापे के शिकार हैं तो ऐसी चीजें ना खाएं जिससे मोटापा न बढ़े। हॉरमोन रिप्लेसमेंट थेरपी न लो, ओरल कॉन्ट्रैसेप्टिव न लें, डेस्क जॉब है तो घूमें…लॉन्ग जर्नी है तो अपने पैरों को हर दो घंटे में हिलाते रहिए।