एसिडिटी से बचने के लिए हमारे देश में बड़ी मात्रा में एंटासिड का सेवन किया जाता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए एंटासिड की बिक्री से जुड़ा नया नियम लागू किया गया है, जिसका मुख्य उद्देश्य रोगियों की सुरक्षा को बढ़ावा देना है। नए नियम के तहत एंटासिड के रैपर पर यह वॉर्निंग देना जरूरी होगा कि इसका उपयोग किडनी के लिए अत्यधिक हानिकारक हो सकता है।
भारत के ड्रग्स कंट्रोलर जनरल द्वारा मंगलवार को एक निर्देश जारी किया गया, जिसमें सभी राज्य नियामक अधिकारियों और प्रोटॉन पंप इनहेबिटर्स (पीपीआई) के प्रत्यक्ष निर्माताओं से पूछा गया कि एंटासिड बाजार का एक बड़ा हिस्सा है और काफी बड़ी मात्रा में लोग इस दवाई का सेवन करते हैं। लेकिन इस दवाई का एक प्रतिकूल प्रभाव गुर्दे के लिए बहुत अधिक घातक हो सकता है, इससे जुड़ी चेतावनी इस दवाई की पैकेजिंग में दी जानी चाहिए। जो इस दवाई का एडवर्स ड्रग रिऐक्शन (ADR) है। इसके साथ ही जिन दवाइयों में पैंटोप्राज़ोल, ओमेप्राज़ोल, लांसोप्राज़ोल, एसोमप्राज़ोल और उनके संयोजन शामिल हैं, उनकी पैकेजिंग के अंदर भी इस तरह की चेतावनी दी जाएगी। इसके लिए दवाई की पैकेजिंग में इस बारे में वॉर्निंग लिखा एक पेपर इंसर्ट किया जाएगा या प्रिस्क्रिप्शन ड्रग लेबल पर इस बारे में जानकारी को प्रमुखता से दिया जाएगा। हालांकि अभी तक इस पर दवाई के सुरक्षित और प्रभावी उपयोग के बारे में जानकारी दी जाती है।
आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि इस मुद्दे पर पिछले कुछ महीनों में कई विशेषज्ञों द्वारा मूल्यांकन और केस स्टडी की गई, जिसमें नैशनल को-ऑर्डिनेशन सेंटर फॉर फार्माकोविजिलेंस प्रोग्राम भी शामिल है। पिछले दिनों ऐंटिएसिडिटी पिल्स पर हुई ग्लोबल स्टडीज में यह बात सामने आई कि गैस और जलन जैसी दिक्कतों से बचने के लिए यूज की जाने वाली टैबलेट्स का लंबे समय तक सेवन करने पर किडनी डैमेज, एक्यूट रेनल डिजीज, क्रोनिक किडनी डिजीज और गैस्ट्रिक कैंसर जैसी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हावी हो सकती हैं। लेकिन यह स्टडी नेफ्रॉलजी जर्नल में ही पब्लिश हुई है, इस कारण हो सकता है कि बहुत सारे चिकित्सकों को इन दवाइयों के साइडइफेक्ट्स के बारे में ना पता हो।
प्रोटॉन पंप इनहेबिटर (PPI) दुनियाभर के टॉप 10 प्रिस्क्राइब्ड ड्रग्स की क्लास में शामिल है, जिन्हें एसिड और अपच की समस्या को दूर करने के लिए उपयोग में लाया जात है। लेकिन ऑर्थोपेडिक्स, कार्डियोलॉजी, आंतरिक चिकित्सा और सर्जरी जैसी विशेष स्थितियों में भी नियमित रूप से इसका उपयोग किया जाता है। जानकारी के मुताबिक इसका बाजार 4 हजार 5 सौ करोड़ रुपए से अधिक का है।
एसिडिटी से निपटने के लिए पीपीआई का इस्तेमाल करीब 20 साल पहले शुरू हुआ। तभी से इन दवाइयों को लेकर इस तरह की धारणा है कि ये बहुत ही सुरक्षित दवाइयां हैं। पीपीआई अभी तक गैस्ट्रोएंटेरॉलजिस्ट, चिकित्सकों और अन्य विशेषज्ञों के एक बड़े वर्ग के बीच खासी लोकप्रिय रहीं लेकिन मरीजों को इससे नुकसान उठाना पड़ा। यही वजह है कि अब इन दवाइयों की खपत में कमी आने लगी है।
इससे पहले, यूएस-आधारित नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ प्रदीप अरोड़ा ने बीएमसी नेफ्रोलॉजी में वैश्विक शोध प्रकाशित किया है, जिसके बारे में उन्होंने हमारे सहयोगी अखवार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि पीपीआई को कुछ दिशा निर्देशों के साथ ही प्रिस्क्राइब्ड किया जाना चाहिए और यह अवधि मात्र 8 सप्ताह तक ही होनी चाहिए। अगर इससे अधिक समय के लिए पेशंट को पीपीआई लेने की जरूरत पड़ रही है तो उसके किडनी फंक्शन और मैग्निशियम लेवल पर लगातार ध्यान देने की जरूरत है।