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डेंगू के लिए नई वैक्सीन बनाते वक्त एक नए दृष्टिकोण की खोज की गई है जिसके तहत अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि डेंगू वायरस म्यूटेशन यानी परिवर्तन के जरिए अपना शेप बदल लेता है और प्रोटीन का आवरण ओढ़ लेता है जिससे डेंगू वायरस, कई तरह के वैक्सीन और थेरपीज से बच जाता है। डेंगू वायरस DENV2, मच्छर के शरीर के तापमान 29 डिग्री सेल्सियस पर स्मूथ गोलाकार सतह पर जिंदा रहता और विकसित होता रहता है। लेकिन जब इंसान के शरीर के तापमान 37 डिग्री सेल्सियस पर आता है तो वह गोलाकर से बदलकर उबड़-खाबड़ सतह में बदल जाता है।

डेंगू के वायरस में होने वाला स्ट्रक्चरल बदलाव

शेप में चेंज करने की इस क्षमता की वजह से ही डेंगू का वायरस इंसानों के इम्यून सिस्टम से आसानी से बच जाता है। लिहाजा डेंगू के वायरस के इस मेकेनिज्म को समझना बेहद जरूरी है तभी एक बेहतर वैक्सीन और थेरपी को विकसित किया जा सकता है। PLOS पैथोजन्स नाम के जर्नल में प्रकाशित स्टडी में यह बात कही गई है। स्टडी के लीड ऑथर शि नी लिम कहते हैं, डेंगू के वायरस में होने वाले इस स्ट्रक्चरल बदलाव की वजह से वायरस के खिलाफ वैक्सीन और दूसरी चिकित्सा पद्धति बेअसर साबित होने लगती है।

गलत इलाज से जानलेवा साबित हो सकता है डेंगू

  • डेंगू अपने पांव पसार चुका है। दिल्ली में अक्टूबर के 6 दिनों में ही अब तक 169 नए मामलों की पुष्टि हो चुकी है। डॉक्टरों का कहना है कि जिस तरह से आंकड़ों में तेजी आई उससे लगता है कि अभी डेंगू और फैलेगा। शुरुआत में सामान्य-सा लगने वाला डेंगू बुखार देरी या गलत इलाज से जानलेवा साबित हो सकता है। डेंगू बरसात के मौसम और उसके फौरन बाद के महीनों यानी जुलाई से अक्टूबर में सबसे ज्यादा फैलता है क्योंकि इस मौसम में मच्छरों के पनपने के लिए अनुकूल परिस्थितियां होती हैं। लिहाजा सबसे जरूरी है कि खुद को और परिवार के सदस्यों को मच्छरों के काटने से बचाया जाए। अगर किसी को डेंगू हो जाए तो घबराने की बजाए उचित इलाज और घरेलू नुस्खों के जरिए बीमारी को दूर किया जा सकता है…
  • एडीज इजिप्टी मच्छर के काटे जाने के करीब 3-5 दिनों के बाद मरीज में डेंगू बुखार के लक्षण दिखने लगते हैं। साधारण डेंगू बुखार के लक्षण- ठंड लगने के बाद अचानक तेज बुखार चढ़ना, सिर, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द होना, आंखों के पिछले हिस्से में दर्द होना, जो आंखों को दबाने या हिलाने से और बढ़ जाता है, बहुत ज्यादा कमजोरी लगना, भूख न लगना और जी मितलाना और मुंह का स्वाद खराब होना, गले में हल्का-सा दर्द होना, शरीर खासकर चेहरे, गर्दन और छाती पर लाल-गुलाबी रंग के रैशेज होना।

  • आयुर्वेद में गिलोय का बहुत महत्व है। 1 कप पानी में 1 चम्मच गिलोय का रस मिलाएं। अगर गिलोय की डंडी मिलती है तो 4 इंच की डंडी लें। उस बेल से लें, जो नीम के पेड़ पर चढ़ी हो। आप चाहें तो इसमें अदरक को मिलाकर पानी को उबालें और काढ़ा बनाएं और 5 दिन तक पिएं। आप चाहें तो इसमें थोड़ा-सा नमक मिलाकर दिन में 2 बार, सुबह नाश्ते के बाद और रात में डिनर से पहले लें।

  • पपीते के पत्ते का रस डेंगू फीवर के ड्यूरेशन को कम करता है, अस्पताल में मरीज के ठहराव को कम करता है, बॉडी से फ्लूइड लीक नहीं होने देता और वाइट ब्लड सेल्स (WBC) और प्लेटलेट्स की संख्या को बढ़ाता है। डेंगू का बुखार कन्फर्म होने के पहले दिन से ही पपीते के पत्ते का रस मरीज को दिया जा सकता है क्योंकि अभी तक इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं देखा गया है।

  • आयुर्वेदाचार्य सुशीला दहिया का कहना है कि ‘बकरी का दूध सुपाच्य होता है। आयुर्वेद की किताबों में यह बताया गया है कि बकरी का दूध डेंगू के बुखार से निकलने में काफी कारगर होता है।’

  • खाने में हल्दी का इस्तेमाल ज्यादा करें। सुबह आधा चम्मच हल्दी पानी के साथ या रात को आधा चम्मच हल्दी एक गिलास दूध या पानी के साथ लें। लेकिन अगर आपको- नजला, जुकाम या कफ आदि हो तो दूध न लें। तब आप हल्दी को पानी के साथ ले सकते हैं। ऐंटिऑक्सिडेंट्स से भरपूर हल्दी शरीर का मेटाबॉलिज्म बढ़ाती है।

  • 8 से 10 तुलसी के पत्तों का रस शहद के साथ मिलाकर लें या तुलसी के 10 पत्तों को पौने गिलास पानी में उबालें। इसमें 2 काली मिर्च और अदरक भी डाल सकती हैं। जब यह पानी आधा रह जाए तब गैस बंद कर दें और तुलसी के काढ़े को सुबह-शाम पिएं। शरीर की इम्यूनिटी स्ट्रॉन्ग होगी और बीमारी दूर।(नोट: डॉक्टर की सलाह के बिना इन घरेलू नुस्खों का इस्तेमाल अपने मन से न करें)

मच्छर के रूप बदलने पर भी असरदार साबित हो सके वैक्सीन
अनुसंधानकर्ताओं की टीम ने डेंगू के मरीजों से लिए गए DENV2 के 4 स्ट्रेन्स की भी जांच की और पाया लैबोरेट्री में अडाप्ट किए गए वायरस की तुलना में ज्यादातर क्लिनिकल स्ट्रेन्स ने 37 डिग्री सेल्सियस पर भी स्मूथ सतह का स्ट्रक्चर ही बनाए रखा। लेकिन बुखार के तापमान 40 डिग्री पर पहुंचते ही इन डेंगू वायरस स्ट्रेन्स का रूप बदल गया और वे उबड़-खाबड़ सतह में चेंज हो गए। लिहाजा अगर वैक्सीन के जरिए बीमारी को रोकने की कोशिश की जा रही है तो मरीजों को ऐसी वैक्सीन दिए जाने की जरूरत है जो स्मूथ सतह के वायरस के खिलाफ भी असरदार साबित हो सके।