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भारत में दवाओं की कीमतों में हुई वृद्धि: एक विश्लेषण

भारत में दवाओं की कीमतों में हाल ही में हुई 50% तक की वृद्धि ने आम जनता के बीच चिंता और बहस को जन्म दिया है। राष्ट्रीय फार्मास्युटिकल मूल्य प्राधिकरण (NPPA) ने अक्टूबर 2023 में आठ दवाओं की अधिकतम सीमा कीमतों में वृद्धि की घोषणा की, जिसमें अस्थमा, तपेदिक, द्विध्रुवी विकार और ग्लूकोमा जैसी आम बीमारियों के लिए उपयोग की जाने वाली दवाएं शामिल हैं। सरकार ने इस वृद्धि को “असाधारण परिस्थितियों” और “जनहित” का हवाला देते हुए उचित ठहराया है। लेकिन क्या यह निर्णय वास्तव में जनहित में है या फिर दवा कंपनियों के हितों की पूर्ति करता है, इस पर गंभीर विचार करने की आवश्यकता है।

दवा मूल्य वृद्धि के कारण और तर्क

कच्चे माल और उत्पादन लागत में वृद्धि

सरकार ने दवा की कीमतों में वृद्धि के लिए कच्चे माल (एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रीडिएंट्स – APIs) और उत्पादन लागत में वृद्धि को प्रमुख कारण बताया है। विनिर्माण कंपनियों ने अपनी लागतों में वृद्धि का हवाला देते हुए कीमतों में संशोधन का अनुरोध किया था। वैश्विक स्तर पर कच्चे माल की कीमतों में उतार-चढ़ाव और मुद्रा विनिमय दरों में परिवर्तन ने उत्पादन लागत को और अधिक बढ़ाया है जिससे उत्पादन और विपणन अव्यावहारिक हो गया है।

“असाधारण परिस्थितियां” और जनहित का तर्क

सरकार ने पैरा 19, DPCO, 2013 का हवाला देते हुए “असाधारण परिस्थितियों” का दावा किया है। यह धारा सरकार को “असाधारण परिस्थितियों” में जनहित में दवाओं की कीमतों में वृद्धि करने की अनुमति देती है। यह तर्क दिया गया है कि कीमतों में वृद्धि आवश्यक है ताकि आवश्यक दवाएं बाजार में उपलब्ध रहें। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि “असाधारण परिस्थितियां” क्या हैं और क्या सरकार ने इस दावे का पर्याप्त प्रमाण प्रस्तुत किया है। इस तर्क पर और अधिक पारदर्शिता और स्पष्टता की आवश्यकता है।

जनहित की वास्तविकता

यह तर्क दिया जा सकता है कि दवाओं की कीमतों में वृद्धि से गरीब और निम्न-मध्यम वर्ग के लोग सर्वाधिक प्रभावित होंगे, जो पहले से ही महंगाई के बोझ से जूझ रहे हैं। आवश्यक दवाओं की सुलभता को बनाए रखना एक महत्वपूर्ण मुद्दा है और सरकार को यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि कीमतों में वृद्धि से आम जनता की स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच बाधित न हो। सरकार को ऐसे उपाय खोजने चाहिए जिनसे उत्पादन लागत को कम किया जा सके और साथ ही दवाओं की कीमतें भी सामान्य रहें।

भारत में दवा मूल्य नियंत्रण तंत्र

भारत में दवा कीमतों को मुख्य रूप से राष्ट्रीय फार्मास्युटिकल मूल्य प्राधिकरण (NPPA) नियंत्रित करता है। NPPA, 1997 में गठित, सरकार द्वारा जारी दवा मूल्य नियंत्रण आदेश (DPCO) के तहत दवाओं की अधिकतम कीमतें तय करता है। यह आदेश आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत जारी किया जाता है। NPCO के तहत, NPPA अनुसूचित और गैर-अनुसूचित दवाओं की कीमतों की निगरानी करता है। जो कंपनियां निर्धारित कीमत से अधिक मूल्य पर दवाएँ बेचती पाई जाती हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाती है और अधिक वसूली की जाती है।

DPCO, 2013 और अनुच्छेद 19 की भूमिका

DPCO, 2013 के अनुच्छेद 19 में सरकार को “असाधारण परिस्थितियों” में जनहित में दवाओं की कीमतों में वृद्धि या कमी करने का अधिकार दिया गया है। यह धारा NPPA को पहले भी 2019 और 2021 में क्रमशः 21 और 9 फॉर्मूलेशन की कीमतों में 50% की वृद्धि करने का अधिकार दे चुकी है। हालाँकि, यह महत्वपूर्ण है कि “असाधारण परिस्थितियों” की परिभाषा स्पष्ट और पारदर्शी होनी चाहिए ताकि मनमाना फैसले से बचा जा सके।

वार्षिक मूल्य संशोधन

प्रत्येक वित्तीय वर्ष में, NPPA पिछले वर्ष के थोक मूल्य सूचकांक (WPI) के आधार पर दवाओं की अधिकतम कीमतों में वृद्धि करता है। यह एक नियमित प्रक्रिया है जो मुद्रास्फीति और लागत में वृद्धि को ध्यान में रखती है। लेकिन यह प्रक्रिया “असाधारण परिस्थितियों” के मामले में DPCO, 2013 के अनुच्छेद 19 द्वारा प्रभावित हो सकती है।

समाधान और सुझाव

भारत में दवा कीमतों का मुद्दा जटिल है और इसमें विभिन्न हितधारकों जैसे कि सरकार, दवा कंपनियां और जनता के हित शामिल हैं। एक संतुलन बनाए रखना महत्वपूर्ण है जहाँ दवा कंपनियों को उचित लाभ मिले और जनता को सस्ती दवाएँ उपलब्ध हों। इसलिए कुछ सुझाव इस प्रकार हैं:

पारदर्शिता और जवाबदेही

सरकार को “असाधारण परिस्थितियों” की स्पष्ट और पारदर्शी परिभाषा प्रदान करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कीमतों में वृद्धि के सभी निर्णयों को सार्वजनिक जांच के लिए उपलब्ध कराया जाए। जनहित में दवा मूल्य वृद्धि पर और ज़्यादा जनता से जुड़े निष्पक्ष अध्ययनों की ज़रूरत है।

नियामक ढाँचे में सुधार

मौजूदा दवा मूल्य नियंत्रण तंत्र की समय-समय पर समीक्षा और सुधार की ज़रूरत है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह बदलते समय के अनुरूप हो। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि मूल्य निर्धारण नीतियों को स्थायी बनाया जा सके।

सार्वजनिक स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करना

सरकार को सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी नागरिकों को सस्ती दवाओं तक पहुँच हो। जन स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए रोकथाम और उपचार पर केंद्रित नीतियों को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है।

Takeaway Points:

  • दवा की कीमतों में वृद्धि ने जनता की स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच पर सवाल खड़े किये हैं।
  • “असाधारण परिस्थितियाँ” और जनहित का तर्क विवादास्पद और अपर्याप्त है।
  • DPCO 2013 के तहत कीमत नियंत्रण की प्रणाली में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता है।
  • सरकार को सार्वजनिक स्वास्थ्य और सस्ती दवाओं की उपलब्धता को प्राथमिकता देनी चाहिए।
  • मूल्य निर्धारण नीतियाँ सार्वजनिक हित में स्थायी और समावेशी होनी चाहिए।