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वन नेशन वन इलेक्शन: भारत के लिए वरदान या अभिशाप?

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वन नेशन वन इलेक्शन: भारत के लिए वरदान या अभिशाप?
वन नेशन वन इलेक्शन: भारत के लिए वरदान या अभिशाप?

‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ का विचार भारत में चुनावों को अधिक कुशल और लागत-प्रभावी बनाने का वादा करता है। इस विचार ने हाल के वर्षों में काफी ध्यान खींचा है और मोदी सरकार इस प्रस्ताव को लागू करने के लिए पूरी तरह से तैयार है।

‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ – एक संभावित समाधान?

‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ का अर्थ है कि पूरे भारत में सभी प्रकार के चुनाव, जैसे लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनाव, एक ही दिन या एक निश्चित समय सीमा के भीतर कराए जाएं। इस प्रस्ताव को विभिन्न कारणों से समर्थन मिल रहा है।

एक साथ चुनाव के लाभ

  • अर्थव्यवस्था पर कम बोझ: बार-बार होने वाले चुनावों के कारण देश पर एक भारी वित्तीय भार पड़ता है। एक साथ चुनाव होने से इस खर्चे में काफी कमी आएगी।
  • राजनीतिक स्थिरता: लगातार चलने वाले चुनावों के कारण देश में राजनीतिक अस्थिरता और अनिश्चितता का माहौल रहता है। एक साथ चुनाव से राजनीतिक स्थिरता आएगी और सरकारें बिना किसी रुकावट के अपनी नीतियों पर काम कर पाएंगी।
  • सुरक्षा बलों की दक्षता: विभिन्न चुनावों में सुरक्षा बलों की तैनाती और चुनाव प्रक्रिया में उनकी भागीदारी की आवश्यकता होती है। एक साथ चुनाव से इनकी दक्षता बढ़ेगी और सुरक्षा के लिए बेहतर तैयारी संभव हो सकेगी।
  • आम जनता के लिए कम झंझट: चुनावों की लगातार घोषणाओं के कारण आम लोगों को बार-बार अपनी दिनचर्या से जुड़ने के लिए चुनाव प्रक्रिया में भाग लेना होता है। एक साथ चुनाव से लोगों के लिए इस झंझट से मुक्ति मिल सकती है।

चुनौतियां

‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ का कार्यान्वयन सरल नहीं है, यह एक चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है जिसके कुछ अवरोध हैं।

कानूनी बाधाएं

भारतीय संविधान में वर्तमान में एक साथ चुनाव कराने के बारे में स्पष्ट प्रावधान नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 172 में लोकसभा के चुनाव कराने की प्रक्रिया बताई गई है और अनुच्छेद 168 में राज्य विधानसभाओं के चुनाव कराने की व्यवस्था दी गई है। संविधान के अनुसार, लोकसभा का कार्यकाल पांच साल का होता है, जबकि विधानसभाओं का कार्यकाल पांच साल या इससे कम का होता है। इसलिए, लोकसभा के चुनाव हर पांच साल में कराए जाते हैं, लेकिन विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग समय पर हो सकते हैं।

इस व्यवस्था के कारण, एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता पड़ सकती है। साथ ही, विभिन्न राज्य सरकारों के भी अलग-अलग चुनाव कार्यकाल हो सकते हैं। एक साथ चुनाव कराने के लिए सभी राज्यों के चुनाव कार्यकाल को एकसमान करना होगा जो एक बहुत बड़ी चुनौती है।

राजनीतिक विरोध

विपक्षी दलों में इस प्रस्ताव को लेकर अलग-अलग विचार हैं। कुछ दल इसका समर्थन कर रहे हैं, तो कुछ विरोध कर रहे हैं। कई विपक्षी दल इस बात पर सवाल उठा रहे हैं कि ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ प्रस्ताव, जो सरकार के लिए फायदेमंद है, देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में हस्तक्षेप है। उनका मानना ​​है कि यह सरकार को सत्ता में बने रहने का एक अवसर देगा और आम जनता को अपने प्रतिनिधियों को चुनने के लिए लंबा समय इंतजार करना पड़ेगा।

कार्यन्वयन की जटिलताएं

‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ को लागू करना जटिल होगा। इसमें चुनावों के समय, चुनाव सामग्री के प्रबंधन, और जनशक्ति की व्यवस्था आदि जैसी कई व्यवस्थाएं शामिल होंगी। इसके अलावा, चुनाव प्रक्रिया में इस्तेमाल होने वाले ईवीएम मशीनों और वोटिंग बूथों की भी संख्या काफी बढ़ानी होगी।

## रास्ता आगे

मोदी सरकार इस विचार के क्रियान्वयन को लेकर गंभीर है और ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ के लिए संसद में एक विधेयक लाने की तैयारी है। यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस चुनौतीपूर्ण कार्य को कैसे संभालती है। यह एक ऐसा विषय है जो भारत के लोकतांत्रिक ढाँचे को आकार देगा, और देश की राजनीति में कई वर्षों तक बहस का विषय रहेगा।

## मुख्य takeaways

  • ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ चुनाव प्रक्रिया को अधिक कुशल और कम खर्चीला बनाने का प्रस्ताव है।
  • यह प्रस्ताव देश की राजनीतिक स्थिरता को बढ़ावा देने और सुरक्षा बलों की दक्षता में सुधार करने का वादा करता है।
  • ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ को लागू करने में संवैधानिक संशोधन और राजनीतिक सहमति की आवश्यकता होगी।
  • चुनावों को एक साथ कराने की प्रक्रिया में काफी संसाधन की आवश्यकता होगी।
  • ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ पर देश के भविष्य में बहुत बहस और चर्चा हो सकती है।
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