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ईडी की छापेमारी में हजारीबाग के कोयला कारोबारी के घर मिले साढ़े तीन करोड़

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ईडी ने हजारीबाग जिले के एक कोयला कारोबारी इजहार अंसारी के घर से साढ़े तीन करोड़ नगद बरामद किए हैं। कोल लिंकेज घोटाले में ईडी ने शुक्रवार को राज्य में कुल 14 ठिकानों पर छापेमारी की है। इनमें झारखंड राज्य खनिज विकास निगम (जेएसएमडीसी) के पूर्व प्रोजेक्ट डायरेक्टर अशोक कुमार सिंह के आवास, कई कंपनियों और व्यापारियों के ठिकाने शामिल हैं। ये छापेमारियां झारखंड की पूर्व माइन्स सेक्रेटरी निलंबित आईएएस पूजा सिंघल से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस के सिलसिले में की गई हैं।

ईडी सूत्रों के मुताबिक हजारीबाग के जिस कोयला व्यापारी के यहां से साढ़े तीन करोड़ के नोट बरामद किए गए हैं, उसके द्वारा लगभग एक दर्जन से ज्यादा शेल कंपनियां चलाए जाने की जानकारी मिली है। अब तक की जांच में पता चला है कि इजहार अंसारी तत्कालीन माइन्स सेक्रेटरी पूजा सिंघल के संरक्षण में हुए कोयला लिंकेज घोटाले का एक अहम किरदार रहा है। इजहार अंसारी के पॉलिटिकल कनेक्शन भी रहे हैं। वह हजारीबाग जिले के एक पूर्व विधायक का भी व्यावसायिक साझीदार बताया जाता है।

बता दें कि ईडी ने शुक्रवार को पूजा सिंघल के जिन करीबियों पर छापे मारे हैं, उनमें झारखंड स्टेट मिनरल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के पूर्व प्रोजेक्ट डायरेक्टर अशोक कुमार भी शामिल हैं। अशोक कुमार जेएसएमडीसी में पिछले साल दिसंबर तक कोयला और रेत प्रभारी सह परियोजना अधिकारी के तौर पर पोस्टेड थे। कांट्रैक्ट आधारित सेवा के बावजूद उन्हें वरीय आईएएस अफसर की कृपा से अत्यंत महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंप दी गई थीं। अशोक कुमार पर भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप थे, लेकिन उसे इन पदों पर बनाए रखा गया। आरोप है कि अशोक कुमार सिंह की कई छोटी और मझोली कंपनियों से मिलीभगत थी और उसने इन कंपनियों को आंतरिक इस्तेमाल के लिए कोयला परमिट जारी किए, लेकिन ये कंपनियां खुले बाजार में कोयले का कारोबार करती थीं।

आरोप है कि अशोक कुमार सिंह ने रिश्वत लेकर कोयला आवंटन पत्र उपलब्ध कराये। ईडी जेएसएमडीसी के तत्कालीन प्रबंध निदेशकों की भूमिका की भी जांच कर रहा है। अशोक कुमार को शुरूआत में जेएसएमडीसी में गढ़वा जिले के परियोजना अधिकारी के पद पर कांट्रैक्ट के आधार पर नियुक्त किया गया था। फिर उन्हें उन्हें रेत-प्रभारी-सह-कोयला-प्रभारी सह स्थापना अधिकारी के रूप में पदोन्नत किया गया था। जेएसएमडीसी एक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी है और एक संविदा कर्मचारी को स्थायी पद पर नियुक्त और पदोन्नत नहीं किया जा सकता, लेकिन अशोक कुमार के मामले में इन नियमों को ताक पर रख दिया गया।

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