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राजनीति– राम चरित मानस की चौपाई को लेकर बिहार से विवाद शुरू हुआ और उत्तरप्रदेश में इसे अलग ही रूप मिला। सपा एमएलसी स्वामी प्रसाद मौर्या के पक्ष कई लोगों ने राम चरित मानस की प्रतियां जलाई।

स्वामी प्रसाद मौर्या का कहना है कि राम चरित मानस की कुछ चौपाई ऐसी हैं जो दलित, पिछड़ा और महिला विरोधी हैं। इन चौपाइयों पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।
उनके इस बयान से सपा और भाजपा के मध्य धार्मिक विवाद छिड़ गया।भाजपा राम मंदिर के नाम पर अपनी राजनीति को अनोखा रूप दे रही है और साल 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा राम मंदिर के नाम पर बड़ा दांव खेल सकती है।

जानें क्या है विवाद का चुनावी कनेक्शन-

भाजपा ने राम मंदिर के नाम पर पूरे देश मे अपनी धमक बनाई है। अपने हिंदुत्व कार्ड के दम पर प्रत्येक वर्ग के समाज को जोड़ दिया है। व्यक्ति किसी भी जाति का हो लेकिन वह सबसे पहले हिन्दू है। वहीं अब 2014 के बाद स्वामी प्रसाद मौर्या के इस बयान ने यह स्पष्ट कर दिया है कि विपक्ष जातीय कार्ड खेलना चाहती है। विपक्ष की रणनीति जाति, उच्च और निम्न वर्ग के बलबूते लोगों को विभक्त करने की है।
इस मसले का राजनीतिक कनेक्शन इसलिए भी निकाला जा रहा है। क्योंकि जब बिहार के शिक्षा मंत्री ने राम चरित मानस पर विवादित बयान दिया तो बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चुप्पी साध ली। वहीं जब यूपी में यह मुद्दा सपा एमएलसी स्वामी प्रसाद मौर्या ने उठाया तो अखिलेश यादव ने उन्हें मौन समर्थन दिया।
इन दोनों बातों से यह स्पष्ट है कि लोकसभा चुनाव में जातीय समीकरण के आधार पर।विपक्ष भाजपा के वोट बैंक को टुकड़ों टुकड़ों में तोड़कर। अपने खेमे में करने का अभिलाषी है। विपक्ष का दावा है कि भाजपा कहती है कि सबका साथ, सबका विकास। लेकिन वास्तव में उन्हें सिर्फ अगड़ों की चिंता है।
यह देश के सबसे बड़े हिन्दू समाज के साथ भेदभाव करते हैं और तुष्टिकरण की राजनीति करते हैं। विपक्षी दलों का दावा है कि यह लोग दलितों और पिछड़ों को सुनिश्चित संसाधन नहीं मुहैया करवा रहे हैं। वहीं अखिलेश यादव का यह भी कहना है कि वह विवादित चौपाइयों का अर्थ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से पूंछेंगे।