क्या आरएसएस अब हिंदुत्व के कट्टर एजेंडे से पीछे हट रहा है? यह सवाल इन दिनों खूब चर्चा में है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के हालिया बयानों ने इस बहस को और तेज कर दिया है। उन्होंने मंदिर-मस्जिद विवादों और कुछ नेताओं की कथित राजनीतिक हरकतों पर गहरी चिंता जताई है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या संगठन अब अपने कट्टर हिंदुत्व के एजेंडे में बदलाव करने की सोच रहा है?
संघ की नई रणनीति: क्या है मकसद?
मोहन भागवत ने 'सहजीवन व्याख्यानमाला' में भारत को सद्भावना का मॉडल बनाने की वकालत की और कुछ नेताओं पर हिंदू नेतृत्व का दावा करने के लिए सांप्रदायिक मुद्दों का राजनीतिक फायदा उठाने का आरोप लगाया। हालांकि उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन यह स्पष्ट था कि उनका निशाना योगी आदित्यनाथ जैसे नेता हैं। भागवत ने उन नेताओं को चेतावनी दी है जो धार्मिक स्थलों के विवादों का राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं और अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए विभाजनकारी भाषा का प्रयोग कर रहे हैं। यह संकेत स्पष्ट है कि आरएसएस उन नेताओं को एक संदेश देना चाहती है जो उनके विचार से पार्टी के हितों से अधिक व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को तरजीह देते हैं।
क्या यह एक नया रुख है?
यह बयान संघ के वर्षों से चले आ रहे रवैये से अलग प्रतीत होता है। पहले भी ऐसे विवाद हुए हैं, लेकिन इस बार संघ प्रमुख ने सार्वजनिक तौर पर चिंता व्यक्त की है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या संघ अपनी रणनीति में बदलाव कर रहा है और क्या वह एक कठोर हिंदुत्व की बजाय अधिक समावेशी एजेंडे को अपनाना चाहती है? यह बदलाव 2024 के चुनावों के मद्देनजर और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, जहाँ बीजेपी की जीत सुनिश्चित करने में संगठन की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है।
बीजेपी और संघ के बीच तालमेल बिठाने की कोशिश?
आरएसएस और बीजेपी के बीच करीबी संबंध जगजाहिर है। बीजेपी कई दशकों से आरएसएस के एजेंडे पर कार्य कर रही है, लेकिन दोनों संस्थानों के बीच मतभेद भी कभी-कभी सामने आते हैं। भागवत के हालिया बयान से ऐसा प्रतीत होता है कि वह बीजेपी नेतृत्व के भीतर कुछ नेताओं के कामकाज से चिंतित है और वह उन्हें एक सांप्रदायिक एजेंडे से दूर रहने को कहना चाहता है। यह संघ के भीतर एक आंतरिक समायोजन का प्रयास हो सकता है, ताकि 2024 के चुनावों में पार्टी की जीत सुनिश्चित हो सके और विभिन्न हिंदुत्ववादी धड़ों में सामंजस्य बना रहे।
क्या योगी आदित्यनाथ आरएसएस के रडार पर हैं?
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि भागवत का निशाना सीधे तौर पर योगी आदित्यनाथ हैं। उनके विवादित बयान और कार्रवाई संघ के लिए चिंता का विषय बन सकते हैं। आरएसएस के लिए पार्टी के अंदर विवाद और कट्टरपंथी रुख राजनीतिक नुकसान का कारण बन सकता है। संघ पार्टी के अंदर नियंत्रण बनाए रखने और इसे एक सामान्य एजेंडा पर केंद्रित करने के लिए ऐसे कदम उठा सकता है।
समावेशी समाज की बात: क्या विपक्षी एजेंडे को बल मिल रहा है?
भागवत के बयानों ने एक नए बहस को भी जन्म दिया है। कुछ विश्लेषक यह भी मानते हैं कि संघ के समावेशी समाज पर जोर देने से विपक्ष को राजनीतिक फायदा हो सकता है। विपक्षी दल कई वर्षों से बीजेपी पर धार्मिक ध्रुवीकरण का आरोप लगा रहे हैं और संघ का यह नया रुख उनके दावों को सही साबित करने का काम कर सकता है। हालांकि, कुछ लोगों को यह एक कूटनीतिक कदम भी लगता है जो आरएसएस को एक सहिष्णु और अधिक व्यापक दृष्टिकोण के संगठन के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास करता है।
संघ की मंशा: समझना महत्वपूर्ण है
मोहन भागवत के बयानों को केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से ही नहीं देखा जा सकता। संघ एक सामाजिक और राजनीतिक संगठन है, जिसका देश के समाज और राजनीति पर गहरा प्रभाव है। उनके बयान हिंदुत्व की परिभाषा को लेकर संगठन के भीतर हो रहे नए विचार-विमर्श का प्रतीक हो सकते हैं। आगे चलकर समय ही बताएगा कि क्या यह वास्तव में एक बदलाव का सूचक है या सिर्फ एक राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है।
टेक अवे पॉइंट्स
- मोहन भागवत के हालिया बयान हिंदुत्व के एजेंडे और राजनीतिक रणनीति पर आरएसएस की समीक्षा दर्शाते हैं।
- कुछ नेताओं की कट्टरपंथी कार्रवाई पर चिंता व्यक्त की गई है।
- संघ का समावेशी समाज पर जोर विपक्षी दलों के लिए भी लाभदायक हो सकता है।
- आरएसएस और बीजेपी के संबंधों में आगे क्या परिवर्तन आएंगे, यह देखना महत्वपूर्ण होगा।