देश– हमारे देश का इतिहास विचारणीय है। क्योंकि आज हम जिन समस्याओं पर बात कर रहे हैं। पुरातन काल मे महान पुरुषों ने इन समस्याओं पर गहन अध्ययन किया है। चाहें हम राजा(Raja Ram) राम की बात करें, चाहें हम कृष्ण (Shri Krishna)की बात करें सभी ने जाति व्यवस्था से ऊपर उठकर मानवता का पाठ पढ़ाया।
जब हम बात आजादी के दौर के महान स्वतंत्रता सेनानी भगत(freedom fighter Bhagat Singh) सिंह की करते हैं। तो हमारे जहन में कई ख्याल मझने लगते हैं। एक तो भगत सिंह का स्वभाव, दूसरा आखिर भगत इतना परेशान क्यों रहते थे, क्या भगत (Bhagat Singh statment about caste system)जाति व्यवस्था से दुखी थे। वहीं आज हम आपको भगत सिंह के जाति व्यवस्था के परिपेक्ष्य में क्या विचार थे। इनपर बताने जा रहे हैं।
क्या थे जाति व्यवस्था पर भगत के विचार-
भारत अंग्रेजी(British government) हुकूमत के अधीन था। हर ओर अत्याचारों का बोलबाला था। किसी भारतीय का यह सामर्थ्य नहीं था कि वह अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में खड़ा हो सके। स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने संघर्ष के बलबूते भारत(Indian people) के लोगों के मन में आजादी की आग धधका दी थी। परंतु भारत अभी आजाद नहीं हुआ था। भारत कोड़ों की मार, काला पानी की सजा झले रहा था।
भगत सिंह(, Bhagat Singh) जो भारत की दयनीय स्थिति देखकर व्याकुल हो रहे थे। उनका चित फटा जा रहा है कि अंग्रेजी हुकूमत भारत को अपने ही देश मे इतना दर्द दे रही है जो असहनीय है और भारत के लोग इतने असमर्थ हो गए हैं कि वह अपने हित के लिए कुछ नहीं कर पा रहे हैं।
वहीं भगत सिंह अपने दौर की सबसे बड़ी समस्या जातिय भेदभाव से बेहद परेशान थे। उनके मन मे हमेशा यह विचार रहता था कि जब भारत को एकजुट होकर भारतीय बनकर विदेशी हुकूमत(British government) का सामना करना है। तब भी भारत मे लोग जाति के नाम पर अपनों का शोषण कर रहे हैं।
भगत(bhagat Singh) के दौर में जाति व्यवस्था उफान पर थी। उस दौर की सबसे बड़ी पार्टी भी लोगों को जाति व्यवस्था में बांटने के लिए प्रयासरत थीं । 1923 में कांग्रेस अधिवेशन काकीनाडा में हुआ था। उस अधिवेशन की अध्यक्षता तत्कालीन कांग्रेस नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने की थी। अपने अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने अछूतों (वर्तमान में अनुसूचित जातियों) को हिन्दू और मुस्लिम मिशनरी संस्थाओं में बांट देना सुझाव दिया था।
जिन्ना के भाषण से स्पष्ट है कि उस दौर में लोगों को वस्तु समझा जाता था। लोग उन्हें उनकी जाति के आधार पर विभक्त कर रहे थे। उनके साथ दोहरा व्यवहार हो रहा था। जाति व्यवस्था को बढ़ावा उस समय की राजनीतिक पार्टियों द्वारा मिल रहा था। वहीं इस बीच 1928 में ‘किरती’ नामक अखबार में विद्रोही अखबार आया। यह जाति व्यवस्था पर प्रहार कर रहा था।
भगत सिंह ने जाति व्यवस्था का विरोध करते हुए लिखा- हम उस देश में रहते हैं जो आध्यात्म की बात करता है। लेकिन हम मनुष्य को मनुष्य की तरह नहीं देखते हैं। हम कहते हैं कि विदेशों में हमारे साथ दोहरा व्यवहार होता है। लेकिन हम आज आत्मा और परमात्मा उलझे है। हम बहज करते हैं कि जनेऊ किसको दिया जाएगा। वे लोग वेदों को पढ़ने का अधिकार रखते हैं या नहीं।
उन्होंने समाज सुधारक मदन मोहन मालवीय की आलोचना की ओर कहा, कुत्ता जो हमारी गोद में बैठ सकता है, हमारे रसोईं घर मे जा सकता है, हमारे साथ खाने के स्थान पर बैठ सकता है लेकिन यदि एक व्यक्ति हमें स्पर्श कर ले तो हमारा धर्म नष्ट हो जाता है।अछूतों के प्रेमी पहले एक मेहतर के हाथों अपने गले मे हार डलवा लेते हैं और बाद में नहा कर अपने आप को शुद्ध करते हैं।