Rahul Gandhi vs PM Narendra Modi: मुस्लिमों को ओबीसी में 4% आरक्षण का विवाद
कर्नाटक में मुस्लिमों को ओबीसी कैटेगरी से 4 फीसदी आरक्षण देने का फैसला विवादों में है. प्रधानमंत्री मोदी ने इस मुद्दे को लेकर राज्य की सिद्धारमैया सरकार और कांग्रेस पर निशाना साधा है.
पीएम मोदी का बयान
मध्य प्रदेश के मुरैना में प्रधानमंत्री मोदी ने इस मुद्दे को उठाते हुए कहा, ‘कांग्रेस मुस्लिमों के लिए ओबीसी का हक छीनना चाहती है, इसलिए कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने सभी मुस्लिमों को ओबीसी बना दिया है.’
सरकार का जवाब
प्रधानमंत्री मोदी ने जनता को संबोधित करते हुए आगे कहा- इन्हें ऐसा सबक सिखाइए कि ये लोग आरक्षण में छेड़छाड़ करने से डर जाएं.
मुस्लिमों के ओबीसी में आरक्षण का मुद्दा
प्रधानमंत्री मोदी के दावे पर कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया ने पलटवार किया है. सिद्धारमैया के मुताबिक पीएम मुस्लिम आरक्षण को लेकर झूठ बोल रहे हैं और उन्हें इस पर कुछ भी ज्ञान नहीं है.
कर्नाटक की राजनीति में आरक्षण का प्रभाव
कर्नाटक में मुस्लिम समुदाय को ओबीसी में शामिल करने का फैसला राजनीतिक हलचल और विवाद का कारण बना है। इससे कांग्रेस और भाजपा के बीच तनाव बढ़ गया है।
मुस्लिमों के ओबीसी में आरक्षण का फैसला
कर्नाटक सरकार का मुस्लिमों को ओबीसी में शामिल करने का फैसला समाज में अभियोग्यता और समानता के लिए एक प्रयास माना जा सकता है। लेकिन इस पर कुछ लोगों का विरोध है।
मुस्लिम समुदाय की मांगें
मुस्लिम समुदाय की ओर से यह मांग है कि उन्हें समाज में उचित स्थान और मौका मिलना चाहिए। उनका कहना है कि वे भी विकसित होने का हकदार हैं और सरकार को उनकी समस्याओं का समाधान करना चाहिए।
कर्नाटक में आरक्षण का विवाद क्या है?
कर्नाटक सरकार ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अनुसार सभी मुसलमानों को OBC श्रेणी 2B में शामिल कर लिया है। वर्तमान में कर्नाटक में OBC श्रेणी के लिए 32% आरक्षण है। कुल में 883 जातियों और उपजातियों को OBC आरक्षण दिया जाता है।
मुसलमानों को आरक्षण का लाभ
सरकार ने OBC श्रेणी के तहत मुसलमानों को 4% आरक्षण देने का फैसला किया है। इस आरक्षण के तहत, मुसलमानों को कर्नाटक सरकार की नौकरियों और शैक्षिक संस्थानों में लाभ मिलेगा।
आरक्षण का इतिहास
1995 में देवेगौड़ा की सरकार ने कर्नाटक में मुसलमानों को पहली बार 4% आरक्षण देने का फैसला किया था, जो बीएस बोम्मई की सरकार ने 2023 के चुनाव से पहले खत्म कर दिया था।
मुसलमानों का दावा
मुसलमानों ने कहा कि उन्हें आरक्षण की आवश्यकता है क्योंकि वे समाज के पिछड़े हुए वर्ग में आते हैं और उन्हें समान अवसर नहीं मिलते। उनके अनुसार, आरक्षण की व्यवस्था उन्हें उनके हक की गारंटी देगी।
विरोध का दावा
हालांकि, कुछ विरोधक आरक्षण को गलत मानते हैं। उनका मानना है कि आरक्षण का प्रयोग किसी भी समाज को विभाजित कर सकता है और यह समाज में समानता को कमजोर कर सकता है।
1. आंध्र प्रदेश में पहला वादा – 1994 में
1994 में, कांग्रेस पार्टी ने मुस्लिमों को अलग से आरक्षण देने का वादा किया था, जब आंध्र प्रदेश में विजय भास्कर रेड्डी की सरकार बनी थी। उन्होंने मुस्लिमों को 5 प्रतिशत की आरक्षण का ऐलान किया था। इस फैसले के खिलाफ जनता के बीच विरोध था और विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा।
2. 2004 में फिर से वादा
2004 में, कांग्रेस ने मुस्लिमों को अलग से 5 प्रतिशत की आरक्षण देने का वादा किया और सरकार बनने के बाद इसे लागू किया। हालांकि, 2010 में इस पर रोक लगा दी गई।
3. रंगनाथ मिश्र और अमिताभ कुंडू की रिपोर्ट
2009 में, कांग्रेस ने रंगनाथ मिश्र और अमिताभ कुंडू कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर आरक्षण के वादे किए। मिश्र कमेटी ने मुस्लिमों को 10 प्रतिशत की आरक्षण की सिफारिश की थी।
4. यूपी चुनाव से पहले घोषणा
2012 में, यूपी समेत 5 राज्यों में कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव से पहले मुस्लिमों को आरक्षण देने की घोषणा की। इसमें, केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में ओबीसी के लिए आवंटित 27% आरक्षण में से 4.5 प्रतिशत आरक्षण मुस्लिमों को दिया जाना था।
मुसलमानों के लिए आरक्षण का इतिहास
महाराष्ट्र में भी मुसलमानों को आरक्षण का दावा है। 2014 में महाराष्ट्र की पूर्वीराज चव्हाण सरकार ने मुसलमानों को 5 प्रतिशत आरक्षण का ऐलान किया था।
सरकार का तर्क
सरकार ने मुसलमानों को 5 प्रतिशत आरक्षण देने के पीछे एक तर्क रखा। उसका कहना था कि आरक्षण के माध्यम से समाज के सभी वर्गों को आगे बढ़ावा मिलता है।
प्राचीन समय से ही आरक्षण का प्रयोग
आरक्षण का प्रयोग समाज में समानता को बढ़ावा देने के लिए प्राचीन समय से ही किया जा रहा है। इससे समाज के कमजोर वर्गों को भी अवसर मिलते हैं।
क्यों जरूरी है मुसलमानों को भी आरक्षण?
महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि अगर 16 प्रतिशत मराठों को 16 प्रतिशत आरक्षण मिल सकता है, तो 11 प्रतिशत मुसलमानों को 5 प्रतिशत आरक्षण क्यों नहीं? इससे समाज में समानता बढ़ेगी और हर किसी को अवसर मिलेगा।
विरोध और रद्दीकरण
इस आरक्षण के विरोध में कांग्रेस, शिवसेना और बीजेपी ने अपनी आवाज बुलंद की। हालांकि, 2015 में बीजेपी की सरकार ने इस आरक्षण को रद्द कर दिया था। यह फैसला कांग्रेस सरकार के अंतिम दिनों में लिया गया था, जिससे यह प्रतिबंधित हो गया।
निष्क्रियता की समस्या
आरक्षण के रद्द होने से समाज के कई वर्गों को नुकसान होता है। यह समाज में असमानता को बढ़ावा देता है और विकास में अवरोध उत्पन्न होता है।
नई सरकार, नए सपने
नई सरकार को समाज के हर वर्ग को समान अवसर देने का काम करना चाहिए। मुसलमानों को आरक्षण का फायदा मिलना चाहिए ताकि समाज में समानता की भावना बढ़े।