सुख के लिए बहुत अधिक संघर्ष मत कीजिए। सुख और दुख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यदि जीवन में सुख है तो जीवन में दुख होना निश्चित है। आपका जीवन किससे प्रभावित होता है यह आपके व्यवहार पर निर्भर करता है। आप अगर जीवन भर सुखी रहना चाहते हैं तो आपको अपने आस-पास के लोगों को सुख देने का प्रयास करना चाहिए।
सुख और दुख क्रिया है- जो आप अपने लिए करते हैं। इसके लिए ईश्वर को दोष देना निंदनीय है। ईश्वर सबको समान शक्तियां देता है। अब यह आपको निर्धारित करना चाहिए कि आप सुखी रहना चाहते हैं या जीवन में होने वाली प्रत्येक घटना को स्वीकार करने की जगह उसपर दुखी होना चाहते हैं।
सुख के लिए प्रयास की नहीं स्वीकृति की आवश्यकता है। अगर आप स्वीकार लेते हैं कि जो हो रहा है वह उचित है। शांत मन से मुस्कुराते हैं। लोगों पर प्रतिबंध लगाने की जगह उनको स्वतंत्र छोड़ देते हैं। किसी को परखने की जगह स्वयं को निखारने लगते हैं।
आपके इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि सब आपके साथ कैसे व्यवहार करते हैं। आप निस्वार्थ लोगों के प्रति समर्पित रहते हैं और सुख के लिए अपने कर्म पर निर्भर हो जाते हैं। तो सुख बेहद सरल हो जाता है और आप दुख पर विजय प्राप्त करते हैं।