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नीतीश कुमार ने नहीं खाया चूड़ा-दही, बिहार की सियासत में गरमाया बवाल!

क्या आप जानते हैं कि बिहार में मकर संक्रांति का त्योहार किस तरह राजनीतिक रंग में रंग जाता है? इस साल भी कुछ ऐसा ही हुआ, जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान के यहां आयोजित चूड़ा-दही भोज में शामिल होने के बाद भी चूड़ा-दही नहीं खाया और चले गए. इस घटना ने बिहार की राजनीति में खलबली मचा दी है और तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं. आइए जानते हैं इस पूरे घटनाक्रम के बारे में विस्तार से.

नीतीश कुमार का आना और जाना: एक राजनीतिक संदेश?

मकर संक्रांति के पावन अवसर पर, केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने अपने पार्टी कार्यालय में एक भव्य चूड़ा-दही भोज का आयोजन किया था. इस भोज में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था. नीतीश कुमार कार्यक्रम में पहुंचे, लेकिन उन्होंने चूड़ा-दही का स्वाद लिए बिना ही कार्यक्रम से रवाना हो गए. क्या यह सिर्फ एक साधारण सी घटना थी या इसके पीछे कोई राजनीतिक मंशा छिपी हुई है? इस सवाल ने बिहार के राजनीतिक गलियारों में हलचल पैदा कर दी है.

चर्चाओं का बाजार गर्म

मुख्यमंत्री के इस अचानक रवाना होने के बाद से ही तरह-तरह की चर्चाएँ शुरू हो गई हैं. कुछ लोग इसे नीतीश कुमार और चिराग पासवान के बीच खटास का संकेत मान रहे हैं, तो कुछ लोग इसे एक राजनीतिक स्टंट बता रहे हैं. सोशल मीडिया पर भी इस घटना पर खूब चर्चा हो रही है और लोग अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएँ दे रहे हैं.

चिराग पासवान का पक्ष: पूजा में व्यस्तता

इस पूरे मामले पर चिराग पासवान ने अपनी सफाई देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री के आगमन के समय वे एक विशेष पूजा में व्यस्त थे और पूजा को बीच में छोड़कर नहीं आ सके. उन्होंने मुख्यमंत्री के व्यस्त कार्यक्रम का भी सम्मान करने की बात कही और कहा कि मुख्यमंत्री जी का आना ही उनके लिए सबसे बड़ी बात है. क्या यह सफाई लोगों को मान्य होगी या नहीं, यह तो आने वाला समय ही बताएगा.

राजनीतिक विश्लेषण: क्या है असली वजह?

हालांकि, चिराग पासवान की सफाई के बावजूद, कई राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इस घटना के पीछे कोई न कोई राजनीतिक कारण जरूर है. दोनों नेताओं के बीच पहले से ही कुछ मतभेद चल रहे थे और यह घटना उन मतभेदों को और बढ़ा सकती है. बिहार की सियासत में यह घटना कितना अहम साबित होगी, यह आने वाले दिनों में साफ़ हो जाएगा.

अन्य नेताओं का चूड़ा-दही भोज

मकर संक्रांति के मौके पर केवल चिराग पासवान ही नहीं, बल्कि अन्य कई राजनीतिक नेताओं ने भी चूड़ा-दही भोज का आयोजन किया. राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने अपने आवास पर भोज का आयोजन किया, जबकि बिहार बीजेपी के अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने भी पार्टी कार्यालय में भोज का आयोजन किया. इन सभी आयोजनों ने बिहार की राजनीति में और रंग जमाया.

चूड़ा-दही: सिर्फ़ भोज या राजनीतिक संकेत?

बिहार में चूड़ा-दही का भोज सिर्फ़ एक पारंपरिक भोज ही नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संकेत भी माना जाता है. इस भोज के माध्यम से नेता अपने समर्थकों और अन्य नेताओं से संपर्क करते हैं और राजनीतिक संदेश देते हैं. इस बार नीतीश कुमार के कार्यक्रम में शामिल होने और चूड़ा-दही न खाने से एक राजनीतिक सवाल उठ खड़ा हुआ है.

Take Away Points

  • नीतीश कुमार ने चिराग पासवान के चूड़ा-दही भोज में चूड़ा-दही नहीं खाया.
  • इस घटना से बिहार की राजनीति में हलचल मच गई है.
  • चिराग पासवान ने कहा कि वे पूजा में व्यस्त थे, इसीलिए चूड़ा-दही नहीं खा पाए.
  • बिहार में चूड़ा-दही का भोज केवल पारंपरिक भोज नहीं बल्कि राजनीतिक संदेश देने का माध्यम भी माना जाता है।