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1966 का गणतंत्र दिवस: शोक और सम्मान का अनोखा संगम

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By News Desk
11 April 2025
1966 का गणतंत्र दिवस: शोक और सम्मान का अनोखा संगम

1966 का गणतंत्र दिवस: शोक और सम्मान का अनोखा संगम

1966 का गणतंत्र दिवस: शोक और सम्मान का अनोखा मिश्रण

क्या आप जानते हैं कि भारत के इतिहास में एक ऐसा गणतंत्र दिवस भी था, जो देश के लिए गमगीन तो था, लेकिन साथ ही सम्मान और एकता का प्रतीक भी बन गया? जी हाँ, हम बात कर रहे हैं 1966 के गणतंत्र दिवस की, जब देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी के आकस्मिक निधन ने पूरे देश को शोक में डुबो दिया था। इस लेख में हम आपको 1966 के गणतंत्र दिवस की उस अनोखी कहानी से रूबरू करवाएँगे जो देश के इतिहास का अद्भुत हिस्सा है।

लाल बहादुर शास्त्री जी का निधन: एक राष्ट्र का शोक

11 जनवरी 1966, ताशकंद में पाकिस्तान के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद, भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी का आकस्मिक निधन हो गया। उनके निधन से पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई। गणतंत्र दिवस से ठीक 15 दिन पहले हुआ ये निधन देश के लिए एक बड़ा झटका था।

गणतंत्र दिवस की तैयारियों में बदलाव

शास्त्री जी के निधन के बाद, गणतंत्र दिवस की तैयारियों में बड़े बदलाव किए गए। राष्ट्रपति द्वारा ध्वजारोहण, परेड, और सांस्कृतिक कार्यक्रमों जैसे पहले से तय कार्यक्रम में संशोधन करना पड़ा। इस शोक के माहौल में गणतंत्र दिवस की रौनक कुछ कमज़ोर पड़ गई थी, लेकिन साथ ही सम्मान और शालीनता भी खूब नज़र आई।

इंदिरा गांधी: नए प्रधानमंत्री का दायित्व

11 जनवरी को शास्त्री जी के निधन के बाद, इंदिरा गांधी ने नए प्रधानमंत्री का पदभार संभाला और गणतंत्र दिवस से केवल दो दिन पहले, 24 जनवरी 1966 को यह पद ग्रहण किया। देश के इस गमगीन दौर में, प्रधानमंत्री के रूप में इंदिरा गांधी ने लोगों में उत्साह और आशा भरने का काम किया।

1966 के गणतंत्र दिवस पर मौन शोक और विदेशी मेहमानों की अनुपस्थिति

1966 का गणतंत्र दिवस शोक के साये में मनाया गया, इसमें वही रौनक नहीं थी जो सामान्य वर्षों में देखने को मिलती है। इस साल किसी विदेशी मेहमान को नहीं बुलाया गया था, सभी कार्यक्रम गरिमापूर्ण, लेकिन सादे ढंग से सम्पन्न हुए। इस अवसर पर राष्ट्रपति के भाषण में लाल बहादुर शास्त्री जी को भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई।

इंदिरा गांधी की सादगी और देशभक्ति का प्रतीक

उत्साह और देशभक्ति का प्रतीक, इंदिरा गांधी ने इस गमगीन माहौल में लोगों का हौसला बढ़ाया। 26 जनवरी की परेड में शामिल होकर उन्होंने न केवल अपने पद का निर्वहन किया, बल्कि देशवासियों को यह संदेश भी दिया कि जीवन आगे बढ़ता है, और हम अपनी जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हट सकते। उन्होंने इस कार्यक्रम में नागालैंड की झांकी के लोक कलाकारों के साथ नृत्य भी किया, अपनी सादगी और मिलनसार स्वभाव को दर्शाया।

Take Away Points:

  • 1966 का गणतंत्र दिवस भारत के इतिहास में एक अद्वितीय घटना के तौर पर दर्ज है।
  • लाल बहादुर शास्त्री जी के निधन ने देश को शोक में डुबो दिया था।
  • इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री पद ग्रहण करने के बाद, गणतंत्र दिवस गरिमापूर्ण लेकिन सादे ढंग से मनाया गया।
  • इस वर्ष किसी भी विदेशी मेहमान को आमंत्रित नहीं किया गया था।
  • इस समारोह से राष्ट्रीय एकता और सम्मान की भावना झलकती है।
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