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2024 में होने वाले लोक सभा चुनाव को देखते हुए भाजपा और विपक्षी दल दोनों अपने-अपने खेमे को मजबूत करने में जुट गए हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार देश के कई विपक्षी दलों को कांग्रेस के साथ खड़े होने के लिए मना लेने के बाद पटना में एक बड़ी बैठक करने जा रहे हैं तो वहीं भाजपा भी पार्टी के साथ-साथ अपने गठबंधन एनडीए के विस्तार अभियान में भी जुट गई है।

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अपने पुराने सहयोगी तेलुगूदेशम पार्टी के मुखिया चंद्रबाबू नायडू से भी मुलाकात की थी। माना जा रहा है कि अगर भाजपा और टीडीपी के बीच में कुछ मुद्दों पर सहमति बन जाती है तो भाजपा की पुरानी सहयोगी फिर से एनडीए के खेमे में वापस आ सकती है और भाजपा आंध्र प्रदेश के साथ-साथ तेलंगाना में भी टीडीपी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ सकती है।

भाजपा के एक और पुराने सहयोगी शिवसेना का एक बड़ा धड़ा एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में पहले ही भाजपा के साथ आ चुका है और दोनों मिलकर महाराष्ट्र में सरकार चला रहे हैं। हाल ही में एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस ने दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ मुलाकात की थी और उसमें यह तय किया गया था कि दोनों ही दल आगामी चुनावों में मिलकर लड़ेंगे लेकिन भाजपा के सामने सबसे बड़ी दुविधा अपने सबसे पुराने सहयोगियों में से एक अकाली दल को लेकर है।

एनडीए का कुनबा बढ़ाने की मुहिम में जुटी भाजपा एक-एक राजनीतिक दल की अहमियत को बखूबी समझती है लेकिन जैसे ही मसला अकाली दल का आता है तो पंजाब की राजनीति को देखते हुए उसके सामने दुविधा खड़ी हो जाती है। बताया जा रहा है कि, आम आदमी पार्टी के पंजाब में मजबूत होने के बाद अकाली दल एक बार फिर से भाजपा के साथ आना चाहता है, यहां तक कि भाजपा के कई नेता भी लोक सभा चुनाव के गणित को देखते हुए अकाली दल को फिर से एनडीए के पाले में देखना चाहते हैं लेकिन पिछले वर्ष पहली बार पंजाब में बड़े भाई की भूमिका में विधान सभा चुनाव लड़ने और जालंधर लोक सभा उपचुनाव में हारने के बावजूद पार्टी को मिले मतों को देखते हुए अब पार्टी के ज्यादातर नेताओं का यह मानना है कि बीजेपी को राज्य में अकेले ही चुनाव लड़ना चाहिए ।

भाजपा आलाकमान द्वारा पिछले साल हुए विधान सभा चुनाव के लिए चुनाव प्रभारी बनाए गए केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत अभी भी लगातार राज्य का दौरा कर पार्टी को मजबूत बनाने के मिशन में जुटे हुए हैं। पंजाब को लेकर पार्टी की रणनीति का खुलासा करते हुए शेखावत ने हाल ही में आईएएनएस से कहा कि राष्ट्र प्रथम और पार्टी द्वितीय के सिद्धांत को मानते हुए सोशल फैब्रिक इंटेक्ट रहे, इसे सुनिश्चित करते हुए पार्टी पंजाब में हमेशा छोटे भाई की भूमिका में रही। भाजपा ने हमेशा पंजाब में अपने दल के हितों को कंप्रोमाइज किया लेकिन जिस तरह से दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति बनी और वह (अकाली दल) हमें छोड़ कर गए, उसके बाद भाजपा ने राज्य में अपना जनाधार बढ़ाने के लिए वहां काम किया। किसान आंदोलन के समय जिस तरह की परिस्थितियां बना दी गई थी, उसके बावजूद विधान सभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को छोड़कर भाजपा एकमात्र ऐसी पार्टी थी, जिसका वोट प्रतिशत बढ़ा था।

उन्होंने आगे कहा कि, उसके बाद हुए दोनों उपचुनाव में भी भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ा यहां तक कि जालंधर लोक सभा उपचुनाव में जहां कांग्रेस पार्टी के पास 9 में से 5 विधायक होने के बावजूद उन्हें किसी विधान सभा में लीड नहीं मिली लेकिन भाजपा को जालंधर में दो विधान सभा में लीड मिली।

2024 लोक सभा चुनाव में पंजाब में इतिहास रचने का दावा करते हुए शेखावत ने आगे कहा कि बेशक पार्टी जालंधर में चुनाव हार गई हो लेकिन जिस तरह से राज्य में भाजपा कार्यकर्ता मेहनत कर रहे हैं, जिस तरह से पार्टी कार्यकर्ताओं की क्षमता और कैपिसिटी को बढ़ाकर पार्टी की ताकत को धरातल पर बड़ा कर रही है उसे देखते हुए उन्हें पूरा विश्वास है कि 2024 में भाजपा पंजाब में एक नया इतिहास रचेगी।

वहीं जालंधर लोक सभा उपचुनाव में भाजपा को मिले मत प्रतिशत से उत्साहित केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने भी शनिवार को यही दावा किया कि पंजाब में अकाली दल के साथ जाने की जरूरत नहीं है।

अकाली दल के फिर से साथ आने के बारे में पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए पुरी ने भाजपा मुख्यालय में कहा कि पंजाब की 117 विधान सभा सीटों में से भाजपा कभी भी 23 से ज्यादा सीटों पर नहीं लड़ी थी और इसका नतीजा यह रहा कि पार्टी पंजाब के शहरी क्षेत्र में तो मजबूत थी लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं थी।

जालंधर लोक सभा उपचुनाव का जिक्र करते हुए उन्होंने दावा किया कि पार्टी कई बूथों पर नंबर दो की पार्टी रही है। अकाली दल के साथ फिर से जाने के प्रति अनिच्छा जाहिर करते हुए पुरी ने कहा कि अकाली दल के कई नेता भाजपा में आ रहे हैं, भाजपा पैन इंडिया पार्टी है जो लगातार बढ़ रही है।

हालांकि यह भी एक तथ्य है कि अभी तक भाजपा या अकाली दल के शीर्ष नेतृत्व की तरफ से इसे लेकर कोई स्पष्ट बयान नहीं आया है। हालांकि सूत्रों की मानें तो दोनों ही दल अपनी-अपनी वजहों से इस प्रस्ताव पर विचार कर रहे हैं लेकिन इतना तो तय है कि अगर अकाली दल एनडीए में वापसी का फैसला करता भी है तो उसे इस बार भाजपा को ज्यादा सीटें और तवज्जों, दोनों ही देनी पड़ेगी।