पाकिस्तान में इस साल अक्टूबर में होने वाले SCO शिखर सम्मेलन को लेकर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस्लामाबाद जाने का विषय चर्चा का केंद्र बना हुआ है. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने पीएम मोदी को इस सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया है. लेकिन मोदी इस्लामाबाद जाएँ या नहीं, इस पर विचार विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए.
मोदी को इस्लामाबाद क्यों नहीं जाना चाहिए?
भारत सरकार के लिए पाकिस्तान के साथ संबंधों को लेकर अपनी नीति को पुनर्विचार करने के कई कारण हैं:
आतंकवाद का खतरा
उरी और पुलवामा आतंकी हमलों के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान से संबंधों को बेहतर बनाने के अपने प्रयासों को रोक दिया था. पाकिस्तान ने इन आतंकी हमलों में अपनी भूमिका का खंडन किया था, लेकिन भारत इन आरोपों को गंभीरता से लेता है. इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर में लगातार आतंकी हमले जारी हैं. ऐसी स्थिति में पीएम मोदी की पाकिस्तान यात्रा से उनकी सरकार की छवि को नुकसान हो सकता है, क्योंकि इससे ऐसा प्रतीत हो सकता है कि भारत पाकिस्तान के साथ मिलकर आगे बढ़ने को तैयार है, जबकि आतंकवाद के प्रति भारत का रवैया बहुत सख्त है.
पाकिस्तान की नीति
पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 खत्म करने के बाद से इस मुद्दे पर बात करने से इनकार कर दिया है, और उसने कश्मीर में चुनाव कराने का विरोध भी किया है. इससे यह स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान भारत के साथ बातचीत में दिलचस्पी नहीं रखता है. ऐसे में पीएम मोदी की इस्लामाबाद यात्रा, इस तरह की नीति का समर्थन करने जैसी प्रतीत होगी.
भारत का दबदबा
भारत ने क्रिकेट और अन्य क्षेत्रों में पाकिस्तान को हाशिए पर ला दिया है, और पाकिस्तान के आर्थिक संकट ने इस स्थिति को और भी बदतर बना दिया है. अगर पीएम मोदी पाकिस्तान का दौरा करते हैं, तो इससे पाकिस्तान के लोगों में भारत के प्रति सहानुभूति पैदा हो सकती है. हालाँकि, इससे यह भ्रम पैदा भी हो सकता है कि भारत अपनी नीतियों में बदलाव करने के लिए मजबूर है.
मोदी को इस्लामाबाद क्यों जाना चाहिए?
हालाँकि, पाकिस्तान से संबंध सुधारने और शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के कुछ तर्क भी दिए जा सकते हैं:
द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करना
पाकिस्तान और भारत दोनों ही SCO के सदस्य हैं. इस शिखर सम्मेलन में शामिल होने से दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने और आपसी सहयोग को बढ़ावा देने का अवसर मिल सकता है. इसके अलावा, SCO एक बहुपक्षीय मंच है, जहाँ विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श किया जा सकता है. भारत इस मंच का उपयोग पाकिस्तान को अपने व्यवहार को बदलने के लिए प्रेरित करने के लिए कर सकता है.
जम्मू-कश्मीर चुनाव
जम्मू-कश्मीर में दस साल बाद विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. कुछ क्षेत्रीय दलों ने पाकिस्तान से संबंध सुधारने और द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने का पक्ष लिया है. ऐसे में पीएम मोदी की इस्लामाबाद यात्रा जम्मू-कश्मीर में चुनाव प्रचार के लिए एक सकारात्मक संदेश दे सकती है.
चीन के दबाव को कम करना
चीन पाकिस्तान को भारत के खिलाफ प्रोत्साहित करता है. अगर पीएम मोदी इस्लामाबाद जाएँ, तो यह चीन को एक संदेश देगा कि भारत पाकिस्तान के साथ मिलकर आगे बढ़ने के लिए तैयार है. यह चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करने में मदद कर सकता है.
पाकिस्तान को एक संदेश देना
पीएम मोदी की इस्लामाबाद यात्रा से पाकिस्तान को एक स्पष्ट संदेश दिया जा सकता है कि भारत उसके आतंकवाद के खिलाफ दृढ़ है. इससे पाकिस्तान अपने कार्यों पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित हो सकता है.
क्या मोदी पाकिस्तान जाएंगे?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस्लामाबाद जाने के फैसले के लिए कई कारणों का विचार करना ज़रूरी है. इस्लामाबाद जाने का फैसला आसान नहीं होगा, क्योंकि इसके परिणाम स्वरूप राजनीतिक और कूटनीतिक दबाव पैदा हो सकता है. भारत के लिए पाकिस्तान के साथ संबंधों का प्रबंधन करना बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन भारत की सुरक्षा और हित को प्राथमिकता देनी चाहिए.
Take Away Points
- पाकिस्तान के साथ संबंधों को सुधारना भारत सरकार के लिए एक चुनौती है.
- मोदी की पाकिस्तान यात्रा भारत के कूटनीतिक रणनीति के परिणामों पर निर्भर करेगी.
- पाकिस्तान को भारत के आतंकवाद के खिलाफ दृढ़ संकल्प को समझना चाहिए.
- यह शिखर सम्मेलन भारत के लिए चीनी प्रभाव को कम करने का एक अवसर हो सकता है.
- भारत की पाकिस्तान के प्रति नीति राष्ट्रीय सुरक्षा और हित को ध्यान में रखते हुए बनाई जानी चाहिए.
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