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एक देश-एक चुनाव: भारत के चुनावों का भविष्य

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एक देश-एक चुनाव: भारत के चुनावों का भविष्य
एक देश-एक चुनाव: भारत के चुनावों का भविष्य

‘एक देश-एक चुनाव’ (One Nation, One Election) भारत में राजनीतिक चर्चा का एक प्रमुख विषय बन गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने इसे कानूनी रूप देने के लिए कदम उठाए हैं, जिसके लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनाई गई एक समिति की रिपोर्ट को मंजूरी दे दी गई है.

‘एक देश-एक चुनाव’ का क्या अर्थ है?

‘एक देश-एक चुनाव’ का अर्थ है कि देश में सभी स्तरों के चुनाव, जैसे लोकसभा, राज्य विधानसभा, पंचायत, और नगर निगम चुनाव एक साथ कराए जाएं. इस तरह से देश में हर पांच साल में एक ही बार चुनाव होगा, जिससे समय और धन की बचत होगी, साथ ही साथ चुनावी खर्च भी कम होगा.

प्रस्ताव का मुख्य लक्ष्य :

  • अधिक स्थिर सरकार: एक साथ चुनाव होने से एक ही समय में सभी शासन स्तरों में नई सरकारें बनेगी, जिससे नई सरकारों को कार्य करने के लिए समय मिलेगा.
  • चुनावी खर्च कम: चुनावों को एक साथ करने से चुनावी खर्च काफी कम हो जाएगा.
  • राष्ट्रीय एकता: देशभर में एक साथ चुनाव होने से एकता और राष्ट्रवाद की भावना बढ़ेगी.
  • चुनावी खर्च में कमी: कई चुनावों के बजाय एक ही बार चुनाव होने से समय, धन और संसाधनों की बचत होगी.

समिति की सिफारिशें:

कोविंद समिति ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि ‘एक देश-एक चुनाव’ को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन करने की आवश्यकता है.

मुख्य सिफारिशें :

  • दो चरणों में चुनाव: समिति ने दो चरणों में चुनाव करवाने का सुझाव दिया है. पहले चरण में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभा चुनाव होेंगे और दूसरे चरण में पंचायत और नगर पालिका चुनाव होंगे.
  • संविधान में संशोधन: समिति ने सुझाव दिया है कि इस प्रस्ताव को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा, जिसके लिए अनुच्छेद 82A को जोड़ा जा सकता है.
  • राज्यों के कार्यकाल का अंत: यदि संविधान में संशोधन होता है तो सभी राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा के कार्यकाल के साथ ही खत्म हो जाएगा.
  • पंचायत और नगर पालिका चुनाव: समिति ने सुझाव दिया है कि पंचायत और नगर पालिका चुनाव लोकसभा और विधानसभा चुनावों के 100 दिनों के अंदर कराए जाएं.

कानूनी प्रक्रिया :

‘एक देश-एक चुनाव’ को लागू करने के लिए कई कदम उठाने होंगे.

कदम :

  • बिल पेश करना: सरकार को सबसे पहले संविधान में संशोधन करने वाला एक बिल पेश करना होगा.
  • संसद से पास होना: बिल को संसद से दो-तिहाई बहुमत से पास होना होगा.
  • राज्य विधानसभाओं से मंजूरी: बिल को कम से कम 15 राज्यों की विधानसभाओं से भी मंजूरी मिलनी होगी.
  • राष्ट्रपति की मंजूरी: संसद और राज्य विधानसभाओं की मंजूरी के बाद बिल को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलेगी.
  • कानून बनना: राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद बिल कानून बन जाएगा.

‘एक देश-एक चुनाव’ के विपक्ष :

हालांकि ‘एक देश-एक चुनाव’ का प्रस्ताव काफी लोकप्रिय है लेकिन इसके विरोध में भी कुछ तर्क दिए गए हैं.

विरोध के तर्क :

  • लोकतंत्र पर खतरा: विपक्ष ने तर्क दिया है कि यह लोकतंत्र पर खतरा है क्योंकि यह राजनीतिक पार्टियों के लिए समान अवसर प्रदान नहीं कर पाता है.
  • समय की कमी: विपक्ष ने यह भी तर्क दिया है कि समय की कमी के कारण राजनीतिक पार्टियों को अपना प्रचार और अभियान सही तरीके से नहीं चला पाएंगे.
  • चुनावी जोड़तोड़: कुछ विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि यह प्रस्ताव चुनावी जोड़तोड़ और अवैध गतिविधियों को बढ़ावा दे सकता है.

निष्कर्ष :

‘एक देश-एक चुनाव’ का प्रस्ताव काफी जटिल है और इसके लागू होने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना होगा. यह प्रस्ताव देश में राजनीतिक पार्टियों के बीच विवाद का भी विषय है. हालांकि, यह प्रस्ताव देश की चुनावी व्यवस्था को मजबूत करने के लिए एक अच्छा कदम माना जा सकता है.

टेकअवे पॉइंट:

  • ‘एक देश एक चुनाव’ भारत की चुनावी व्यवस्था में बड़ा परिवर्तन ला सकता है.
  • इस प्रस्ताव को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा.
  • इस प्रस्ताव को लागू करने से चुनावी खर्च में कमी आएगी, समय और संसाधनों की बचत होगी और चुनाव अधिक कुशल और प्रभावी होंगे.
  • इस प्रस्ताव के साथ कुछ चिंताएं भी जुड़ी हैं, जिनमें लोकतंत्र पर खतरा और चुनावी जोड़तोड़ का खतरा शामिल है.
  • इस प्रस्ताव का अंतिम परिणाम अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह देश के चुनावी इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है.
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