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भारत काले-जार के उन्मूलन के कगार पर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानदंडों के अनुसार, पिछले दो लगातार वर्षों से देश में प्रति 10,000 लोगों में काले-जार के मामले एक से कम रहने में सफल रहा है। यह एक बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि काले-जार, जिसे आंत्र लीशमैनियासिस भी कहा जाता है, मलेरिया के बाद भारत में दूसरा सबसे घातक परजीवी रोग है। स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2023 में 595 मामले और चार मौतें दर्ज की गईं, और इस वर्ष अब तक 339 मामले और एक मौत हुई है। अगर यह आंकड़े अगले वर्ष भी बनाए रख पाता है, तो भारत WHO से उन्मूलन प्रमाणपत्र प्राप्त करने के योग्य हो जाएगा। इससे पहले बांग्लादेश अक्टूबर में यह उपलब्धि हासिल करने वाला दुनिया का एकमात्र देश बना था।

काले-जार उन्मूलन की यात्रा: भारत की सफलता की कहानी

चुनौतियाँ और प्रगति

भारत ने काले-जार के उन्मूलन के लिए 2010, 2015, 2017 और फिर 2020 तक के लक्ष्य निर्धारित किए थे, लेकिन इन लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया जा सका। WHO के लक्ष्य भी 2020 तक उन्मूलन का था, लेकिन अब 2030 तक का लक्ष्य रखा गया है। ऐतिहासिक रूप से बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में काले-जार के सबसे अधिक मामले देखे गए हैं, जिसमें बिहार अकेले भारत के मामलों का 70% से अधिक हिस्सा रखता है। इन क्षेत्रों में खराब स्वच्छता और जलवायु कारकों के कारण रेत मक्खियों के प्रजनन के लिए आदर्श स्थिति है। हालांकि, हाल के वर्षों में जागरूकता में वृद्धि, वैक्टरों पर नियंत्रण और त्वरित निदान और उपचार सुनिश्चित करके इन क्षेत्रों में भारी प्रगति हुई है।

सरकारी प्रयास और रणनीतियाँ

भारत सरकार ने काले-जार के उन्मूलन के लिए बहुआयामी रणनीति अपनाई है। इसमें सक्रिय मामला पता लगाना, प्रभावी वैक्टर नियंत्रण और सामुदायिक जागरूकता बढ़ाना शामिल है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने प्रारंभिक निदान और पूर्ण केस प्रबंधन, एकीकृत वेक्टर प्रबंधन और वेक्टर निगरानी, ​​पर्यवेक्षण, निगरानी, ​​मूल्यांकन और वकालत, संचार और सामाजिक गतिशीलता, व्यवहारगत प्रभाव और अंतर-क्षेत्रीय अभिसरण जैसी रणनीतियों को अपनाया है। यह समग्र दृष्टिकोण काले-जार के प्रसार को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

काले-जार से निपटने के लिए आगे का रास्ता

निगरानी और तकनीकी सुधार

डॉ. गोपाल ने आगाह करते हुए कहा कि भारत को इस उपलब्धि को बनाए रखने के लिए निगरानी में सुधार, त्वरित नैदानिक उपकरणों तक पहुँच का विस्तार और उपचारों को आसानी से उपलब्ध कराने की आवश्यकता है। दीर्घकालिक समाधान के लिए, बेहतर वेक्टर नियंत्रण, सामाजिक और आर्थिक स्थितियों का समाधान और टीकों और नए उपचारों के लिए शोध में निवेश पर ध्यान केंद्रित करना होगा। नए तकनीकी उपकरणों और प्रशिक्षित कर्मचारियों की उपलब्धता सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण होगा।

सामुदायिक भागीदारी और जागरूकता

काले-जार के उन्मूलन में सामुदायिक भागीदारी अत्यंत महत्वपूर्ण है। जागरूकता अभियानों के माध्यम से स्थानीय समुदायों को रोग के लक्षणों, संचरण के तरीकों और निवारक उपायों के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है। साथ ही, उन्हें रोग की रिपोर्ट करने और उपचार प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। यह सामुदायिक स्वामित्व और सहयोग सुनिश्चित करके ही सफलता सुनिश्चित की जा सकती है।

भारत के लिए आगे का मार्ग: एक सतत दृष्टिकोण

चुनौतियाँ और समाधान

हालांकि, काले-जार उन्मूलन के लिए चुनौतियाँ बरकरार हैं। गरीबी और अपर्याप्त स्वच्छता जैसी जड़ कारणों का समाधान करना महत्वपूर्ण है, जो इस तरह के रोगों के प्रसार को बढ़ावा देते हैं। अधिक सतर्कता, बेहतर संचार, और रोकथाम की प्रभावी रणनीतियाँ काले-जार को फिर से उभरने से रोकने में महत्वपूर्ण होंगी। सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों को समय-समय पर समीक्षा और सुधार की आवश्यकता होती है ताकि वे बदलते संदर्भों के अनुकूल हों। सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के बीच मजबूत सहयोग भी आवश्यक है।

निष्कर्ष और भविष्य की दिशा

काले-जार के उन्मूलन के लिए भारत के प्रयास एक सराहनीय प्रयास हैं। यह दिखाता है कि उचित रणनीतियों और प्रतिबद्धता के साथ, एक व्यापक परजीवी रोग को समाप्त किया जा सकता है। हालांकि, सावधानी बरतनी होगी, निगरानी प्रणाली को मजबूत करना और आबादी को जागरूक रखना जरूरी है। अधिक शोध, निदान और उपचार तक पहुँच की आवश्यकता है और देश की स्वास्थ्य प्रणाली के सुदृढीकरण और सतत निगरानी के साथ ही काले-जार के उन्मूलन को एक स्थायी उपलब्धि बनाया जा सकता है।

मुख्य बिन्दु:

  • भारत काले-जार के उन्मूलन के कगार पर है, जिसमें पिछले दो वर्षों में प्रति 10,000 लोगों में एक से कम मामले दर्ज किए गए हैं।
  • काले-जार के उन्मूलन के लिए सक्रिय केस डिटेक्शन, प्रभावी वेक्टर नियंत्रण और सामुदायिक जागरूकता महत्वपूर्ण हैं।
  • गरीबी और अपर्याप्त स्वच्छता जैसी जड़ कारणों को संबोधित करने से रोग के प्रसार को रोका जा सकता है।
  • सतत निगरानी, तकनीकी सुधार, और सामुदायिक भागीदारी काले-जार उन्मूलन को एक स्थायी उपलब्धि बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं।