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गठबंधन में भय:- कांग्रेस को तलाश साथ की, विपक्ष को शंका हार की

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राजनीति– 135 साल पुरानी राजनीतिक पार्टी आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। हर ओर से कांग्रेस को नकारा जा रहा है। लेकिन इस सबके बाद भी कांग्रेस नेता राहुल गांधी के हौसले बुलंद हैं। भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से राहुल गांधी ने जनता के बीच जाकर कांग्रेस को स्थापित करने का प्रयास किया और अपनी छवि जमीनी नेता के रूप में विकसित की।

कांग्रेस ने विपक्ष को एकजुट करने का प्रयास किया। कई बड़े दलों को भारत जोड़ो यात्रा से जुड़ने का न्योता दिया। लेकिन सपा, बसपा, रालोद नेता इसमें नहीं शामिल हुए। लेकिन इन नेताओं ने राहुल गांधी को शुभकामनाएं दीं। वहीं अब जब लोकसभा चुनाव नजदीक आता जा रहा है तो कांग्रेस अपना राजनीतिक तानाबाना बनने में लग गई है।
सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी लोकसभा चुनाव में गठबंधन के बलबूते भाजपा को टक्कर देने की योजना बना रहे हैं। कांग्रेस को इस वक्त एक ऐसे गठबंधन की तलाश है जो न सिर्फ केंद्र से बीजेपी को उखाड़ फेंके। बल्कि कांग्रेस के लिये भी संजीवनी बूंटी साबित हो। लेकिन अभी तक इस कड़ी में कोई सफलता मिलती नजर नहीं आ रही है।

क्या है एकता का सूत्र-

विपक्ष एकता की बात बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बार-बार कर रहे हैं। उन्होंने साफ किया है कि कांग्रेस जल्द ही अपना निर्णय ले और हमसे आकर मिले। क्योंकि अब वक्त कम है और बिहार सरकार बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने का संकल्प ले चुकी है।
नीतीश कुमार ने यह भी दावा किया है कि अगर विपक्ष एक हो गया तो लोकसभा चुनाव में बीजेपी महज 100 सीटों पर सिमट जाएगी और 2024 में केंद्र में परिवर्तन का बिगुल बजेगा।
वहीं अगर हम यूपी की बात करें। तो उत्तरप्रदेश का विपक्ष कांग्रेस से हाथ मिलाने में भय महसूस कर रहा है। क्योंकि बीते विधानसभा चुनाव में जब सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के विरोध में जाकर अखिलेश यादव ने कांग्रेस से हाथ मिलाया और रातों रात यूपी की सड़कों पर कांग्रेस और सपा के प्यार के पोस्टर चमकने लगे। 
लेकिन जनता को यह बात हजम नहीं हुई और इस चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 311 विधानसभा सीटों पर जबकि कांग्रेस ने 114 सीटों पर प्रत्याशी उतारे। 311 सीटों में समाजवादी पार्टी को महज 47 सीटें मिलीं और कांग्रेस को सिर्फ सात सीट मिल सकी।
सपा के मन मे भय है कि अगर वह कांग्रेस के साथ जाते हैं तो हो सकता है इससे उनका अपना वोट बैंक प्रभावित हो और लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सत्ता से बाहर करने का सपना टूट जाए। 

गठबंधन में भय-

कांग्रेस की स्थिति उत्तरी भारत मे बेहतर नहीं है। जनता के बीच इंदिरा गांधी की सकारात्मक छवि बनी हुई है। ललेकिन कांग्रेस को लोग ऐसी पार्टी के रूप में देखते हैं जिसे जनता से अस्वीकार कर दिया है। 
राहुल गांधी भले ही भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से आज जनता के नेता बनकर उभरे हैं और उनके भाषणों की जमकर चर्चाएं हो रही हैं। लेकिन इस सबके बाद भी उत्तर भारत में कांग्रेस का वोट बैंक मजबूत नहीं है।
हां अगर हम कांग्रेस की स्थिति दक्षिण भारत में देखें तो वहाँ बेहतर है। क्योंकि दक्षिण भारत मे आज भी भाजपा सत्ता के लिए संघर्ष कर रही है और लोग कांग्रेस पर विश्वास जता रहे हैं। 
हालाकि उत्तरभारत में विपक्ष कांग्रेस के साथ गठबंधन करने से भयभीत है। क्योंकि विपक्ष को लगता है कि अगर उन्होंने कांग्रेस से हाथ मिलाया तो हो सकता है जनता में उनके जो समर्थक हैं। वह उनका हाथ छोड़ दें। लेकिन विपक्ष यह भी जनता है कि अगर कांग्रेस से वह मिलकर चलता है तो दक्षिण भारत में कांग्रेस को जो समर्थन मिल रहा है उसके बलबूते पर वह केंद्र में यूपीए को स्थापित कर सकता है और एनडीए की शाक हिला सकता है।

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