राजनीति: लोकसभा चुनाव के लिए सभी दल अपनी कमर कस चुके हैं। अब यह स्पष्ट है कि विपक्ष एकता के बलबूते सत्ताधारी दल को धूल चटाने का प्रयास करेगा। हर तरफ जनता को लुभाने का ताना बाना बुना जा रहा है। बीजेपी लगातार मुस्लिम वोट बैंक को साधने में जुटी है और विपक्ष लगातार जमीनी स्तर पर जनता से जुड़कर जनता की आवाज बनने के प्रयास में लगा है। लेकिन इन सभी गतिविधियों के बीच एक बात जो सभी के मन में खटक रही है वह यह है कि आखिर विपक्ष और सत्ता पक्ष का कौन सा एरिया सबसे मजबूत है।
जानें भारत के किस एरिया में नहीं चलता मोदी मैजिक:
उत्तर भारत में भले ही मोदी -योगी का जादू छाया है लेकिन दक्षिण भारत में मोदी मैजिक की कोई छाप नहीं दिखती। दक्षिण भारत के लोग बीजेपी के कार्य से जरा असंतुष्ट नजर आते है इसका जीता जाता उदाहरण कर्नाटक में बीजेपी को मिली करारी हार है। दक्षिण में केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना के अलावा पुडुचेरी और लक्षद्वीप ऐसे क्षेत्र हैं जहां भाजपा को विभाजनकारी पार्टी के रूप में जाना जाता है। जानकारों का कहना है यदि भाजपा ने अपनी रणनीति में बदलाव नहीं किया और हिन्दू वादी नीति के बलबूते चुनाव लड़ती रही तो उत्तर भारत में भाजपा स्वयं को कभी मजबूती के साथ स्थापित नहीं कर पाएंगी।
दक्षिण भारत में कुल 131 लोकसभा सीटें आती हैं, जिनमें कर्नाटक में 28, तेलंगाना में 17, आंध्र प्रदेश में 25, तमिलनाडु में 39, केरल में 20, पुडुचेरी और लक्षद्वीप में 1-1 सीट है। इसमें से भाजपा को महज 30 सींटो पर जीत मिली है, जबकि कांग्रेस के खेमे में 27 व अन्य सभी सींटे क्षेत्रिय दलों को मिलीं। यह सभी दल भाजपाई नहीं थे। अब अगर इसबार के लोकसभा चुनाव में बीजेपी दक्षिण भारत में स्वयं को मजबूती के साथ नहीं खड़ा कर पाई तो केंद्र में परिवर्तन के आसार बढ़ जाएंगे और विपक्ष एकता बीजेपी के विजय चक्र को तोड़ने में सफल हो जाएगी।
दक्षिण में किसका है दबदबा :
बीजेपी आज भले ही स्वयं को सबसे मजबूत पार्टी बता रही है और कांग्रेस जमीनी स्तर पर जनता का दिन जीतने के लिए अपना सारा बल लगा रही है। लेकिन दोनों ही दल दक्षिण भारत में प्रथम पायदान पर नहीं है। दक्षिण भारत में दोनों पार्टियां द्वितीय स्तर की पार्टी हैं क्योंकि जनता की पहली पसंद क्षेत्रिय दल हैं। कर्नाटक में यदि सबसे अधिक वोट किसी को मिलते हैं तो वह उनके क्षेत्र की पार्टी हैं जनता का विश्वास अपने राजनेताओं पर अटूट है और दक्षिण में बीजेपी और कांग्रेस बाहरी पार्टी के रूप में जानी जातीहैं।
लेकिन कांग्रेस के लिए दक्षिण भारत से सदैव सकारात्मक संदेश मिले हैं। कांग्रेस यहां के क्षेत्रिय दलों से जुड़कर जनता के बीच अपनी उम्दा छवि स्थापित करने की कवायद में जुटी हुई है। वहीं इस बार राहुल गाँधी के नेतृत्व में जारी भारत जोड़ो यात्रा ने कांग्रेस को दक्षिण की जनता से सीधे जोड़ दिया है। जानकारों का कहना है कि यदि बीजेपी ने अपनी रणनीति में कोई बदलाव नहीं किया तो जल्द ही दक्षिण से बीजेपी का सफाया होगा और विपक्ष अपनी बीजेपी खत्म की रणनीति में सफल होगी।