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हुब्बली दंगों के बाद हुई आपराधिक मामलों की वापसी के फैसले ने कर्नाटक में राजनीतिक घमासान खड़ा कर दिया है। भाजपा इसे कांग्रेस की तुष्टिकरण नीति का नमूना बता रही है, जबकि कांग्रेस का दावा है कि भाजपा ने भी अपने कार्यकाल में ऐसी ही कार्रवाई की है और अब केवल जनता को बहलाने का प्रयास कर रही है। यह सच है कि दोनों पार्टियों ने अपने-अपने शासनकाल में इस तरह के कदम उठाए हैं, और यह मामला दोनों दलों पर एक समान रूप से लागू होता है। इस लेख में हम इस मुद्दे के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

हुब्बली दंगों और मामलों की वापसी: एक विस्तृत विवरण

दंगों की पृष्ठभूमि और घटनाक्रम

2022 में हुब्बली में हुए दंगे एक सोशल मीडिया पोस्ट से शुरू हुए, जिसमें एक व्यक्ति ने मस्जिद पर भगवा ध्वज लगाने वाली एक तस्वीर पोस्ट की थी। इससे मुस्लिम समुदाय में रोष फैल गया और ओल्ड हुब्बली पुलिस स्टेशन के बाहर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। यह विरोध प्रदर्शन बाद में हिंसक दंगों में बदल गया, जिसमें चार पुलिस अधिकारियों को चोटें आईं और सार्वजनिक संपत्ति को व्यापक नुकसान हुआ। इस घटना के बाद कई लोगों को गिरफ़्तार किया गया था।

मामलों की वापसी का निर्णय और उसका औचित्य

हाल ही में, कर्नाटक सरकार ने अंजुमन-ए-इस्लाम और दलित नेता डीबी चालवडी की याचिका के आधार पर इन दंगों में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों को वापस लेने का फैसला किया। गृह मंत्री जी परमेश्वर ने इस फैसले का बचाव करते हुए कहा कि सभी 43 मामले अल्पसंख्यकों से संबंधित नहीं हैं और इसमें किसान, छात्र और आम लोग भी शामिल हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि मामलों की वापसी की प्रक्रिया में कानूनी प्रोटोकॉल का पालन किया गया है और अंतिम निर्णय लेने से पहले अदालत की मंजूरी आवश्यक है। उन्होंने यह भी बताया कि भाजपा ने भी अपने शासनकाल में इसी तरह के कदम उठाए थे।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ और आरोप-प्रत्यारोप

भाजपा ने कांग्रेस सरकार के इस कदम को वोट बैंक की राजनीति करार दिया है और आरोप लगाया है कि कांग्रेस गंभीर अपराधों जैसे हत्या के प्रयास और दंगों में शामिल लोगों की रक्षा कर रही है। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली पिछली कांग्रेस सरकार ने प्रतिबंधित संगठन पीएफआई के सदस्यों के खिलाफ मामले वापस लिए थे। हालांकि, भाजपा ने भी अपने शासनकाल में कई मामलों को वापस लिया था, जिनमें सांप्रदायिक हिंसा, गौ रक्षा और नफ़रत भरे भाषण से जुड़े मामले शामिल थे। आरटीआई से प्राप्त जानकारी के अनुसार, 2019 से 2023 के बीच भाजपा सरकार ने सात सरकारी आदेशों के माध्यम से 341 मामलों को वापस लिया था।

दोनों पार्टियों का दोहरा चरित्र: तुलनात्मक विश्लेषण

कई उदाहरण दर्शाते हैं कि कैसे दोनों प्रमुख पार्टियों – कांग्रेस और भाजपा – ने सत्ता में रहते हुए अपने राजनीतिक लाभ के लिए अपराधिक मामलों को वापस लेने की रणनीति अपनाई है। भाजपा ने 2020 में उत्तरा कन्नड़ में हुए दंगों के मामलों में, और 2022 में हिन्दू जगरण वेदिके के नेता जगदीश करन्थ के खिलाफ मामलों को वापस लिया। इसी प्रकार, कांग्रेस ने 2015 में पीएफआई के सदस्यों के खिलाफ मामलों को वापस लेकर भाजपा के आलोचनाओं का सामना किया था।

राजनीतिक फायदे और नुकसान

यह स्पष्ट है कि दोनों पार्टियाँ वोट बैंक राजनीति के लिए ऐसे कदम उठाती हैं जिससे अपराधियों को संरक्षण मिलता है और कानून का अपमान होता है। यह न केवल कानून व्यवस्था को कमज़ोर करता है, बल्कि समाज में विभाजन और हिंसा को भी बढ़ावा देता है। राजनीतिक पार्टियों को अपने स्वार्थों से ऊपर उठकर काफी कठोर और निष्पक्ष काम करने की जरूरत है, ताकि न्याय को पूर्णतः प्रतिपादित किया जा सके।

मामलों की वापसी प्रक्रिया: कानूनी और संवैधानिक पहलू

किसी भी आपराधिक मामले को वापस लेने के लिए कई स्तरों की स्वीकृति की आवश्यकता होती है, जिसमें गृह मंत्री की सिफारिश, राज्य मंत्रिमंडल की उप-समिति द्वारा जाँच और मंत्रिमंडल द्वारा अंतिम अनुमोदन शामिल है। 2021 में, उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया कि राज्य के उच्च न्यायालय की सहमति के बिना सांसदों या विधायकों के खिलाफ कोई आपराधिक मामला वापस नहीं लिया जा सकता है। हुब्बली और डीजे हल्ली दंगों के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों और कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया गया है या नहीं, इसका विश्लेषण जरुरी है।

निष्कर्ष और मुख्य बिंदु

कर्नाटक में हुब्बली दंगों के बाद आपराधिक मामलों को वापस लेने के फैसले ने राजनीतिक विवाद को जन्म दिया है। दोनों कांग्रेस और भाजपा पर वोट बैंक राजनीति का आरोप लगाया गया है। इस घटना ने कानून व्यवस्था, राजनीतिक तुष्टिकरण, और सांप्रदायिक सद्भाव पर चिंता जताई है।

मुख्य बातें:

  • हुब्बली दंगों के बाद दर्ज मामलों की वापसी एक विवादित मुद्दा है।
  • भाजपा और कांग्रेस दोनों पर वोट बैंक राजनीति का आरोप लगाया गया है।
  • दोनों दलों ने अपने कार्यकाल में कई मामलों को वापस लिया है।
  • मामलों को वापस लेने की प्रक्रिया में कानूनी प्रोटोकॉल का पालन महत्वपूर्ण है।
  • यह घटना सांप्रदायिक सद्भाव और कानून व्यवस्था पर सवाल उठाती है।

यह घटना राजनीतिक प्रतिस्पर्धा से ऊपर उठकर न्यायपूर्ण तरीके से समाधान की जरूरत को रेखांकित करती है। यह समाज में विश्वास और स्थिरता बनाए रखने के लिए आवश्यक है।