वैसे मरीज जिनकी हार्ट आर्टरी सिकुड़ जाती है लेकिन अगर उनमें हमेशा और बहुत ज्यादा तेज सीने में दर्द की शिकायत न हो तो ऐसे मरीजों को इन्वेसिव थेरपी यानी आक्रामक इलाज की जरूरत नहीं होती। ऐसे मरीज सिर्फ साधारण मेडिकल थेरपी से भी स्वस्थ हो सकते हैं। ISCHEMIA ट्रायल नाम की एक मेजर स्टडी जिसमें 5 हजार हार्ट पेशंट्स को शामिल किया गया था में इस बात की पुष्टि हुई है। अमेरिकन हार्ट असोसिएशन की वार्षिक मीटिंग में इस स्टडी के नतीजों को रिलीज किया गया।
4.5 लाख ऐंजियोप्लास्टी होती है सालाना
भारत में हर साल करीब साढ़े 4 लाख मरीजों की ऐंजियोप्लास्टी होती है और बड़ी संख्या में मरीज ब्लॉक्ड आर्टरी के इलाज के लिए बाइपास सर्जरी भी करवाते हैं। दिल्ली स्थित एम्स के प्रफेसर ऑफ कार्डियोलॉजी डॉ अंबुज रॉय कहते हैं, हर साल होने वाली ऐंजियोप्लास्टी और हार्ट सर्जरी में से एक तिहाई मरीज ऐसे होते हैं जिनमें बहुत ज्यादा गंभीर लक्षण नहीं दिखते, उनका Ischemic Heart Disease(IHD) स्टेबल होता है। ISCHEMIA Trial से पता चलता है कि ऐसे मरीजों को सर्जरी की जरूरत नहीं होती और वे मेडिकल थेरपी से ही बेहतर कर लेते हैं। IHD वैसे हार्ट प्रॉब्लम है जिसमें हार्ट आर्टरी यानी दिल की धमनी संकुचित हो जाती है जिससे आखिरकार हार्ट अटैक होता है।
5,179 मरीजों को स्टडी में किया गया शामिल
ISCHEMIA Trial जिसकी शुरुआत जुलाई 2012 में हुई थी में दुनियाभर के टॉप मेडिकल इंस्टिट्यूट्स के अनुसंधानकर्ताओं को शामिल किया गया था और उन्होंने स्टेबल IHD वाले 5 हजार 179 मरीजों को इस स्टडी के लिए चुना। इन मरीजों को कभी हार्ट अटैक नहीं हुआ था और इनके लेफ्ट मेन कोरोनरी आर्टरी में भी किसी तरह का कोई ब्लॉकेज नहीं था। ज्यादातर मरीजों में संकुचित आर्टरीज की समस्या थी जिसके बारे में एक्सर्साइज स्ट्रेस टेस्ट के दौरान पता चला।
एक ग्रुप को सिर्फ दवाइयां और दूसरे ग्रुप की हुई सर्जरी
इन 5 हजार में से 2591 मरीजों को सामान्य मेडिकल थेरपी दी गई जिसमें खून को पतला करने वाली दवा, कलेस्ट्रॉल कम करने वाली दवा और हार्टबीट को स्लो करने वाली दवा शामिल थी। बाकी के 2588 मरीजों की या तो ऐंजियोप्लास्टी हुई या फिर बाईपास सर्जरी। ज्यादातर लोग यही सोच रहे होंगे कि दवाइयों की तुलना में ऐंजियोप्लास्टी के जरिए स्टेंट डाल देने से या बाईपास सर्जरी के जरिए ब्लॉकेज हटाने पर हार्ट अटैक का खतरा कम हो जाएगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। करीब 3 साल 3 महीने तक चले फॉलोअप में अनुसंधानकर्ताओं ने दोनों ग्रुप में किसी तरह का खास अंतर नहीं देखा।
3.3 साल बाद दोनों ग्रुप के मरीजों में नहीं दिखा कोई अंतर
3.3 साल के बाद सर्जरी करवाने वाले 13.3 प्रतिशत मरीजों में ओवरऑल कॉम्प्लिकेशन्स दिखे तो वहीं दवाइयों के जरिए मेडिकल थेरपी करवाने वाले 15.5 प्रतिशत मरीजों में कॉम्प्लिकेशन्स दिखे। फॉर्टिस इस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टिट्यूट के चेयरमैन डॉ अशोक सेठ कहते हैं, इन दिनों ऐंजियोप्लास्टी जरूरत से ज्यादा की जा रही है। अगर किसी मरीज क्रॉनिक लेकिन स्टेबल चेस्ट पेन हो रहा है तो ऐसे मरीज को इमरजेंसी में ऐंजियोप्लास्टी करवाने की जरूरत नहीं होती। अडवांस्ड ड्रग थेरपी के डरिए भी ऐसे मरीजों की स्थिति में सुधार हो सकता है। सिर्फ वैसे मरीज जिनमें बीमारी के गंभीर लक्षण दिखें और जिनमें चेस्ट पेन बहुत ज्यादा और लंबे समय तक बना रहे उन्हें सर्जरी की जरूरत होती है।
लाइफस्टाइल में बदलाव की जरूरत
भारत में 4 से 5 करोड़ मरीज ऐसे हैं जो IHD यानी संकुचित हार्ट आर्टरी की समस्या से पीड़ित हैं। स्टडीज की मानें तो इस बीमारी की वजह से करीब 15 से 20 प्रतिशत मरीजों की मौत हो जाती है। ऐसे में मरीजों को अपने लाइफस्टाइल में काफी बदलाव करने की जरूरत होती है। कार्डियोलॉजिस्ट्स का सुझाव है कि हेल्दी खाना खाएं, रेग्युलर फीजिकल ऐक्टिविटी करें, सिगरेट-शराब से दूर रहें।