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मोहन भागवत के बयान ने देश में मंदिर-मस्जिद विवाद को लेकर बहस छेड़ दी है! क्या संघ प्रमुख की अपील पर बीजेपी और हिंदुत्ववादी संगठन अमल करेंगे? आइए जानते हैं इस लेख में।

मोहन भागवत का बयान: एक नया मोड़

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के हालिया बयान ने देश भर में हलचल मचा दी है। उन्होंने देश में सद्भाव की वकालत करते हुए मंदिर-मस्जिद विवादों पर नाराजगी जताई है। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के बाद ऐसे विवादों को उठाकर कुछ लोग 'हिंदुओं के नेता' बनने की कोशिश कर रहे हैं। यह बयान उत्तर प्रदेश के संभल और राजस्थान के अजमेर शरीफ में मंदिर होने के दावों जैसे विवादों के बढ़ने के संदर्भ में आया है। क्या ये तंज उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर था? यह सवाल कई लोगों के मन में है।

विपक्ष का समर्थन, बीजेपी का मौन?

भागवत के इस बयान का विपक्ष के कई नेताओं ने समर्थन किया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या बीजेपी और आरएसएस से जुड़े संगठन जैसे विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल उनके इस कथन का समर्थन करेंगे? भागवत के आदर्शवादी विचारों और बीजेपी की राजनीतिक वास्तविकताओं में कितना तालमेल है? यह भी एक महत्वपूर्ण प्रश्न है।

योगी आदित्यनाथ और संघ प्रमुख: एक नाज़ुक रिश्ता

योगी आदित्यनाथ के संभल विवाद को लेकर दिए भाषण से साफ है कि वे इस मुद्दे को हल्के में नहीं ले रहे हैं। लेकिन बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व इस मामले में चुप्पी साधे हुए है। क्या योगी आदित्यनाथ संघ प्रमुख के बयान की अनदेखी कर रहे हैं? या फिर संघ का बयान योगी पर एक तरह का 'चेतावनी' है? योगी और संघ के बीच का रिश्ता हमेशा से ही जटिल रहा है, और यह बयान इस रिश्ते की नाज़ुकता को और उजागर करता है।

संघ का प्रभाव और बीजेपी की राजनीति

आरएसएस के बिना बीजेपी की कल्पना करना मुश्किल है, पर दोनों के रास्ते कई बार अलग भी हुए हैं। अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान भी यह दूरी स्पष्ट दिखाई दी है। 2024 के चुनावों में जेपी नड्डा के बयान ने इस बात पर और सवाल खड़े किये हैं कि क्या बीजेपी अब संघ के दिशा निर्देशों का पूरी तरह से पालन करेगी?

क्या संघ सभी हिंदुओं का प्रतिनिधित्व करता है?

यह सवाल भी महत्वपूर्ण है कि क्या आरएसएस सभी हिंदुओं का प्रतिनिधित्व करता है? हिंदू धर्म की विविधता को देखते हुए इस सवाल का जवाब आसान नहीं है। संघ के अलावा भी कई अन्य संगठन और नेता हिंदुओं के हितों की बात करते हैं। इसलिए यह मान लेना कि संघ की हर बात को सभी हिंदू मानेंगे, गलत होगा।

विभिन्न मत और विचारधाराएँ

हिंदू समाज में विभिन्न विचारधाराएँ और मत हैं। संघ का दृष्टिकोण हर हिंदू के दृष्टिकोण से मेल नहीं खाता। इसलिए भागवत के बयान को सभी हिंदुओं का समर्थन प्राप्त नहीं है।

मंदिर-मस्जिद विवाद: एक राष्ट्रीय चुनौती

अयोध्या के फैसले के बाद देश के कई हिस्सों में मंदिर-मस्जिद विवाद बढ़ रहे हैं। यह विवाद केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि राजनीतिक भी है। क्या बीजेपी को अपनी राजनीतिक रणनीति बदलने की ज़रूरत है? क्या वो संघ के नज़रिये को महत्व देगी?

राजनीति का दबाव और समाज की आकांक्षाएँ

बीजेपी के लिए संघ प्रमुख का बयान एक बड़ी चुनौती है। राजनीति में चुनावी जीत के लिए तमाम तरकीबें अपनाई जाती हैं। लेकिन भागवत का यह बयान इस सच्चाई से पार पाना चाहता है। क्या बीजेपी अपने राजनीतिक हितों और समाज की एकता के बीच संतुलन बना पाएगी? यह समय ही बताएगा।

क्या मुस्लिम समाज इस बात को मानेगा?

मोहन भागवत के शांति के प्रयास सराहनीय हैं, पर यह सवाल भी है कि क्या मुस्लिम समाज इस बात को मान लेगा कि अतीत में उनके साथ जो भी हुआ वो गलत था? दक्षिण अफ्रीका में गोरे और काले समुदाय के बीच हुए सुलह से भारत सीख सकता है। ऐसा समझौता करना होगा जिससे सभी धर्मों के लोग एक साथ शांति से रह सकें।

Take Away Points:

  • मोहन भागवत का बयान देश में मंदिर-मस्जिद विवाद को लेकर एक गंभीर चिंता का विषय है।
  • बीजेपी और आरएसएस के रिश्ते में जटिलताएँ हैं और यह बयान दोनों के बीच की दूरी को उजागर करता है।
  • हिंदू समाज में विभिन्न मत और विचारधाराएँ हैं, इसलिए संघ के विचार को सभी हिंदुओं का समर्थन प्राप्त नहीं है।
  • मंदिर-मस्जिद विवाद केवल धार्मिक नहीं बल्कि राजनीतिक भी है।
  • सभी धर्मों के बीच शांति स्थापित करना राष्ट्र निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है।