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जीवन शैली: स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं।  इस सृष्टि की कल्पना बिना स्त्री या पुरुष के नहीं की जा सकती। जब स्त्री और पुरुष का मिलना होता है तो सृष्टि का कालचक्र आगे बढ़ता है। ईश्वर ने स्त्री और पुरुष को समान भाव से बनाया है, दोनों को एक दूसरे के प्रति समर्पित रहने की कला से सुशोभित किया। दोनों को एक दूसरे का पूरक बताया। लेकिन जब स्त्री का जन्म हुआ तो उसे धरा पर पुरुष से कमजोर समझा गया। ईश्वर ने जिस स्त्री-पुरुष को एकल भाव से बनाया उस स्त्री के साथ धरा पर दोहरा व्यवहार होने लगा। पुरुष स्त्री को स्वयं से कम आंकने लगे, उन्हें अपने उपभोग की वस्तु समझने लगे, जिस स्त्री की कोख से जन्म लिया उस स्त्री को दबाने लगाता है। आखिर ऐसा क्या हुआ कि पुरुष स्त्री को स्वयं को समर्थवान और स्त्री को अपने पैर की जूती मानने लगे। 

क्यों पुरुष के अधीन हुई स्त्री :

हमारा देश राजा महाराजाओं का देश रहा है। पुरुष सदैव से सत्ता पर प्रभावी रहा है। स्त्री को भले ही देवी के रूप में पूजा गया है लेकिन स्त्री को कभी भी सिंघासन सौपने के लिए समाज से समर्थन नहीं दिया। जब पुरुष को सत्ता मिली और स्त्री को घर के कामकाज की जिम्मेदारी तो इसने एक संकीर्ण सोच को जन्म दिया। हर किसी के मन में यह भाव उत्पन्न हो गया कि स्त्री सिर्फ घर के काम काज करने के लिए बनी है। समय बीतता गया और यह सोच भारत के पुरुषों पर प्रभावी हो गई। 

ऐसा नहीं था की स्त्री किसी काम को करने में पुरुष से कम थी।  लेकिन कुछ सत्तावर्गीय पुरुष ऐसे थे जो अपने हाथ से शक्ति नहीं जाने देना चाहते थे। उन्हें यह भय सताता रहता था कि यदि स्त्री उनके ऊपर सत्ता करेगी तो पुरुष के पौरुष पर प्रहार होगा,उसके मन से हमारा भय मिट जाएगा और समाज में एक ऐसे युग का प्रारम्भ होगा जहां स्त्री स्वयं को पुरुष के बराबर समझेगी। 

समय बदला और स्त्री को सम्मान मिलना शुरू हुआ। हर बार स्त्री ने आपने पराक्रम से पुरुष को चकित कर दिया। जब १८५७ का स्वतंत्रता संग्राम हुआ तो महारानी लक्ष्मी बाई ने अंग्रेजो को धूल चटाई। उनके पराक्रम का लोहा हर कोई मानता है। लेकिन जब उनकी विजय गाथा गाई जाती है तो कहा जाता है खूब लड़ी मर्दानी वो थी झांसी वाली रानी। 

रानी लक्ष्मी बाई की वीर गाथा में मर्दानी शब्द का उपयोग यह बताता है कि हमारा समाज कितना पुरुष प्रधान है एक स्त्री के पराक्रम की सराहना भी पुरुष यानि मर्दाना शब्द से कर रहा है। 

क्यों नहीं खत्म होता पुरुष प्रधान समाज:

समाज आज भी पुरुष प्रधान है। समाज में स्त्री को लेकर हीन भाव खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। प्रत्येक अनुचित की जिम्मेदार आज भी स्त्री है। स्त्री के साथ हो रहे इस दुर्व्यवहार का कारण सिर्फ पुरुष नहीं है अपितु स्त्री भी स्त्री के साथ दोहरा वर्ताव करती है। 

पुरुष स्त्री को स्वयं से आगे बढ़ता नहीं देख सकता क्योंकि पुरुष यह जनता है कि समाज इसे क्रांति के रूप में देखेगा और पुरुष का वर्चस्व समाप्त होगा, स्त्री पुरुष के बराबर में खड़ी होगी, तो पुरुष उसे अपने मुताबिक नहीं हांक सकेगा और वह तार्किक होकर पुरुष से सवाल कर सकेगी। 

वही पुरुष प्रधान समाज न खत्म होने का एक कारण समाज की स्त्रियां भी हैं, ये स्त्रियां समाज में किसी भी आगे बढ़ती स्त्री के मार्ग में रोड़ा बनती हैं, उसके चरित्र पर सवाल करती हैं उसके साथ अनुचित व्यवहार करती हैं और उसे समाज से पृथक  करने के लिए अपनी आवाज बुलंद करती हैं।