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Atal Bihari Vajpayee on Indira Gandhi:: भारत विविधताओं का देश है। भारत की राजनीति ऐसी है कि उसमें वह लोग भी रूचि दिखाते  हैं जिनका राजनीति से कोई सम्बन्ध नहीं। इंदिरा गांधी हों या अटल बिहारी वाजपेयी। किसी ने भी अपनी गरिमाओं को नहीं लांघा। भाषा की सौम्यता ने हमेशा यह बताया की हमारे बीच सिर्फ पार्टी के मूल्यों का मतभेद है। हम एक दूसरे का सम्मान करते हैं। लेकिन अगर हम आज की राजनीति की बात करें तो अब भाषा में विनम्रता नहीं है, महज वोट बैंक के लिए राजनेता व्यक्तिगत प्रहार पर उतर आते हैं। कोई भरी सभा में अपने प्रतिद्वंदी के स्वागत में गलियां उड़ा देता है तो कोई किसी के परिवार पर कींचड़ उछाल देता है। बात जब इतने से नहीं बनती है तो धर्म का बीड़ा ठाकर समाज में दंगा करवा देता है। लेकिन आज हम आपको अटल बिहारी वाजपेयी और इंदिरा गांधी के बीच रिश्ते के विषय में बताने जा रहे हैं। यह दोनों एक दूसरे के प्रतिद्वंदी होने के बाद कैसे एक दूसरे के प्रति सम्मान जनक भाव रखते थे। 

इंदिरा गाँधी और अटल बिहारी –

अटल बिहारी बड़े सौम्य स्वाभाव के व्यक्ति थे। वह जब भी अपनी बात किसी के सम्मुख रखते तो विनम्रता से रखते थे। उनका मानना था कि आवेश में आकर आप किसी को अपनी बात के लाभ और हानि से परिचित नहीं करवा सकते हैं। वही इंदिरा गांधी जनता से  जुडी राजनेत्री थीं। वह जमीनी स्तर की राजनीति करती थीं, जनता के बीच जाकर उनका हाल पूछती हाँ कभी-कभी क्रोध में आकर कुछ निर्णय ले लेतीं। 

पहली बार इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी के मध्य मतभेद प्रिवी पर्स (सरकारी भत्ता) के परिपेक्ष्य में हुआ। 1969 को लोकसभा ने दो-तिहाई बहुमत से राजाओं को प्रिवी पर्स न दिए जाने का बिल पास किया। लेकिन एक दिन बात राज्य सभा में यह एक वोट से गिर गया। इंदिरा गांधी ने इस बिल को त्वरित रूप से समाप्त कर दिया। इंदिरा के इस निर्णय से अटल आहात थे उन्होंने इसे संविधान और सदन के अपमान की संज्ञा दी। 

कब शब्दों से बरसे अटल-

पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी ने सन 1971 में अपने भाषण के दौरान इंदिरा गांधी पर शाब्दिक प्रहार किया – उन्होंने कहा भारतीय लोकतंत्र में जो भी पवित्र है प्रधानमंत्री उसकी दुश्मन हैं। 

जब उनकी पार्टी ने राष्ट्रपति पद के लिए उनके उम्मीदवार को स्वीकार नहीं किया तो उन्होंने पार्टी ही तोड़ दी। जब संसद ने प्रिवी पर्स समाप्त करने के बिल को पास नहीं किया तो उन्होंने अध्यादेश का सहारा लिया। 

जब सुप्रीम कोर्ट ने अध्यादेश को अवैध करार दिया तो उन्होंने लोकसभा भंग कर दी।  अगर ‘लेडी डिक्टेटर’ का बस चले तो वो शायद सुप्रीम कोर्ट को भी भंग कर देंगी। 

इंदिरा ने नहीं कहे अपशब्द –

इंदिरा गांधी ने अपने राजनीतिक जीवन में भाषा की विनम्रता को सदैव बनाए रखा। उनका कहना था हमें पूरा देश सुनता है यदि हम अपनी भाषा में विनम्रता नहीं रखते हैं तो यह पूरे देश को नकारात्मक संदेश देती है। हम अपने विरोधियों का विरोध सौम्यता के साथ भी कर सकते हैं। इंदिरा ने अपने संकल्प को जीवित रखा और अपने पूरे राजनैतिक करियर में अपशब्दों का उपयोग नहीं किया। उन्होंने जब भी जनसंघ पर कटाक्ष किया तो यही कहा- जनसंघ ने सड़कों और कॉलोनियों के नाम बदलने के अलावा कुछ भी नहीं किया है। 

इंदिरा की तारीफ में बोले अटल –

अटल ने कहा- मैं ख़ुश हूँ कि इंदिरा गाँधी याह्या ख़ाँ को सबक सिखा रही हैं. हमारे पास एक ऐतिहासिक मौक़ा है कि हम एक धर्मशासित देश को समाप्त कर दें या उसके जितना संभव हो उतने छोटे टुकड़े कर दें। उन्होंने आगे यह भी कहा- इंदिरा गाँधी की भी ये कहकर तारीफ़ की कि उन्होंने दो सप्ताह की लड़ाई में ठंडे दिमाग़ से काम लिया और देश को आत्मविश्वास से भरा नेतृत्व प्रदान किया।