सामाजिक :- भारत इस समय हिंसा और विरोध आंच में तप रहा है। हर ओर नफरत ने पैर पसार रखे हैं। हिन्दू मुस्लिम एकता अब सिर्फ सुनने की बात रह गई है और भाईचारे की मिशाल देने वाली स्टोरी कभी कभार मीडिया संस्थानों के माध्यम से हमारे सामने आ जाती है। अब धर्म के नाम पर पत्थर फेंकने से लेकर खून की नदियां बहाने तक धर्म के रक्षक बने लोग तैयार रहते हैं। उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता की उनका उपद्रव समाज को किस दिशा में ले जा रहा है लेकिन उन्हें इस बात से फर्क पड़ता है कि उनके धर्म को लेकर टिप्पणी करने वाला व्यक्ति अभी तक अपने घर मे सुरक्षित कैसे है।
आज की नफरत भविष्य के लिए खतरा:-
यह धर्म के ठेकेदार अपने अपने धर्म का ठीकरा पीटते हुए लोगो को आपस में लड़वाते है। लेकिन क्या अपने कभी यह सोचा है कि इस नफरत का आपकी आने वाली पीढी पर क्या असर पड़ेगा। क्या वह आपके द्वारा फैलाई इस नफरत की आंच से बच पाएंगे और अपने भविष्य के बारे में कुछ बेहतर विकल्प खोज पाएंगे। क्योंकि आज जिस तरह से घृणा का सिद्धांत लोगो के मस्तिष्क पर हावी है उसके बाद यह आगामी पीढ़ी को काफी प्रभावित करेगा।
घृणा को लेकर ओशो ने कहा है कि यह जहां भी आती है वहां सिर्फ हिंसा होती है। स्वामी विवेकानंद का कहना है, हर एक चीज़ से प्यार करो । घृणा किसी से नहीं । जब हम किसी से घृणा करते हैं, तो हम या तो उस व्यक्ति से दूर रहने की कोशिश करते हैं या उस के बारे मैं बुरा सोचते रहतें है। वही बुरा सोचते ही नहीं करने के लिए तरह तरह के उपाय अपनाता है और समाज को एक खराब वातावरण देता है।
आज की हिंसा आगामी जनरेशन के लिए जहर :-
आज हम टीवी खोलते हैं तो हमें हर तरफ पत्थर , आग और विरोध देंखने को मिल रहा है। इस विरोध को देखकर हमारे घर मे मौजूद बच्चो के मन मे अनेको सवाल उठते हैं। लेकिन हम उन सावालो का सुचारू तरीके से उन्हें जवाब देने की जगह उनको उस हिंसा के तत्व इस तरह से बताते हैं मानो आगे चलकर उन्हें इस हिंसा का हिस्सा बनना हो। वही अगर हिंसा मुस्लिम और हिन्दू दो पक्षो के बीच हुई भिड़ते से भड़क गई तो कहना की क्या हम उन्हें बताते हैं कि हमारे प्रतिद्वंद्वी ने हमारी धार्मिक भावनाओं को आहत किया है और यदि हमने उनको जवाब नहीं दिया तो वह हमारे धर्म पर अपने धर्म का ध्वज लहरायेंगे।
जब हम बच्चो को इस तरह की चीजें बताते हैं तो उनके मन मे अपने धर्म के प्रति सम्मान नहीं पैदा होता बल्कि किसी अन्य धर्म के लिए घृणा पैदा होती है। यह नफरत उम्र के साथ बढ़ती जाती है और वह अपनी संस्कृति को भूलकर नफरत को बढ़ावा देते हैं। आज के समय मे परिजनों को बच्चों को अपने धर्म का सही ज्ञान देना चाहिए और सही गलत का भेद सिखाना चाहिए। उन्हें हिंसा के रास्ते को गलत बताकर एक सकारात्मक मार्ग पर चलना सिखाना चाहिए और आज की हिंसा को बच्चो के मन मे जगह बनाने से पहले उनके मन मे प्रेम और भाईचारे को बैठाना चाहिए। जिससे उन्हें समझ आए की अगर वह अपने भविष्य में भीड़ का हिस्सा बन गए तो यह भीड़ उनके भविष्य को निगल जाएगी और अगर वह भाईचारे के मार्ग पर चले तो उन्हें न सिर्फ सफलता मिलेगी बल्कि वह जिस जगह रहेंगे वहां पत्थर , आग , और अभद्रता नहीं दिखेगी। बल्कि अपने पन का भाव दिखेगा।