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जयप्रकाश नारायण स्मारक केंद्र: लापरवाही और राजनीति का खेल

लखनऊ में गोमती नदी के तट पर स्थित जयप्रकाश नारायण स्मारक केंद्र (जेपीएनआईसी) पूर्व समाजवादी पार्टी (सपा) सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक था, लेकिन आज यह उपेक्षा और लापरवाही का प्रतीक बन गया है। आलीशान इमारत, जिस पर 800 करोड़ रुपये से अधिक खर्च हुए, अधूरी पड़ी है और सात वर्षों से अधिक समय से उपेक्षित है। महंगी टाइलें और आधुनिक सुविधाओं के बीच अब झाड़ियाँ उग आई हैं, और यह स्थान नशेड़ियों का अड्डा बन गया है। यह केंद्र न केवल एक विकास परियोजना की विफलता को दर्शाता है, बल्कि भारतीय राजनीति में विपक्ष और सत्ता के बीच बढ़ते तनाव और लोकतंत्र की स्थिति पर भी सवाल उठाता है।

जेपीएनआईसी: एक अधूरा सपना

जेपीएनआईसी की अवधारणा लखनऊ में एक विश्वस्तरीय सांस्कृतिक और सम्मेलन केंद्र के रूप में की गई थी। 2012 में सपा सरकार के कार्यकाल में इसके निर्माण का काम शुरू हुआ था। 2017 तक, इस पर लगभग 860 करोड़ रुपये खर्च हो चुके थे और करीब 80% निर्माण कार्य पूरा हो गया था। इस भव्य भवन में 17 मंजिलें थीं, जो 18.6 एकड़ में फैली हुई थीं। इसमें जयप्रकाश नारायण को समर्पित संग्रहालय, 107 कमरों वाला एक आलीशान होटल, जिम, स्पा, सैलून, रेस्तरां, 2000 सीटों वाला एक सम्मेलन हॉल, ओलंपिक आकार का स्विमिंग पूल, 591 वाहनों के लिए सात मंजिला कार पार्किंग, बैडमिंटन कोर्ट, लॉन टेनिस सुविधाएँ और छत पर एक हेलीपैड जैसी कई सुविधाएँ शामिल थीं।

राजनीतिक उथल-पुथल और परियोजना का ठहराव

हालांकि, 2017 में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद निर्माण कार्य रुक गया। सरकार ने निर्माण में कथित अनियमितताओं की जांच का आदेश दिया, जिसके परिणामस्वरूप यह परियोजना अधूरी रह गई। सात वर्षों से अधिक समय बीत जाने के बावजूद इसका निर्माण पूरा नहीं हो सका है और इसका उद्घाटन भी लंबित है। स्थानीय निवासियों का मानना है कि यह केंद्र राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का शिकार बन गया है और जनता के करोड़ों रुपये इस परियोजना में व्यर्थ गए हैं।

सपा और भाजपा के बीच राजनीतिक तनाव

समाजवादी पार्टी लगातार आरोप लगाती रही है कि भाजपा सरकार जानबूझकर इस केंद्र को उपेक्षित कर रही है और इसे किसी निजी कंपनी को बेचने की योजना बना रही है। सपा का दावा है कि भाजपा समाजवाद के विचारों को जनता तक नहीं पहुँचने देना चाहती है। हाल ही में, जयप्रकाश नारायण की जयंती पर सपा नेताओँ को जेपीएनआईसी में प्रवेश से रोका गया, जिससे सपा और भाजपा के बीच तनाव और बढ़ गया। अखिलेश यादव ने इस घटना को लोकतंत्र पर हमला करार दिया और भाजपा पर “गंदी राजनीति” करने का आरोप लगाया। वहीँ भाजपा ने सपा के विरोध प्रदर्शन को “बच्चों वाली हरकत” बताया।

सपा नेताओं का विरोध और सरकार का रुख

अखिलेश यादव ने जेपीएनआईसी के मुख्य द्वार पर लगी टिन की शीटों को हटाने और जयप्रकाश नारायण की मूर्ति पर माल्यार्पण करने की कोशिश की, लेकिन उन्हें पुलिस द्वारा रोका गया। इस घटना के बाद सपा कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया और कई कार्यकर्ताओं ने बैरिकेड्स पर चढ़कर प्रवेश करने का प्रयास किया। इस घटना के कारण राज्य में राजनीतिक तनाव काफी बढ़ गया है। भाजपा ने सपा के इस आरोप को खारिज करते हुए कहा कि पार्टी की यह हरकत बचकाना है और जनता इसे पसंद नहीं करेगी।

जेपीएनआईसी का भविष्य: अनिश्चितता का दौर

जेपीएनआईसी का भविष्य अभी भी अनिश्चित है। यह परियोजना न केवल आर्थिक दृष्टि से एक बड़ा नुकसान है, बल्कि यह राजनीतिक विद्वेष का भी प्रतीक बन गया है। अगर इस परियोजना को पूरा किया जाता है, तो यह लखनऊ शहर के लिए एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक केंद्र बन सकता है, लेकिन इसके पूरा होने की संभावना अभी भी अनिश्चित है। इसलिए इस परियोजना के पूरे होने की संभावनाओं पर सवालिया निशान लगा हुआ है और यह सवाल हमेशा चर्चा का विषय बना रहेगा।

विकास की अवधारणा पर सवाल

यह घटना विकास के कुल मूल्य पर भी सवाल खड़ा करती है, क्योंकि आलीशान इमारत का उपयोग नहीं हो पा रहा है। यह साफ़ दर्शाता है की बिना समुचित योजना और निगरानी के विकास की परियोजनाएं किस प्रकार नाकाम हो सकती है। यही नहीं, राजनीतिक हस्तक्षेप से विकास के लक्ष्य कितना प्रभावित हो सकते है ये भी उजागर हुआ है।

निष्कर्ष

जयप्रकाश नारायण स्मारक केंद्र एक ऐसी परियोजना है जो राजनीतिक विवाद और लापरवाही का शिकार हुआ है। यह केवल एक अधूरा भवन नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र के स्वास्थ्य और विकास की अवधारणाओं पर गंभीर सवाल उठाता है। इस घटना से यह स्पष्ट है कि राजनीतिक हितों के चलते विकास कार्य कितना प्रभावित हो सकते हैं।

मुख्य बिंदु:

  • जयप्रकाश नारायण स्मारक केंद्र (जेपीएनआईसी) अधूरा पड़ा है और सात सालों से उपेक्षित है।
  • इस परियोजना पर 800 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए गए हैं।
  • सपा और भाजपा के बीच इस केंद्र को लेकर राजनीतिक तनाव है।
  • जेपीएनआईसी का भविष्य अनिश्चित है और यह विकास की योजना और कार्यान्वयन पर सवाल उठाता है।